Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019 JNU में बवाल: सब्सिडी खैरात नहीं देश की जरूरत

JNU में बवाल: सब्सिडी खैरात नहीं देश की जरूरत

JNU छात्रों का ‘संसद मार्च’: कितनी जायज फीस घटाने की मांग?

माशा
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जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्रों का फीस बढ़ोतरी और अन्य मांगों को लेकर लगातार प्रदर्शन जारी है.
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जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्रों का फीस बढ़ोतरी और अन्य मांगों को लेकर लगातार प्रदर्शन जारी है.
(फोटो: इरम गौर/क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज

कैमरा: अभिषेक रंजन

जेएनयू उबल रहा है. देश के बाकी शहर भी. देहरादून से लेकर मुंबई तक स्टूडेंट्स लगातार इस बात के लिए स्ट्रगल कर रहे हैं कि शिक्षा उनकी पहुंच से दूर न हो जाए. चिंता है कि लगभग साढ़े दस हजार रुपए पर कैपिटा इनकम वाले देश में शिक्षा लग्जरी न बन जाए.

लिहाजा मांग है कि इस पर सरकारी सब्सिडी कायम रहे. दूसरी तरफ सब्सिडी का विरोध करने वाले तमाम तरह के तर्क दे रहे हैं. उनका कहना है कि सब्सिडी देकर सरकारी खर्च बढ़ता है. लोग सब्सिडी का मिसयूज करते हैं. स्टूडेंट्स राजनीति करते हैं-पढ़ाई नहीं वगैरह..वगैरह.

लेकिन सच्चाई ये है कि सस्ती शिक्षा खैरात नहीं, हक है. शिक्षा को इकनॉमी में इन्वेस्टमेंट के रूप में देखा जाना चाहिए. अमर्त्य सेन और ज्यां द्रेज की किताब ‘एन एन्सर्टेन ग्लोरी: इंडिया एंड इट्स कॉन्ट्राडिक्शंस’ साफ करती है कि विकास और सामाजिक तरक्की पर शिक्षा का बहुत असर होता है.

शिक्षा हमारे लिए रोजगार और आर्थिक तरक्की के रास्ते खोलती है. इससे हमें राजनैतिक आवाज मिलती है. हम अपने कानूनी हक समझते हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि मानवाधिकार है, खैरात नहीं.

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शिक्षा सस्ती करने के बहुत से फायदे हैं. बांग्लादेश में एक स्टडी से ये बात साफ होती है. ढाका यूनिवर्सिटी में बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट के प्रोफेसर मुक्तदैर अल मुकीत ने 1995 से 2009 के दौरान देश में शिक्षा पर खर्च और आर्थिक विकास के बीच तुलना की.

इस पर उन्होंने एक पेपर लिखा- ‘पब्लिक एक्सपेंडिचर ऑन एजुकेशन एंड इकोनॉमिक ग्रोथ: द केस ऑफ बांग्लादेश.‘ पेपर में मुकीत का कहना है कि सरकार अगर एजुकेशन पर एक प्रतिशत ज्यादा खर्च करती है तो प्रति व्यक्ति जीडीपी में 0.34% का इजाफा होता है.

इस खर्च में बजट आवंटन से लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना और सब्सिडी देना, सभी शामिल हैं. ऐसे ही रिसर्च वेस्ट अफ्रीकन कंट्रीज में भी किए गए. सभी ने शिक्षा और आर्थिक विकास के बीच मजबूत संबंध होने की पुष्टि की.

हायर स्टडीज करने वाले पहले ही कम

JNU के बहाने हायर स्टडीज में सब्सिडी पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं. विडंबना ये है कि हमारे देश में हायर स्टडीज में दाखिले कम हो रहे हैं. मानव संसाधन विकास मंत्रालय के 2017-18 के अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण में कहा गया है कि देश में सिर्फ 26% लोग यूनिवर्सिटीज में एडमिशन लेते हैं.

  • अंडर ग्रैजुएट लेवल पर सबसे ज्यादा 79.2% एडमिशन लिए जाते हैं.
  • इसके बाद पोस्ट ग्रैजुएट लेवल तक ये 11.2% रह जाता है.
  • सर्वे कहता है कि अंडर ग्रैजुएट लेवल के बाद आगे की पढ़ाई के लिए दाखिलों की संख्या कम होती जाती है.यानी लोग हायर स्टडीज़ से पहले ही पढ़ाई छोड़ देते हैं.

इसका एक दूसरा पहलू भी है.सरकार खुद एजुकेशन पर कम से कम खर्च करती है. 2019-20 के बजट में शिक्षा पर केवल 3% आवंटन किया गया है. इसमें हायर स्टडीज के हाथ तो सिर्फ 1% लगा है.

इसके चलते यूनिवर्सिटीज में रिसोर्सेज की किल्लत है. यूजीसी का करीब 65% ग्रांट सेंट्रल यूनिवर्सिटीज को मिलता है जबकि स्टेट यूनिवर्सिटीज को 35% पर तसल्ली करनी पड़ती है जबकि इन्हीं स्टेट यूनिवर्सिटीज और उनसे संबद्ध कॉलेजो में सबसे ज्यादा एडमिशन लिए जाते हैं.

दुनिया के कई देशों में शिक्षा मुफ्त है

दुनिया के कई देशों में शिक्षा, खास तौर से हायर स्टडीज मुफ्त और सस्ती है. वो देश विकसीत देश हैं.

  • स्वीडन में सरकारी और प्राइवेट कॉलेजों में कोई ट्यूशन फीस नहीं लगती. वहां 68% युवा यूनिवर्सिटीज में पढ़ते हैं. हर स्टूडेंट पर सरकार औसत 20 हजार डॉलर से ज्यादा खर्च करती है.
  • डेनमार्क कॉलेज स्टूडेंट्स की सब्सिडी पर अपनी जीडीपी का 0.6% खर्च करता है.
  • फिनलैंड अपने स्टूडेंट्स को स्कॉलरशिप और ग्रांट देता है ताकि वे पढ़ाई-लिखाई के अलावा अपना दूसरा खर्चा चला सकें.
  • आयरलैंड 1995 से अपने फुलटाइम अंडर ग्रैजुएट स्टूडेंट्स को ट्यूशन फीस देता है. आइसलैंड की सरकार हर स्टूडेंट पर औसत 10,419 डॉलर खर्च करती है और वहां 77% युवा यूनिवर्सिटीज में पढ़ते हैं.
  • नार्वे सरकार अपनी कुल जीडीपी का 1.3% हिस्सा कॉलेज सब्सिडी पर खर्च करती है.

और हमें समस्या ये है कि सब्सिडी पर पलने वाले स्टूडेंट्स राजनीति करते हैं. सब्सिडी मिल रही है तो मुंह बंद करके पढ़ो. चूंकि राजनीति और शिक्षा, दोनों को अलग-अलग बाइनरी में देखा जाता है. लेकिन जनाब शिक्षा का मकसद ही ये है कि आप सवाल करें . सवाल करें और सवालों के जवाब भी तलाशें. अपने हक की बात करें. ये राजनीति नहीं है- असली शिक्षा है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 18 Nov 2019,07:35 PM IST

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