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''सरकार ने पिछले साल जितनी रकम कंपनियों को देती उससे कम अगर जनता की जेब में देती तो आज लॉकडाउन में न सिर्फ लोगों की मुसीबत कम होती बल्कि अर्थव्यवस्था की हालत भी ठीक होती''- ये कहना है INC डेटा एनालिटिक्स के चेयपर्सन प्रवीण चक्रवर्ती का.
प्रवीण चक्रवर्ती ने क्विंट से बातचीत में बताया कि पिछले साल सितंबर में पीएम मोदी के अमेरिका दौरे से एकदम पहले वित्त मंत्री ने कंपनियों के लिए करीब 1.5 लाख करोड़ की टैक्स राहत ऐलान किया. आखिर इसका मकसद क्या था? क्या सरकरा अमेरिका में तारीफ पाना चाहती थी?
प्रवीण कहते हैं- ''मार्च में लॉकडाउन का ऐलान किया गया. कोरोना तो रुका नहीं, करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए. 6 करोड़ छोटे कारोबार बंद होने के कगार पर हैं. अर्थव्यवस्था ठप हो गई. इससे फिर से शुरू करने के लिए सरकार को सबसे गरीब 13 करोड़ परिवारों को 7.5 हजार रुपए देने चाहिए थे. इससे 65 करोड़ लोगों को फायदा होता.
प्रवीण पूछते हैं कि सरकार जब एक लाख करोड़ में अर्थव्यवस्था को चालू करने के साथ ही लोगों को राहत और रोजगार दे सकती थी तो ऐसा क्यों नहीं किया गया. अमेरिका से लेकर जापान तक लॉकडाउन में सरकारों ने आम जनता को सीधा पैसा दिया है तो फिर यहां ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता?
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