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डेटालेस सरकार: डिजिटल इंडिया का डेटा कौन कर रहा डिलीट?

कोरोना में मौत, बेरोजगारी, काला धन सरकार के पास डेटा नहीं.

शादाब मोइज़ी
वीडियो
Published:
<div class="paragraphs"><p>अबकी बार, डेटा छिपा रही सरकार</p></div>
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अबकी बार, डेटा छिपा रही सरकार

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज

जाने मेरी जानेमन, बसपन का प्यार मेरा भूल नहीं जाना रे..
जाने मेरे सरकार, डेटा छिपाकर भूल नहीं जाना रे..
आंकड़े के बिना ही सब चंगा सी न कहना रे..


लेकिन हमारे यहां सरकारी आंकड़े या तो छिपाए जाते हैं, या बदल दिए जाते हैं या फिर ऐसा कुछ हुआ ही नहीं की धुन बजाई जाती है. पूरे देश ने कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन के लिए तड़पते लोगों को देखा लेकिन सरकार कह रही है कि ऑक्सीजन (Oxygen Crisis) की कमी से मरने वालों का आंकड़ा नहीं है. अगर आपने गिना नहीं तो क्या मौत हुई ही नहीं? बेरोजगारी से लेकर, लिंचिंग, काला धन.. डेटा नॉट अवेलेबल. अगर अबकी बार डेटा छिपाएगी सरकार तो हम पूछेंगे जरूर जनाब ऐसे कैसे?

याद है, चीन को लेकर PM मोदी दिया गया वो बयान, न कोई हमारी सीमा में घुस आया है, न ही कोई घुसा हुआ है, न ही हमारी पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है. ठीक उसी तरह एक और बयान था काला धन पर. कहा गया था कि बीजेपी की सरकार बनेगी तो विदेशी बैंको में जमें काले धन भारत लाए जाएंगे. जनता के पैसे हैं, गरीब के पैसे हैं. लेकिन अब हिंदी फिल्मों से लेकर नेताओं के भाषण में ब्लैक मनी मतलब स्विस बैंक हुआ करता था.

अब न फिल्मों में ब्लैक मनी की बात है न नेताओं के एजेंडे में. सरकार ने संसद में कहा है कि पिछले 10 सालों से स्विस बैंक में छिपाए गए काले धन यानी Black Money के बारे का कोई आधिकारिक अनुमान नहीं है. ये बातें लोकसभा में विन्सेंट एच पाला के सवालों के लिखित जवाब में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कही हैं.

'5 साल में मैला ढोने से नहीं कोई मौत'

आंकड़ा न बताने की कलाबाजी देखिए. मौत को मौत मानने को तैयार नहीं. राज्यसभा में केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने एक सवाल के जवाब में कहा कि भारत में पिछले पांच सालों में हाथ से मैला ढोने से कोई मौत रिपोर्ट नहीं हुई है. लेकिन इसी साल फरवरी के महीने में इसी Ministry of Social Justice and Empowerment ने कहा था कि पिछले पांच साल में सीवर की सफाई करते हुए 340 लोगों की जान चली गयी. या तो तब झूठ बोला गया या अब?

अब डेटा-झोल का एक और नमूना देखिए. ऑक्सीजन के लिए तड़पते लोगों की तस्वीर किसने नहीं देखी होगी. लेकिन ताजा ताजा स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया से जब ऑक्सीजन की कमी से सड़कों और फुटपाथों पर हुई मौतों के बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने लिखित जवाब में कहा- किसी भी राज्य और केंद्र शासित राज्य में ऑक्सीजन की कमी से एक भी मौत की जानकारी नहीं मिली है."

फिर वही सवाल, जानकारी मिली नहीं या चाहिए नहीं? केंद्र चाहे तो कौन सी जानकारी छिप सकती है? ऐसे में एक के बाद एक राज्य कह रहे हैं, हमसे ऐसी कोई जानकारी मांगी ही नहीं गई. दिल्ली के स्वास्थ मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा कि हमने ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों की जांच के लिए एक कमेटी बनाई थी, लेकिन उपराज्यपाल अनिल बैजल ने उसे मंजूरी नहीं दी थी.

कोरोना से हुई मौत के आंकड़े भी सवालों के घेरे में

ऐसे सरकार दावा करती है कि देश में 30 जुलाई 2021 तक कोरोना से 422662 लोगों की मौत हुई है. लेकिन श्मशान में चिताओं के शोले और शवों की लाइन कुछ और ही सच्चाई बता रही थीं. जून के महीने में यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन की एक रिपोर्ट सामने आई थी, जिसका मानना था कि भारत में कोरोना से मरने वालों की संख्या 10 लाख से ज्यादा हो सकती है.

यही नहीं अभी हाल ही में वॉशिंगटन के सेंटर फॉर ग्‍लोबल डिवेलपमेंट की जारी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में 40 लाख से ज्याद लोगों की मौत कोरोना से हुई है. सेंटर फॉर ग्‍लोबल डेवलपमेंट के मुताबिक ये रिपोर्ट सीरोलॉजिकल स्‍टडीज, घर-घर जाकर हुए सर्वे, राज्‍य स्‍तर पर नगर निकायों के आधिकारिक डेटा और अंतरराष्‍ट्रीय अनुमानों को आधार बनाया गया.

