देश के वोटर का मूड क्या है? ये सवाल कुछ वक्त से मैं कई लोगों से पूछ रहा था. गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश चुनावों का एक मैसेज था, त्रिपुरा का दूसरा और हो सकता है कि कर्नाटक का कुछ और मैसेज हो. मेरा सवाल होता था की वोटर सरकार से खुश है या निराश है या गुस्से में है?
क्या गुस्से में है जनता?
गोरखपुर, फूलपुर और अररिया के उप चुनावों के नतीजों ने जवाब दिया है. इस रिजल्ट को एक ठीक ठाक मूड सर्वेक्षण के रूप में देखा जा सकता है. और जवाब ये है कि वो निराशा के आगे शायद गुस्से की तरफ बढ़ रहा है. उसने दिल्ली और लखनऊ की सरकारों को बड़ी चेतावनी दी है. चेतावनी ये है कि आप सरकार नहीं, सिर्फ अपना चुनाव अभियान चला रहे हैं. एक एजेंडा थोप रहे हैं जिससे हमारा कोई लेना देना नहीं है. 2014 में आपने कुछ वादे किए थे, उनको पूरा कीजिए. प्रचार और प्रवंचना के नशीले ईको चेम्बर से निकलिए.
वोटर ने ये चेतावनी 2019 के चुनावों के करीब एक साल पहले दी है. और कहां दी है? उस उत्तर भारत में, जहां से बीजेपी ने 2014 में 232 सीटें जीती थी. उस गोरखपुर के गढ़ को तोड़ा है जहां से मुख्यमंत्री आते हैं. जहां योगी आदित्यनाथ का राज चलता है. और बिहार के अररिया में बीजेपी-नीतीश के नए गठजोड़ को झकझोर दिया.
माया को नहीं डरा पाएगी CBI?
लालू यादव को जेल में डाल कर लगा कि बिहार की चुनावी जमीन साफ है तो, एक कच्चा तेजस्वी अररिया से पक कर निकल आया. मायावती सीबीआई से डरी रहेंगी, ये मिथ टूटा. एक साल पहले जिस अखिलेश को बुरी तरह से हराया उसी अखिलेश पर ऐसा क्या प्यार आ गया कि गोरखपुर और फूलपुर के वोटर ने टीपू के हाथ फिर तलवार दे दी.
यानी अगला चुनाव अब एक खुला हुआ खेल है और बीजेपी को अकेले बहुमत मिले इसकी गारंटी नहीं है. दरअसल, 2014 के बाद सारे चुनावों का निचोड़ ये है कि वोटर गठबंधन युग में लौटना चाहता है. 2019 में जिसकी भी सरकार बने, वो वास्तविक गठबंधन की सरकार होगी.
ध्रुवीकरण पर अब क्या करेगी बीजेपी?
बीजेपी की सबसे पसंदीदा स्क्रिप्ट हिंदू-मुसलमान, भारत-पाकिस्तान की थीम शायद कारगर नहीं होगी, ये चेतावनी साफ सामने आयी है. लेकिन अपनी मूल स्क्रिप्ट से बीजेपी हटेगी, ये अनुमान लगाना गलत होगा. गांव-गरीब, दलित-पिछड़ा, किसान- जवान फोकस से जनधार बढ़ाने का मंसूबा था. उसके लिए अमीर विरोधी, भ्रष्टाचार विरोधी और मिडल क्लास से दूरी का स्टैंड लिया गया. कहीं ऐसा ना हो जाए कि ना माया मिली ना राम.
वादों की डिलीवरी के सवाल को दरकिनार करने की बीजेपी की चाहत हो सकती है, लेकिन, बीजेपी का क्लेम, और वोटर अपनी जिंदगी में क्या महसूस कर रहा है ये दो अलग बातें हैं. यहां छद्म नहीं चल सकता. रोजगार और विकास के बनावटी आंकड़े नहीं बिक पाएंगे, ये है इन नतीजों का मैसेज.
फिर एक बार लालच होगा कि "जातिवाद और क्षेत्रवाद के जहर" के खिलाफ जलजला खड़ा किया जाए और हिंदुत्व का राग तेज किया जाए. हिंदुत्व की एक शानदार स्क्रिप्ट पर वोटर अपनी कलम से ये क्या रद्दोबदल करने चला आया है!
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