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प्रधानमंत्री मोदी, मुख्यमंत्री योगी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को जोर का झटका लगा. ये शायद भारत के चुनाव इतिहास का सबसे नाटकीय और सबसे बड़ा उलटफेर है. इसके पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि सालभर पहले रिकॉर्डतोड़ जीत हासिल करने वाली अजेय लीडरशिप की घरेलू पिच पर इस कदर पिटाई हुई हो.
चलिए.... मैं गोरखपुर, फूलपुर और अररिया उपचुनाव के चौंकाने वाले नतीजों और वहां वोटिंग के आंकड़ों के एनालिसिस का काम अपने काबिल सहयोगियों पर छोड़ता हूं. इनमें हाल के गुजरात विधानसभा, राजस्थान और मध्य प्रदेश के उपचुनाव भी शामिल हैं.
...लेकिन मैं आगे कुछ दूसरे मुद्दों पर जाना चाहता हूं …
कई बार आंकड़े कहानी से ज्यादा रोचक होते हैं. इस पर बात करूंगा, लेकिन पहले मेरे एक राजनीतिक सवाल का जवाब दीजिए, मुझे यकीन है कि ज्यादातर लोग इसमें फेल हो जाएंगे. मैं सवाल आपके सामने रखूं, इससे पहले आइए, कुछ नियम कायदों पर रजामंदी कर लें:
भारत का सबसे ज्यादा कामयाब प्रधानमंत्री होने का दावा कौन कर सकता है?
आपके पास सही जवाब देने के तीन विकल्प हैं. तो ये हैं विकल्प:
जवाब नंबर 1: पंडित नेहरू? नहीं, हालांकि वो एक से ज्यादा बार सत्ता में लौटे, लेकिन वो बाद के कार्यकाल में पुराने जैसा जनादेश हासिल नहीं कर पाए (पहले से उनके पास भारी जनादेश था)
जवाब नंबर- 2: इंदिरा गांधी? नहीं,
कार्यकाल बीच में ही खत्म करने के बाद 1971 में उन्होंने दोबारा चुनाव जीता, लेकिन पिछले जनादेश में सिर्फ 36 परसेंट ही बढ़ोतरी कर पाईं (1967 में 259 के मुकाबले 1971 में 352 सीट)
जवाब नंबर 3: अटल बिहारी वाजपेयी? ये भी नहीं, वो 1999 में दोबारा जीतकर आए, लेकिन लोकसभा में बीजेपी की सीटें करीब करीब जस की तस ही रहीं.
तो तीन मौके आपके गवां दिए और आप सही जवाब देने में नाकाम रहे. अब कंप्यूटर जी की बारी है. और सही जवाब है.... सांस थामकर रखिए, डॉक्टर मनमोहन सिंह! वो 2009 में दोबारा चुनकर आए, तो पहले से ज्यादा जनादेश के साथ. 2004 के मुकाबले 2009 में डॉक्टर मनमोहन सिंह ने 45 परसेंट ज्यादा सीटों के साथ सत्ता में वापसी की. 2004 की 141 से बढ़कर 2009 में 206 सीट.
ज्यादातर पंडितों ने 2009 में कांग्रेस की जबरदस्त जीत की, जिस तरह समीक्षा की उसमें कुछ भी नया नहीं था, वो सबको मालूम था. जो दो वजह बार-बार बताई गईं, उनमें एक तो लगातार तीन साल 9% से ज्यादा जीडीपी ग्रोथ और दूसरा चुनाव के ऐन पहले किसानों की कर्जमाफी.
मैं भी ये मानता हूं कि कांग्रेस की जीत की ये बड़ी वजह थीं. लेकिन कई बड़ी बातों की अनदेखी की गई. मेरे हिसाब से असली वजह थी कि मनमोहन सिंह ने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के मामले में जिस तरह से राजनीतिक धमकी के सामने झुकने से इनकार किया, उसे लोगों ने बहुत पसंद किया. डॉक्टर सिंह में उन्हें ऐसा राजनेता दिखा, जो मौका पड़ने पर किसी भी धमकी के सामने झुकने वाला नहीं है. बड़े पैमाने पर बदलाव ला सकता है. क्योंकि लोग लीक पर चलने वाले राजनेताओं से बोर हो चुके थे.
अब जबकि प्रधानमंत्री मोदी और उनके मुकाबले में खड़े राहुल गांधी 2019 की लड़ाई के लिए कमर कस रहे हैं, लेकिन उन्हें ये बात ध्यान में रखनी चाहिए कि वोटर 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव, दो हफ्ते पहले हुए त्रिपुरा और पूर्वोत्तर के विधानसभा चुनाव और अलवर, अजमेर, मध्य प्रदेश, गोरखपुर, फूलपुर और अररिया उपचुनाव के जरिए उनके कान में चिल्ला -चिल्लाकर याद दिला रहा है...
हम तुम्हें दोबारा सत्ता में वापस लाएंगे, बशर्ते तुम हकीकत में हमारे लिए बदलाव लेकर आओ. हमें 2009 में इसका वादा किया गया और फिर 2014 में भी यही वादा किया गया. लेकिन मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी दोनों ने हमें निराश किया.इसलिए 2019 के लिए दोबारा तैयारी शुरू कीजिए और फॉर्मूला लाइए !
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