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रेड जोन, ऑरेंज जोन और ग्रीन जोन. कोरोना और लॉकडाउन के बीच इनकी आज देश में बड़ी चर्चा है. रेड जोन यानी बुरी हालत, ऑरेंज बीच का मामला है, हालत खराब है लेकिन ठीक करने की गुंजाइश है. ग्रीन जोन में जो हैं, वो राहत की सांस ले सकते हैं. अब जबकि मोदी सरकार 2.O का एक साल पूरा हो गया है, इस कार्यकाल के हासिल यानी रिपोर्ट कार्ड को इसी रेड, ऑरेंज और ग्रीन जोन में बांट सकते हैं क्या? हमने एक कोशिश की है.
मोदी 2.0 के पहले साल की बात करें तो जो चीज सबसे पहले दिमाग में आती है, वो है इकनॉमी. बुरी हालत. कोरोना के बाद तो कचूमर निकल गया लेकिन उससे पहले भी राहत कहां थी. कोरोना लॉकडाउन के बाद RBI ने भी मान लिया कि 2020-21 में जीडीपी ग्रोथ रेट निगेटिव में जा सकती है. लेकिन सच्चाई ये है कि 2019-20 के लिए भी सरकार का अनुमान 5% का ही था. यानी 2018-19 (6.1%) से काफी कम. कितना कम - बस ये समझ लीजिए 11 साल में सबसे कम.
जब इकनॉमी बेपटरी हो चुकी है तो रोजगार का बुरा हाल होगा ही. CIME का कहना है कि लॉकडाउन के कारण अप्रैल में ही 12 करोड़ लोगों की नौकरियां गई हैं. ये हाल तब है जब पिछले साल मई में सरकार ने आखिरकार मान ही लिया था कि देश में 45 साल में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है.
सबसे बड़ी वजह-खपत नहीं है. इकनॉमी में डिमांड की कमी की समस्या मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले साल में बहुत पहले से ही दिख रही थी. 2019-20 के दूसरे क्वॉर्टर में निजी खपत में 3.45% की गिरावट आई, अगली तिमाही में रिकवरी हुई लेकिन दूसरी का नुकासन फिर भी पूरा नहीं हो पाया. चौथे में सुधार हुआ लेकिन फिर कोरोना का हमला हो गया. और अब RBI कह रहा है कि इस साल निजी खपत गिर सकती है जो बड़ी चिंता का विषय है. तो आप ये समझिए कि जब इकनॉमी में दो साल तक डिमांड ही नहीं रहेगी तो कौन सी इंडस्ट्री क्या बनाएगी और क्यों बनाएगी? कोई ताज्जुब नहीं कि पिछले साल से ही इंडस्ट्रियल ग्रोथ नीचे जा रही है. मार्च मे तो ये गिरावट 16.7% की रही. मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, ट्रेड, होटल, ट्रांसपोर्ट, कम्यूनिकेशन फाइनेंशियल सर्विसेज, आप जहां देखिए, सरकारी अनुमान है कि 2019-20 में ग्रोथ पिछले साल से कम रहेगी.
पिछले साल एक और चीज रेड जोन में नजर आई, वो है देश की गंगा जमुनी संस्कृति, हर धर्म की बराबरी. पहली बार धर्म के नाम पर नागरिकता में सहूलियत देने की बात हुई. देश भर में CAA-NRC का विरोध हुआ. फिर दिल्ली चुनावों में खुलेआम हिंदू-मुस्लिम के बीच मंचों से नफरत बढ़ाने का काम किया गया. दिल्ली में दंगे हुए, जिसमें मासूम जिंदगियां गईं.
रेड जोन की बात हो रही है तो कोरोना फिर जेहन में आ रहा है. कोरोना ने कलई खोल दी, हमारे हेल्थ सिस्टम की. हमें एक बार फिर बताया कि हमें शायद पाकिस्तान-पाकिस्तान से ज्यादा सेहत पर समय और ऊर्जा खर्च करने की जरूरत है.
जो एक चीज थी जिसपर मोदी सरकार गुमान कर सकती थी, वो है महंगाई पर लगाम. लेकिन वहां भी पकड़ ढीली पड़ती दिख रही है. दिसंबर में खाद्य महंगाई दर में 14.1% का इजाफा हुआ जो कि नवंबर 2013 के बाद सबसे बड़ी बढ़ोतरी थी. और असल आग तो लगनी अब शुरू हुई है. तौलना चाहते हैं तो तौलिए. पिछले साल मार्च में खाने पीने की चीजें महंगी हुई थीं 0.30% और इस साल मार्च में 8.76%. महंगाई लगातार नजर रखने वाले RBI को डर लग रहा है कि आने वाले महीनों में खाद्य महंगाई दर और बढ़ सकती है. मौजूदा वजह क्या है- लॉकडाउन के कारण सप्लाई चेन का टूट जाना.
