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मां के साथ रोती दिव्यांग बच्ची, परिवार का दर्द कैमरे में कैद

अपने घर लौटने की कोशिश करते मजदूरों के सफर को दिखाती डॉक्यूमेंट्री

विनोद कापड़ी
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अपने घर लौटने की कोशिश करते मजदूरों के सफर को दिखाती डॉक्यूमेंट्री
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अपने घर लौटने की कोशिश करते मजदूरों के सफर को दिखाती डॉक्यूमेंट्री
(फोटो: क्विंट हिदी)

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वीडियो प्रोड्यूसर: त्रिदीप के मंडल

वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया

26-27 मार्च की बीच रात जब दिल्ली से मजदूरों, प्रवासियों का काफिला अपने-अपने घर की ओर निकल पड़ा तो उस भीड़ में प्रिया भी अपनी 3 बेटियों के साथ शामिल हो गईं. अपनी तीन बच्चियों के साथ प्रिया दिल्ली से कानपुर के सफर पर है. बच्चियों की उम्र 3 से 5 साल. साथ में कुछ गांव वाले भी हैं. प्रिया को एहसास तक नहीं है कि ये कानपुर-दिल्ली की दूरी 470 किमी है .पैदल चल रहे बच्चे तो क्या समझेंगे?

प्रिया के साथ उनके गांव के कन्हैयालाल, शीलू और राकेश भी चल रहे हैं. प्रिया के पति कानपुर में हैं. हमें पता चला कि कुछ अंतराल में रोडवेज की बस आ रही हैं लेकिन वो पैदल मुसाफिरों को सिर्फ अपने जिले की सीमा तक ही छोड़ रही हैं. हमारी कोशिश थी कि इस 8 सदस्यीय परिवार को बस मिले.

सिकंदराबाद टोल प्लाजा पर कुछ दुकानें खुली थीं. बच्चे कोल्ड ड्रिंक पी कर खुश थे और बड़े चाय.. एहसास अब भी होना बाकी था कि कानपुर अभी बहुत बहुत दूर है. 450 किलोमीटर और.क्या इन्हें बस मिलेगी या पूरी यात्रा पैदल?

प्रिया के साथ एक बड़ी दिक्कत ये भी थी कि उसकी बड़ी बेटी का एक पैर ठीक नहीं था. वो लंगड़ कर चल रही थी. मुझे समझ नहीं आया कि बेटी की इस हालत के बावजूद प्रिया ने क्यों 470 किलोमीटर पैदल चलने का फैसला किया. प्रिया के पास अपनी कुछ वजहें थी.

रात के 8 बज चुके थे. बस के इंतजार को 20 मिनट हो गए थे. तभी उत्तरप्रदेश रोडवेज के कुछ कर्मचारी नजर आए. वे ही जरिया हो सकते थे कि प्रिया और बाकी लोगों को कुछ मदद मिले. 8 से 8.30 बज चुके थे. यूपी पुलिस लगातार घोषणा कर रही थी कि बस आ रही है और सभी के खाने की व्यवस्था हो गई है. लेकिन ना तो बस आ रही थी और ना खाना. हां, दूर बैठने की पुलिस की सलाह जरूर अच्छी थी.

और फिर एक घंटे के इंतजार के बाद आई पहली बस. दो मिनट के अंदर ही पूरी बस खचाखच भर गई. कोरोनावायरस से लड़ने की मुहिम सरकारी बदइंतजामी की वजह से बर्बाद हो चुकी थी. प्रिया, कन्हैयालाल और बच्चों को इस बस में जगह नहीं मिल पाई. थोड़ी देर में दूसरी बस आई. तमाम कोशिशों के बाद प्रिया और तीन छोटी बच्चियां, कन्हैयालाल और परिवार बस में नहीं चढ़ पाया.

इस सिकंदराबाद टोल प्लाजा पर अब इन्हें 70 मिनट हो चुके थे. पुलिस के वादे के मुताबिक कोई खाना अब तक नहीं आया था.