कोरोना पर रिसर्च के लिए भी सरकारी डेटा न मिलने की शिकायत एक्सपर्ट ने की... डेटा के लिए अप्रैल 2021 में पार्थ मजूमदार, एलएस शशिधर, जैकब जॉन, गौतम मेनन जैसे 200 वैज्ञानिकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा. पत्र के जरिए पीएम मोदी से अपील की गई है कि देश के वैज्ञानिकों को तमाम तरह का डेटा स्टडी करने की इजाजत मिले जिससे वायरस को और करीब से समझा जा सके और जरूरी कदम उठाया जा सके. सरकार को समझना होगा अगर डेटा होगा नहीं तो बीमारी के जड़ तक कैसे जाएंगे?

अब इनकम टैक्स रेड झेल रहे दैनिक भास्कर और दिव्य भास्कर ने भी अपनी कई रिपोर्ट में मध्य प्रदेश से गुजरात तक दिखाया था कि मौत के सरकारी डेटा और असल डेटा से बहुत-बहुत कम है.

कोरोना से मरने वाले हेल्थ केयर स्टाफ का डेटा नहीं

हमारी 'डेटा-लेस' सरकार के पास कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले और जान गंवाने वाले कोविड वॉरियर यानी हेल्थ केयर स्टाफ जैसे नर्स, वॉर्ड बॉय और आशा वर्कर का डेटा नहीं है. हवा में हवाबाजी वाले फूल बरसाए जा रहे थे लेकिन अब इन योद्धाओं की मौत के बाद इन्हें आंकड़ों में भी जगह नहीं मिली.

लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों की रास्ते में मौत, लेकिन न आंकड़ा न मुआवजा

डेटा के छुप्पम छुपाई की आदत नई नहीं है. आजादी के बाद का दूसरा सबसे बड़ा पलायन भारत ने देखा. लाखों मजदूर कोरोना के पहले लॉकडाउन के दौरान सड़कों पर थे, पैदल अपने घर जाने को मजबूर. इसी दौरान कई प्रवासी मजदूरों की रास्ते में मौत हुई. लेकिन संसद में श्रम मंत्रालय ने लिखित जवाब में कहा था कि सरकार के पास लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों की मौत का आंकड़ा नहीं है. जब आंकड़ा होगा नहीं तो मुआवजा कहां से मिलेगा. यही नहीं लॉकडाउन के दौरान कितने लोग बेरोजगार हुए इसका भी आंकड़ा नहीं है. मतलब न आंकड़ा होगा, न सवाल होगा. गैर सरकारी आंकड़े बताते हैं कि करोड़ों बेरोजगार हुए.

CMIE का डेटा कहता है कि 25 जुलाई को समाप्त हुए हफ्ते में राष्ट्रीय बेरोजगारी दर बढ़कर 7.14% हो गई, जबकि 18 जुलाई को समाप्त हुए हफ्ते में यह 5.98% थी. CMIE के मुताबिक ही अप्रैल-मई 2021 में 2.3 करोड़ लोग बेरोजगार हुए.

2019 का चुनाव साल भी आपको याद होगा कि NSO की रिपोर्ट कह रही थी कि देश में 45 साल में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है, लेकिन सरकार ने इसे मानने से इंकार कर दिया. रिपोर्ट बनाने वालों ने इस्तीफा दे दिया. ताज्जुब कि मई मेें चुनाव खत्म होते ही सरकार ने डेटा का सही मान लिया. अब खबर आ रही है कि मोदी सरकार देश में पहली बार पांच तरह का ऐसा सर्वे करा रही है, जिसके बाद देश में प्रवासी मजदूरों से लेकर घरों में काम करने वाले कामगारों के आंकड़े पता चलेंगे. इंतजार करते हैं रिपोर्ट कब तक आती है.

आंकड़े के जाल में किसान

यही नहीं, सरकार बार-बार दावा करती रही कि साल 2022-23 तक किसानों की आमदनी दोगुनी कर देंगे. ये वादा साल 2016 में किया गया था. अब सवाल ये है कि आमदनी थी कितनी और दोगुनी हुई ये कैसे पता चलेगा? क्योंकि साल 2013 के बाद से नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (एनएसओ) ने किसानों की आय को लेकर अपनी रिपोर्ट पब्लिश नहीं की है. नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद से किसानों की आमदनी को लेकर कोई सर्वेक्षण नहीं किया गया है.

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट मुताबिक साल 2019 में कृषि क्षेत्र से जुड़े 10,281 लोगों (जिसमें 5,957 किसान और 4,324 खेतिहर मजदूर शामिल हैं) ने आत्महत्या की. पिछले सालों के मुकाबले किसानों के आत्महत्या की कमी का दावा है. लेकिन किसान आत्महत्या किन वजहों से कर रहे हैं, ये सरकारों को नहीं पता. इसका कोई डेटा नहीं है. और तो और एनसीआरबी का डेटा भी करीब 3 साल की देरी से लाया गया.

अब एक और डेटा का खेल देखिए. देश में लिंचिंग और धर्म के नाम पर लागातर हत्याएं हो रही है. लेकिन NCRB की रिपोर्ट में लिंचिंग का डेटा तक नही है.

सरकार अपनी नाकामी छिपाने के लिए भले ही डेटा पर कुंडली मार कर बैठ जाए लेकिन डेटा manipulation, hiding या destroy देश की तरक्की में रुकावट है. डेटा होगा तो सही नीतियां बनेंगी, गलती सुधारी जाएंगी. देश के लोगों को सच बताना भी देशभक्ति है. झूठ बोलना या छिपाना देश के लोगों के साथ धोखा है. अगर फिर भी सरकार कोरोना से लेकर बेरोजगारी के आंकड़े देने में हिचकिचाएगी तो हम पूछेंगे जरूर, जनाब ऐसे कैसे?

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