ऊपर हमने बताया कि किस तरह इकनॉमी की हालत खराब है. इसका एक बड़ा पहलू है देश में कारोबार करना अब भी मुश्किल है. 2019 में हम वर्ल्ड बैंक ईज ऑफ डुइंग बिजनेस रेटिंग में दो अंक ऊपर चढ़ें हैं लेकिन अभी कभी काफी लंबा रास्ता तय करना बाकी है. क्विंट से बात करते हुए टीमलीज के मनीष सभरवाल कहते हैं कि अगर हमें चीन से भाग रहीं कंपनियों को अपने यहां बुलाना है तो कारोबार करने को और आसान बनाना होगा, नीतिगत सुधार करने होंगे.
कई देशों के मुकाबले भारत में प्रेस की आजादी बड़ी है लेकिन हम किसी और से तुलना क्यों करें, और करें भी तो उनसे जहां हमसे बेहतर स्थिति है. मोदी सरकार में लगातार फ्री प्रेस पर लगाम के आरोप लगते रहे हैं. पिछले साल हम वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम सूचकांक में दो अंक और नीचे गिर गए. और गिरावट का ये सिलसिला सालों से जारी है. इसी क्रम में कश्मीर में इंटरनेट पर अनलिमिटेड बैन को तो रेड जोन में भी रख सकते हैं. हालांकि कोर्ट की दखल के बाद 2G की इजाजत दी गई है.
आजादी के बाद हर नेता का प्रिय जुमला रहा है गरीबी भगाएंगे. दुर्भाग्य गरीब कम होते गए लेकिन गरीबी नहीं. 2019 में प्रति व्यक्ति आय 6.8% बढ़ी है लेकिन एक सच्चाई ये भी है कि देश की 10% आबादी के पास 77% दौलत है और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की चेतावनी है कि कोरोना के कारण 40 करोड़ भारतीय गरीबी में धकेले जा सकते हैं
मोदी का परचम आज भी लहरा रहा है लेकिन कहीं कुछ तो कमी रही होगी कि बीजेपी 2019 में तीन राज्यों में चुनाव हार गई. दो जगह कुर्सी छोड़नी पड़ी और एक जगह जाते-जाते बची. ऑरेंज जोन.
ये एक ऐसा क्षेत्र रहा जहां कुछ अच्छा, कुछ बुरा अनुभव रहा. कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण हुआ तो ‘हाउडी मोदी’ और ‘नमस्ते ट्रंप’ जैसे कार्यक्रमों के जरिए मजबूत भारत की छवि बनी. दुनिया के ज्यादातर नेता इस बात के लिए मोदी से ईर्ष्या कर सकते हैं कि उन्होंने कैसे ट्रंप को अपनी डायरेक्शन में रोड शो से लेकर स्टेडियम तक में घुमा लिया. चूंकि अनुभव खट्ठे-मीठे दोनों हैं तो CAA और उसके विरोध को दबाने के लिए जिस तरह की हिंसा हुई उसकी दुनिया के कई लोगों ने निंदा की. इसी तरह चीन का कांटा अब भी दर्द दे रहा है. तो पहले कार्यकाल के मुकाबले दूसरे कार्यकाल का पहला साल कमजोर ही रहा.
तो क्या ग्रीन जोन में कुछ भी नहीं रहा? ऐसा नहीं है. जब इकनॉमी पाताल में जा रही है तो उम्मीद खेतों में उग रही है. बंपर पैदावार हुई है और सरकार ने बंपर खरीद की है. यहां तक की गेहूं खरीद का पिछला रिकॉर्ड टूटा है. सड़क निर्माण में हमने 2018 के मुकाबले 2019 में रत्ती भर कम सफर तय किया, लेकिन 2021 का टारगेट बड़ा रखा है, अच्छी बात है.
अच्छी बातें ये भी है कि कोरोना मुसीबत के साथ मौका भी लेकर आया है. चीन के बजाय भारत मैन्युफैक्चरिंग हब बन जाए तो क्या बात है. देश उम्मीद तो कर ही रहा है. हमारी टेक्नोलॉजी और कनेक्टिविटी कंपनियां अच्छा कर रही हैं.
अच्छी बात एक और ये है कि तमाम विवादों, कोरोना के बढ़ते मामलों के बावजूद हमारे देश के प्रधानमंत्री की छवि पर बट्टा नहीं लगा है. मोदी ग्रीन जोन में हैं.
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