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रात 10 बजे के आसपास तीसरी बस आई. इस बार कैसे भी प्रिया और बच्चों को बस में बिठाना ही था. रोडवेज के कर्मचारियों को छोटे बच्चों का हवाला दिया तो उन्होंने ड्राइवर की तरफ का दरवाजा खोल दिया. सब बस के अंदर थे. बस को 92 किलोमीटर दूर बुलंदशहर-अलीगढ़ की सीमा पर गभाना टोल प्लाजा तक ही जाना था.

करीब दो घंटे के सफर के बाद प्रिया, कन्हैयालाल का परिवार रात 12 बजे गभाना टोल प्लाजा पहुंचा. यहां से अलीगढ़ की सीमा शुरू होती है. अब इनकी चुनौती अलीगढ़ शहर तक पहुंचने की थी.

अलीगढ़ सीमा पर प्रिया, उनकी तीनों बच्चियों और कन्हैयालाल के पूरे परिवार समेत हर किसी की थर्मल स्क्रीनिंग की गई. सरकार का आदेश है कि दूसरे राज्यों से ही नहीं, दूसरे जिलों से आ रहे लोगों की भी जांच की जाए.

गभाना पहुंचते-पहुंचते रात के 12 बज चुके थे. कानपुर अभी भी 380 किलोमीटर दूर था. सभी लोग थककर चूर थे. लेकिन आस थी कि अगर कोई बस मिलेगी तो सफर जारी रखा जाएगा.

बताया गया कि अलीगढ़ प्रशासन ने स्थानीय स्तर पर बस का कोई इंतजाम नहीं किया. कुछ निजी ट्रक जरूर अलीगढ़, एटा तक ले जा सकते हैं लेकिन बदले में दोगुना किराया भी मांग रहे हैं. खैर, ये बड़ा मसला नहीं था. बड़ा मसला था कि पहले ट्रक तो मिले.

रात 12.30 बजे के आसपास एक ट्रक आया लेकिन इसमें प्रिया, कन्हैयालाल के बच्चों समेत 8 लोगों को बैठाया जाना संभव नहीं था क्योंकि बैठने की जगह ट्रक की छत पर थी.

15 मिनट के बाद एक ट्रक और आया. ट्रक में पहले से लोग थे लेकिन जब बच्चों और बुजुर्ग का हवाला दिया तो चालक रिंकू मान गया. ये ट्रक अलीगढ़ शहर की सीमा तक जा रहा था. आठ सदस्यों का ये ग्रुप अपनी मंजिल के 60 किलोमीटर और करीब पहुंचने वाला था.

रात एक बजे रिंकू के ट्रक ने सभी को अलीगढ़ की सीमा पर उतार दिया. रिंकू अगर आप ये पढ़ पा रहे हों तो आपका बहुत शुक्रिया.

कानपुर अभी भी 330 किलोमीटर दूर था. बच्चे थक कर चूर थे. रात गुजारने के लिए सुरक्षित ठिकाने की तलाश में सभी आधे घंटे तक भटकते रहे. कल्पना कीजिए जब आप दो दिन से घर से निकले हुए हों, आधा रास्ता पैदल तय किया हो और रात के डेढ़ बजे भी आपको पता नहीं हो कि रात कहां गुजारनी है.

और आखिरकार तकरीबन 2 बजे सभी को एक सुरक्षित ठिकाना मिल ही गया. एक फर्नीचर की दुकान का बरामदा. प्रिया, उसके तीन बच्चे, कन्हैयालाल, उनका एक बेटा, शीलू और राकेश ये रात यहीं गुजारने वाले थे. चार-पांच घंटे का आराम और सुबह कानपुर कूच.

लेकिन जब मैं सुबह 5:45 बजे फर्नीचर दुकान पर पहुंचा तो प्रिया और उसका परिवार तब तक जा चुका था. उन्हें ढूंढने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहा. मैं उम्मीद और कामना करता हूं कि वो घर सुरक्षित पहुंच गए होंगे.

(विनोद कापड़ी नेशनल अवॉर्ड विजेता फिल्ममेकर और पत्रकार हैं)

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Published: 04 Apr 2020,12:41 PM IST

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