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वीडियो एडिटर: विशाल कुमार
वीडियो प्रोड्यूसर: कनिष्क दांगी
'Backstage: The Story Behind India’s High Growth Years' के लेखक, देश के जाने माने इकनॉमिस्ट और योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने द क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया से खास बातचीत में देश की इकनॉमिक पॉलिसी, GDP और 2G स्कैम पर चर्चा की.
पेश हैं बातचीत के कुछ अंश.
आपने अपनी किताब में लिखा है कि UPA के वक्त 10 में 8 साल 8.4% ग्रोथ के थे, बाद के साल कुछ मुश्किल और दिक्कतों से साथ गुजरे, लेकिन एक याद की तौर पर ये अब दिमाग में रह गया कि वो दौर बहुत मुश्किल भरा गुजरा है, लोगों के मन में ये है कि पिछले 10 साल में बहुत गड़बड़ हुई, अभी की सरकार भी यही कहती है कि पिछले 10 साल की स्थिति इतनी खराब थी, जनता थोड़ा धैर्य रखे हमें वक्त दे, तो क्या आप बता सकते हैं कि ये गड़बड़ी कहां हुई, साथ ही ये भी बताएं कि 8.4% की ग्रोथ की तुलना अभी की ग्रोथ से करें तो कैसा है?
लोकतंत्र में नेता और पार्टियां एक दूसरे की निंदा करते ही हैं, जो विपक्ष में हैं वो कहते हैं कि ‘सरकार बिलकुल गलत कर रही है’ और जो सत्ता में हैं वो विपक्ष को गलत बताते हैं, तो हमें अगर इसकी तुलना करनी है तो हमें पिछली कुछ बातों पर ध्यान देना होगा कि क्या हुआ था.
आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं कि पहले 7 साल बहुत ही बढ़िया थे और ये भी बात सही है कि आखिरी के कुछ 3 साल में ग्रोथ कम हो गयी थी, उसका कारण ग्लोबल कंडीशन भी थी और कुछ डोमेस्टिक भी, क्योंकि हमारी रेगुलेटरी सिस्टम है उसकी वजह से बड़े प्रोजेक्ट के क्लियरेंस रुक गए थे, पर्यावरण के कुछ मुद्दे आगे थे और दूसरा करप्शन चार्ज का बहुत नया माहौल बन गया था, और जब चुनाव हुए तो ये बड़ा मुद्दा था कि दिक्कतें कहां हैं, आपको देखना चाहिए कि क्यों और क्या चीजें हुई उस वक्त, सरकार ये क्यों नहीं समझा सकी ये दिक्कतें टेम्पररी हैं, ये पॉलिटिकल मैनेजमेंट का काम है, हमारा नहीं...
एक चीज है जो लोगों को ज्यादा याद रही है कि 2G स्कैम, CAG की रिपोर्ट आई, आपने अपनी किताब में इन सबके बारे में काफी डिटेल में लिखा है, जिस तरह से CAG की जांच हुई क्या उसको मैं कह सकता हूं कि ये बहुत बड़ी ट्रेजेडी थी, जिससे बचा जा सकता था, लेकिन उस वक्त का पॉलिटिकल क्लास अपनी बात बता नहीं पाया और इंडिया ने उसका बड़ा खामियाजा भुगता है.
मैं इससे सहमत हूं उस वक्त 2G सबसे बड़ा मुद्दा था, पॉइंट है कि CAG रिपोर्ट ने इतने बड़े-बड़े नंबर लगा दिए कि इतना नुकसान हो गया है और अगर उसे देखा जाए तो उसकी जो बेसिस थी वो बहुत ही नाजुक थी, और अगर इतना पैसा टेलीकॉम कंपनी देती तो वो बैंकों से ही लोन लेती और बैंक और भी डूब जाते, तो पॉइंट ये है कि मैं मानता हूं जो सिस्टम उन्होंने फॉलो किया था उस वक्त उसमें एक-दो गलतियां हो सकती हैं, फर्स्ट कम-फर्स्ट सर्व के बेसिस पर, काम ठीक से हुआ या नहीं लेकिन उसको अंडरप्राइज करना गलत है ये मुझे ठीक नहीं लगता, क्योंकि UPA ने भी निर्णय ले लिया था कि ट्रस्ट बहुत कम है तो इसको नीलाम करना चाहिए, लेकिन ग्लोबली नीलामी करना ग्लोबल प्रैक्टिस नहीं है.
जहां नीलामी हुई है बहुत ज्यादा बोली लगा दी और कंपनी डूब गई, तो मुझे लगता है कि CAG को देखना चाहिए कि आपने ये निर्णय लिया पॉलिसी पर इसका क्या असर पड़ा, पॉलिसी पास अच्छा असर हुआ या बुरा, तो उन्होंने वो नहीं देखा, क्योंकि अगर आप टेलीकॉम को देखें तो उस वक्त अगर किसी साधारण आदमी से पूछोगे कि ‘ये सर्विस मिल रही है इसमें कौन सी बेहतर लगती है, जो आपकी जिंदगी को बेहतर बना रही है?’ सभी कहेंगे की टेलीफोन, क्योंकि पहले टेलीफोन होते नहीं थे, फिर वो बहुत ज्यादा फैला, कॉस्ट बहुत ज्यादा गिर गई, उसका असर ये पड़ा कि बिजनेस बढ़ा, GDP भी बढ़ी.
बजट 2020 के बाद आप सुनते होंगे कि सरकार बहुत कुछ कर रही है, दूसरा ये सुनते होंगे कि इस सरकार को अर्थव्यवस्था की समझ नहीं है, तीसरा है कि उन्हें समझा है लेकिन अभी प्राथमिकता नहीं है, आप क्या सोचते हैं?
मैंने ये नहीं सोचा, लेकिन मैं ये कहूंगा कि जो बजट है ये बेसिक स्ट्रक्चरल रिफॉर्म की मैं बात कर रहा था उस पर मुझे लगता है कि कुछ काम नहीं किया गया है, क्या होना चाहिए? तो इसका जवाब है कि अगर हमें इंक्लूसिव ग्रोथ चाहिए तो हमें इन्फ्रास्ट्रक्चर पर काम करना है, हेल्थ पर काम करना है, एजुकेशन पर काम करना है और असल में हमें डिफेंस पर भी काम करना होगा खर्चा करना होगा, क्योंकि ग्लोबल सिचुएशन ऐसी आ गयी है कि हम किसी और पर निर्भर नहीं हो सकते, तो हमें अपने डिफेंस एक्स्पेंडिचर बहुत कम है उस पर काम करना है.
अगर हम उसकी तुलना GDP से करते हैं तो बहुत कम है और उस पर पेंशन बहुत ज्यादा है, अगर आप ऑपरेशनल एक्स्पेंडिचर देखेंगे तो वो बहुत कम है, उस पर भी खर्च करना होगा, तो इसे करने के लिए हमारे पास रिसोर्स चाहिए और वो ऐसे आएगी कि इकॉनमी ग्रो करे और दूसरा हमारा टैक्स सिस्टम एफिशिएंट हो और इन दोनों गोल्स को पाने के लिए हमें स्ट्रक्चरल रिफॉर्म चाहिए वरना ये होगा नहीं, और अब अगर ये नहीं होगा तो हम सपने देखते रहेंगे रिसोर्स नहीं होंगे.
वीडियो में देखिए पूरा इंटरव्यू.
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