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डॉ. कफील खान ने 7 महीने उस गुनाह के लिए जेल में गुजारे जो उन्होंने किया ही नहीं.
ये बातें इलाहाबाद हाइकोर्ट ने गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कॉलेज के निलंबित प्रवक्ता डॉक्टर कफील के खिलाफ लगाए गए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून पर फैसला सुनाते हुए कही हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डॉक्टर कफील खान पर लगाए गए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी NSA को हटाने का आदेश दिया है. साथ ही कफील खान को तुरंत रिहा करने का फैसला सुनाया है.
गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन सप्लाई की कमी के चलते बच्चों की मौत की घटना के बाद चर्चा में आए कफील खान पर भड़काऊ बयान देने का आरोप लगाया गया. लेकिन कोर्ट ने अपने फैसले में जो कहा वो उन आरोपों की बुनियाद पर ही चोट करती है.
अपने आदेश में कोर्ट ने कहा,
जी हां, भड़काऊ बयान नहीं बल्कि राष्ट्रीय एकता और अखंडता का संदेश.
चलिए आपको 13 दिसंबर 2019 को AMU में कफील खान के भाषण के कुछ हिस्से को पढ़कर सुनाते हैं. फिर वो कहानी भी बताएंगे कि कोर्ट ने क्या कहा और कैसे उनके खिलाफ एनएसए लगाया गया.
डॉक्टर कफील ने AMU में अपने भाषण की शुरुआत मशहूर शायर अलामा इकबाल के शेर से की थी, उन्होंने कहा था, "कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जमाना हमारा."
कफील खान ने कहा,
इसी तरह कफील खान नागरिकता संशोधन कानून की कमियां गिनाते हैं, सरकार पर हमला बोलते हैं.
इस भाषण के ठीक एक दिन बाद डॉक्टर कफील के खिलाफ 13 दिसंबर को अलीगढ़ के सिविल लाइंस पुलिस थाने में IPC की धारा 153-ए (धर्म, भाषा, नस्ल के आधार पर लोगों में नफरत फैलाना) के तहत मामला दर्ज किया गया था. लेकिन करीब डेढ़ महीने बाद 29 जनवरी को यूपी पुलिस उन्हें गिरफ्तार करती है. कमाल तो तब होता है जब इस केस में भी कफील खान को बेल मिल जाती है, लेकिन जेल से बाहर आने से पहले उन पर NSA लगा दिया जाता है.
7 महीने एक इंसान को झूठे आरोपों में जेल में रखा गया. अब एक सितंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कई महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं हैं. कोर्ट ने कहा,
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने आदेश में सबसे महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा,
''कफील खान का पूरा भाषण पढ़ने से पृथम दृष्टया कहीं जाहिर नहीं होता कि नफरत या हिंसा को बढ़ाने का प्रयास किया गया है. साथ ही इससे अलीगढ़ शहर की शांति को भी कोई चुनौती नहीं दिखाई देती है. भाषण राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बढ़ावा देने वाला है. ऐसा लगता है कि अलीगढ़ डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने भाषण का कुछ हिस्सा पढ़ा और भाषण के असल मकसद को दरकिनार कर कुछ हिस्से वहां से ले लिए.
कोर्ट ने आदेश में कहा,
लेकिन सवाल ये है कि कफील खान का मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे तक पहुंच सका तब जाकर इंसाफ मिला, लेकिन कितने लोग वहां तक पहुंच पाते हैं. दूसरा सवाल, कफील खान के 7 महीने कौन लौटाएगा? तीसरा सवाल, बोलने की आजादी को दबाने की कोशिशें कब तक चलेंगी?
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