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वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान
मोहम्मद शमीम दिल्ली के ITO में ‘जदीद कब्रिस्तान अहले इस्लाम’ के सुपरवाइजर हैं. पिछले 3 महीने से कोरोना महामारी की वजह से कब्रिस्तान में आ रहे शवों को दफनाने का काम इनकी देखरेख में हो रहा है.
38 साल के शमीम को कब्रिस्तान में काम करते हुए 25 साल हो गए हैं. ये अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी से हैं जो इस काम को संभाल रहे हैं. अपनी 4 बेटियों और पत्नी के साथ कब्रिस्तान के अंदर ही रहते हैं. कोरोना की वजह से रोजाना 14-15 घंटे लगातार ड्यूटी कर रहे हैं.
69 साल के मशकूर राशिद जदीद कब्रिस्तान के इंचार्ज हैं. 1927 में इनके पिता इंचार्ज बने, उनके बाद 45 सालों से मशकूर यहां काम कर रहे हैं. मशकूर भी अपने 4 बच्चों के साथ कब्रिस्तान के अंदर बने घर में रहते हैं.
मशकूर के मुताबिक कोरोना की वजह से दिनभर शवों के आने का सिलसिला जारी रहता है. संक्रमण के खतरे के बीच शवों का ब्योरा रखना मशकूर की जिम्मेदारी है. हॉस्पिटल से लगातार फोन पर बातचीत, रसीद-पर्ची बनाने का सिलसिला घंटों चलता रहता है. वो बताते हैं कि दिल्ली में और भी कई कब्रिस्तान हैं लेकिन कोविड के ज्यादातर शव जदीद कब्रिस्तान लाए जा रहे हैं.
दिल्ली के निगम बोध घाट पर कोरोना मृतकों की अंतिम क्रिया 55 साल के हरेंद्र कर रहे हैं. यहां सीएनजी के जरिये शवों का अंतिम संसकार किया जा रहा है. हरेंद्र और उनके साथ काम कर रहे एक अन्य स्टाफ 8 घंटे की जगह 12-13 घंटे रोजाना काम कर रहे हैं.
ये सब भी कोरोना वॉरियर्स हैं. लेकिन मोहम्मद शमीम कहते हैं कि जितना जोखिम लेकर वो काम कर रहे हैं, उस हिसाब से उनके लिए सुविधाएं नाकाफी हैं. न PPE किट है, न बीमा और न ही आवाजाही करने के लिए पास.
देखिए ये पूरी वीडियो रिपोर्ट.
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