Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019कोरोना वायरस लॉकडाउन: न राशन कार्ड, न काम, कहां जाएं ये गरीब 

कोरोना वायरस लॉकडाउन: न राशन कार्ड, न काम, कहां जाएं ये गरीब 

कहीं ऐसा ना हो कि हम लॉक डाउन के कुएं से तो बच जाएं लेकिन भूख की खाई में गिर पड़े.

योगेंद्र यादव
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‘चलती रहे जिंदगी’ के इस एपिसोड में मैं आज बात करूंगा हाशिए के लोगों की, जिनके पास न राशन कार्ड है, न बैंक अकाउंट. लॉकडाउन में वे कैसे अपना गुजारा करेंगे?

सरकार ने लॉकडाउन के दौरान गरीबों को इसके असर से बचाने के लिए बड़ी घोषणा की है. राशन कार्ड के जरिए उन्हें अतिरिक्त राशन मिलेगा और जन धन योजना के तहत उन्हें पैसा मिलेगा. लेकिन ये तभी मुमकिन हो सकेगा जब सभी लोगों के पास राशन कार्ड हो या बैंक में अकाउंट हो. देश में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनके पास न राशन कार्ड है, ना बैंक अकाउंट और नरेगा के तहत जॉब कार्ड और न ही वोटर कार्ड.

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इनकी कितनी संख्या है, हम नहीं जानते. हो सकता है ये पांच परसेंट हों, 10 परसेंट हों. लेकिन देश में 5 से 10 करोड़ ऐसे लोग हैं जो इन सारी सुविधाओं से बाहर हैं. उन्हें लॉकडाउन के समय सुरक्षा कैसे मिलेगी?

आपने कभी वीडियो देखा है शेर के हमले वाला. शेर कभी गाय, नीलगाय के पूरे झुंड पर हमला नहीं करता. शेर आता है भगदड़ मचती है और जो सबसे पीछे छूट जाता है- कोई बछड़ा या कोई बच्चा वो उसे उठाकर चला जाता है.

समाज के हाशिए पर भूख बिल्कुल ऐसे ही हमला करती है. एक घर या दो घर के लोग होते हैं वहां पर और भूख आती है, उन्हें ले जाती है. किसी को पता भी नहीं लगता. जैसे उत्तर प्रदेश के अमेठी में एक गांव के बाहर हमें वनराज समुदाय के कुछ लोग तंबू गाड़ कर अपना जीवन बसर करते दिखे. हमें ऐसी महिला मिली जिनके बच्चे छोटे हैं जो सिर्फ मां की दूध पर निर्भर है. लेकिन मां के पास खाने को कुछ नहीं है. लॉकडाउन के दौरान उनका छोटा-मोटा काम करने का जरिया भी बंद हो चुका है और वो भूखे रहने को बेबस हैं. उनके पास न राशन कार्ड है, न बैंक में अकाउंट.

हो सकता है गांव वालों को, सरपंच को भी ये पता न हो.

प्रसिद्ध इकनॉमिस्ट अमर्त्य सेन और ज्यां द्रेज की किताब बताती है कि दुनिया में भूख से मौत वहां भी होती है जहां अन्न के भंडार होते हैं. क्योंकि अकाल से मौत का कारण होता है परचेजिंग पावर की कमी यानी लोगों की जेब में पैसे नहीं होते कि वो अन्न खरीद सकें.

आज देश के तमाम समुदाय जो हाशिए पर रहते हैं, वो उत्तर प्रदेश, बिहार के मुसहर हो सकते हैं, डोम हो सकते हैं या बंगाल का आदिवासी समुदाय हो सकता है जिनकी आजीविका बिल्कुल खत्म हो चुकी है.

कैसे पहुंचेगी हाशिए तक मदद

इन्हें मदद पहुंचाने के दो साधारण तरीके हो सकते हैं. पहला, हर व्यक्ति को राशन दिया जाए. उन्हें भी जिनके पास राशन कार्ड नहीं है. बस वो राशन की दुकान पर खड़े हो जाएं, पंच-सरपंच उनके नाम को वेरीफाई कर दें और उन्हें राशन दे दिया जाए. हमारे देश में अन्न का बहुत भंडार है और ऐसा किया जा सकता है.

और दूसरा, शहरी इलाकों में सामुदायिक रसोई या लंगर के जरिए खाना बनाकर खिलाया जाए. ऐसा सिर्फ लॉकडाउन तक नहीं कम से कम 2 महीने तक चले.

हमें ऐसा करना होगा. कहीं ऐसा ना हो कि हम लॉकडाउन के कुएं से तो बच जाएं लेकिन भूख की खाई में गिर पड़े.

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Published: 06 Apr 2020,06:02 PM IST

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