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जब कोई लॉ एंड ऑर्डर की दिक्कत होगी तो इसमें कोई शक नहीं है कि पुलिस को एक्शन लेना ही पड़ेगा. लेकिन वो एक्शन वॉयलेशन के हिसाब से ही होना चाहिए, लीगल फ्रेमवर्क के तहत होना चाहिए और नागरिकों की सुरक्षा के लिए होना चाहिए.
लेकिन पिछले 1 साल में पुलिस पर भेदभाव के साथ काम करने और छात्रों, अल्पसंख्यकों पर मनमानी और जरूरत से ज्यादा फोर्स इस्तेमाल करने के आरोप लगे हैं.
उदाहरण के तौर पर कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के बाद प्रदर्शनों के दौरान फायरिंग की रिपोर्ट्स आईं. महिलाओं और बच्चों पर पेलेट गन चलाने की खबरें आईं. कई सारे इंटरनेशनल मीडिया आउटलेट्स ने वीडियो फुटेज जारी किए, जिसमें पुलिस प्रदर्शनों को रोकने के लिए जरूरत से ज्यादा फोर्स का इस्तेमाल कर रही थी. हालांकि सरकार ने इन घटनाओ से इंकार किया है.
जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी और अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में CAA प्रोटेस्ट के दौरान भी पुलिस का कुछ ऐसा ही रवैया देखने को मिला. पुलिस के मुताबिक 15 दिसंबर को वो जामिया में शरारती तत्वों को पकड़ने के लिए गई थी जिन्होंने प्रदर्शन को हिंसक कर दिया. लेकिन वीडियो फुटेज में साफ देखा गया कि पुलिस छात्रों को मार रही है, कैंपस की लाइब्रेरी में तोड़ फोड़ कर रही है. वहां का फर्नीचर और CCTV भी तोड़ रही है.
फरवरी में जब भारत में दशक का सबसे बड़ा कम्यूनल झगड़ा चल रहा था, तब दिल्ली पुलिस के रवैए ने चिंतित किया है. आरोप है कि पुलिस ने कुछ जगह दंगाइयों का साथ दिया, समय पर एक्शन नहीं लिया और मुसलमानों के प्रति भेदभाव किया. कई सारे वीडियो और लोगों के आरोप हैं कि जब मुस्लिमों पर हमला हुआ तो पुलिस या तो चुप रही या फिर मॉब के साथ मिलकर दूसरे समूह पर हमला करने लगी. एक भयानक वीडियो आया जिसमें पुलिसवाला 5 घायल मुसलमानों के पास खड़ा है. वो गाली देकर उन घायल लोगों से जबरदस्ती राष्ट्रगान गाने के लिए कह रहा था. उसमें से एक व्यक्ति की बाद में मौत हो गई थी.
लॉकडाउन के दौरान भी पुलिस brutality की रिपोर्ट्स आती रहीं. वीडियो में पुलिस वाले सब्जी से भरे ठेले को पलटते दिखे, essential services देने वाले डिलीवरी बॉयज को मारते दिखे, मीट शॉप वालों और वाहन चालकों को पीटते दिखे.
लेकिन क्या पुलिस के इस रवैए के पीछे राजनीतिक हाथ था. क्या पुलिस वालों का आक्रामक रवैया पॉलिटिकल बैकिंग का नतीजा था? उत्तर प्रदेश में CM योगी आदित्यनाथ ने CAA प्रोटेस्ट के बाद 'बदला' लेने की बात कही थी. इसी के तहत उत्तर प्रदेश पुलिस ने प्रदर्शनकारियों की तस्वीरों वाले पोस्टर लगवा दिए थे.
दिल्ली में हिंसा के बाद, PM मोदी ने पुलिस कर्मियों पर हमले की निंदा की लेकिन वीडियो के सबूत और इंटरनेशनल आलोचनाओं के बावजूद पुलिसवालों पर लगे संगीन आरोपों के बारे में कुछ नहीं हुआ.
JNU में कुछ लोगों ने घुसकर छात्रों पर जानलेवा हमला किया. लेकिन पुलिस ने आरोपियों को पकड़ना तो दूर जिन पर हमला हुआ था उन्हीं पर केस ठोक दिया. आरोप ये भी लगा कि JNU के बाहर जो भीड़ जमा हुई उसने कई पत्रकारों, एक्टिविस्ट को पीटा और पुलिस मूक दर्शक बनी खड़ी रही.
लेकिन फैक्ट ये है कि जिन पुलिस वालों ने मनमाना और जरूरत से ज्यादा फोर्स का इस्तेमाल किया, उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. लॉ एंड ऑर्डर के नाम पर ये सब कुछ हुआ.
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