Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019हैदराबाद नगर निगम चुनाव में BJP की कामयाबी का मतलब क्या?  

हैदराबाद नगर निगम चुनाव में BJP की कामयाबी का मतलब क्या?  

पिछले चुनाव में 4 सीटें जीतने वाली बीजेपी इस बार 48 पर पहुंच गई है. 

शादाब मोइज़ी
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(फोटो: कनिष्क दांगी/क्विंट हिंदी)
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(फोटो: कनिष्क दांगी/क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम

ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव के नतीजों ने कमल के फूल मतलब बीजेपी को एक और राज्य में खिलने के लिए खाद-पानी दे दिया है. 150 सीटों वाली GHMC के नतीजे आ चुके हैं. तेलंगाना में टीआरएस की गाड़ी पंक्चर हो गई है. खास बात ये है कि इस कामयाबी ने बीजेपी के दक्षिण में मिशन विस्तार को और धार दे दिया है. इन नतीजों का असर केरल से लेकर तमिलनाडु के आगामी विधानसभा चुनावों तक देखने को मिल सकता है.

एम्बेसडर कार के निशान वाली TRS जिसे 2016 के नगर निगम चुनाव में 99 सीटें मिलीं थी उसे इस चुनाव में सिर्फ 55 सीटें हासिल हुई हैं. जबकि पिछले चुनाव में 4 सीटें जीतने वाली बीजेपी 48 पर पहुंच गई है. वहीं दूसरी ओर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने 44 सीटों पर अपनी पतंग को फिर से उड़ा दिया है.

बीजेपी के लिए ये चुनाव कितना अहम था इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ जैसे बड़े नेता रोड शो से लेकर सभाएं करने पहुंच गए. मानों नगर निगम का नहीं बल्कि लोकसभा या विधानसभा चुनाव हो.

तेलंगाना में जीत, नजर पूरे साउथ इंडिया पर

हैदराबाद में बीजेपी को मिली कामयाबी का असर तेलंगाना की राजनीति पर होगा, अब ये तय है. बीजेपी अब वहां मुख्य विपक्षी पार्टी बन सकती है और कांग्रेस की तो लड़ाई ही खत्म दिख रही है.

बीजेपी की ये सफलता इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि तेलंगाना में विधानसभा की कुल 119 सीटें हैं, 2018 के चुनाव में टीआरएस को 88 सीटें, कांग्रेस को 21 सीटें, AIMIM को 7 सीटें, बीजेपी को सिर्फ 1 सीट मिली थी.

बीजेपी ने हैदराबाद नगर निगम चुनाव में जो जोर लगाया है इसके पीछे की बड़ी रणनीति को समझना जरूरी है. दरअसल, ये रणनीति सिर्फ तेलंगाना के लिए नहीं बल्कि साउथ इंडिया के दूसरे राज्यों में भी अपनी पकड़ बनाने और उससे भी कहीं ज्यादा जीतने की है.

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आंध्र प्रदेश में तोड़-जोड़

दक्षिण भारत में पांच राज्य आते हैं, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश. कर्नाटक में बीजेपी की सरकार है. तेलंगाना में कदम बढ़ा चुकी है, आंध्र प्रदेश में कोशिश जारी है. कोशिश का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आंध्र प्रदेश से लोकसभा और विधानसभा में एक भी सीट नहीं जीत पाने वाली बीजेपी चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के चार राज्यसभा सांसदों और कई विधायकों को पहले ही अपने पाले में ला चुकी है.

अभी आंध्र प्रदेश के चुनाव में वक्त है. आंध्र के स्पेशल राज्य के दर्जा की मांग पेंडिंग है, जिसे बीजेपी चुनाव से पहले पूरा कर अपने लिए रास्ता तैयार कर सकती है.

तमिलनाडु में AIADMK की पीठ पर सवार

234 सीटों वाली तमिलनाडु विधानसभा के चुनाव अप्रैल 2021 में होने वाले हैं. भले ही तमिलनाडु का चुनाव पलानीस्वामी बनाम एमके स्टालिन होगा लेकिन जयललिता और करुणानिधि जैसे कद्दावर नेताओं के बगैर हो रहे पहले चुनाव में बीजेपी अपनी जगह बनाने में लग गई है. पिछले विधानसभा में बीजेपी को एक भी सीट हाथ नहीं लगी थी. इसलिए बीजेपी तमिलनाडु की राजनीति में 'मैं भी हूं" बनाने के लिए एआईएडीएमके के पीठ पर सवार हो गई है.

केरल में भी बीजेपी की एक सीट है. केरल में भी 2021 में चुनाव होने हैं. हैदराबाद में मिली इस कामयाबी के बाद बीजेपी दोगुने उत्साह के साथ तमिलनाडु और केरल के जंग में कूदेगी.

हैदराबाद vs भाग्यनगर, रोहिंग्या मुसलमान, सैफरॉन स्ट्राइक, मिनी इंडिया......GHMC चुनाव में बीजेपी ने जिस तरह से राष्ट्रवाद और ध्रुवीकरण के मुद्दे उठाए और जो कामयाबी उसे मिली है वो शायद कर्नाटक के बाद साउथ में उसके लिए दूसरी है. तो आने वाले वक्त में केरल और तमिलनाडु में भी ये नेरेटिव देखने को मिल सकता है. बीजेपी केरल में पहले ही सबरीमाला, वामपंथ, लव जिहाद और राष्ट्रवाद का मुद्दा उठा रही है.

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