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जिंदगी पहले ही नहीं थी आसान, महामारी में बढ़ी मुसीबत: उमर खालिद

उमर खालिद के जेल से लिखे खत को द क्विंट यहां पाठकों के लिए पढ़ रहा है

शोहिनी बोस
न्यूज वीडियो
Published:
<div class="paragraphs"><p>उमर खालिद ने जेल से लिखा लेटेर, द क्विंट ने पढ़ा</p></div>
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उमर खालिद ने जेल से लिखा लेटेर, द क्विंट ने पढ़ा

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम

वॉइस ओवर: शादाब मोइज़ी

उमर खालिद पर UAPA का चार्ज लगा. साथ ही लगा नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में हुए दंगों में शामिल होने का आरोप. इसके बाद उन्हें जेल भेज दिया गया. तिहाड़ जेल से उमर खालिद ने कोविड से संक्रमित होने को लेकर अपनी चिंता, परिवार को लेकर फिक्र और भीषण महामारी के बीच जमानत न मिलने की व्यथा बताते हुए खत लिखा है.

द क्विंट ने उमर खालिद के इस खत को पढ़ा है-

‘ऐसे लगता है जैसे जेल की कोठरी सिकुड़ रही है. घुटन और क्लेस्ट्रोफोबिया हमारे मन और शरीर को अपने कब्जे में लेता जा रहा है, मुझे घरवालों से बात करने के लिए सप्ताह में दो बार मिलने वाले पांच मिनट के फोन कॉल या दस मिनट के वीडियो कॉल का बेसब्री से इंतजार रहता है. लेकिन जैसे ही हम बातें करना शुरू करते हैं, टाइमर बंद हो जाता है और कॉल कट जाता है.’

‘हर एक सेकेंड की कीमत का एहसास मैंने इस शिद्दत के साथ कभी नहीं किया. सामान्य हालातों में भी जेल का जीवन काफी कठिन होता है. मैंने पिछले आठ महीने अकेले एक सेल (जेल की कोठरी) में पड़े-पड़े बिताए हैं. कई-कई बार तो मैं दिन में 20 घंटे से भी अधिक समय तक सेल में बंद रहता हूं.’

जेल में कोरोना वायरस को लेकर उमर खालिद लिखते हैं-

‘इस समय चल रहे घोर स्वास्थ्य संकट ने जेल के जीवन की मुश्किलें और भी कई गुना बढ़ा दी हैं. पिछले एक महीने से जब पूरा भारत कोविड-19 की दूसरी लहर से जूझ रहा है, एक भी रात ऐसी नहीं होगी, जिसे मैंने सेल में बंद रहते हुए अपने परिवार और प्रियजनों के बारे में बहुत ज्यादा चिंता के ना बिताई हो.’

कई बार हम अपना ध्यान इन चीजों की तरफ से हटाने के लिए, बहुत ज्यादा न सोचने की कोशिश करते हैं. लेकिन अनगिनत मौतों और घोर निराशा से संबंधित जो खबरें हर सुबह अखबार में छपती हैं, वे इस कदर हावी हो जाती हैं कि बुरे से बुरे विचारों को रोकना संभव नहीं होता.
उमर खालिद

‘अप्रैल महीने के बीच में मुझे यह खबर मिली कि मेरी मां और मेरे कई अन्य रिश्तेदार कोरोना से संक्रमित हुए. मेरे अंकल की हालत विशेष रूप से गंभीर थी क्योंकि उनका ऑक्सीजन का स्तर लगातार गिर रहा था और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जल्द ही उन्हें आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया.’

कोविड पॉजिटिव निकले उमर

‘अपने घर पर चल रहे स्वास्थ्य संकट के बीच एक सुबह जब मैं सो कर उठा तो मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी, मुझे बुखार था और शरीर में भयानक दर्द भी था. मैं अपनी सेहत की जांच कराने के लिए जेल की ओपीडी में गया, लेकिन उन्होंने मुझे कुछ दवाएं देकर वापस भेज दिया.’

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‘छह दिनों तक स्पष्ट लक्षणों और अदालत के आदेश के बाद मेरा कोविड टेस्ट किया गया, जो पॉजिटिव निकला. हालांकि रिपोर्ट के पॉजिटिव आने के बाद मुझे वह सभी चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराई गईं, जिनकी मुझे आवश्यकता थी और मुझे क्वारंटीन कर दिया गया.’

लेकिन स्वाभाविक रूप से मेरे क्वारंटीन होने का मतलब यह भी था कि मैं किसी भी प्रियजन को कोई भी साप्ताहिक फोन या वीडियो कॉल नहीं कर सकता था. मैं अपने सेल में लेटे हुए पूरे समय असहाय रूप से यही सोचता रहता कि मेरे घर पर क्या स्थिति होगी और यही सब सोचते-सोचते मैं कोविड-19 से उबर भी गया.
उमर खालिद

UAPA के कारण नहीं मिली आपातकाल अंतरिम जमानत

'क्वारंटीन में रहते हुए ही मैंने दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा नियुक्त उच्चाधिकार प्राप्त समिति के बारे में पढ़ा, जो पिछले साल की तरह कोविड-19 के कारण आपातकालीन पैरोल (अंतरिम जमानत) पर कैदियों की रिहाई के संदर्भ में विचार कर रही थी, पिछले साल के अपने अनुभव से यह भी जानता था और बाद में इसकी पुष्टि भी हुई कि यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए गए लोग किसी भी तरह की अंतरिम राहत के पात्र नहीं होंगे.’

हमारे लिए अपने घरवालों के पास वापस आने का एकमात्र तरीका नियमित जमानत हासिल करना है, जिसे यूएपीए के प्रावधान, निकट भविष्य में अगर लगभग असंभव नहीं, तो काफी कठिन जरूर बना देते हैं. एक कानून के रूप में, यूएपीए सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी का मजाक उड़ाता लगता है कि जमानत मिलना नियम है और जेल भेजा जाना अपवाद.
उमर खालिद

‘प्रभावी रूप से, यूएपीए एक आरोपी व्यक्ति पर अपनी बेगुनाही साबित करने की जिम्मेदारी थोपने के साथ इस सिद्धांत को सिर के बल खड़ा कर देता है और इस तरह जमानत देने के मामले में भी अपराध-सिद्ध होने की धारणा के साथ आगे बढ़ता है, वह भी बिना किसी तरह के ट्रायल (कानूनी बहस) के, ऐसा लगता है कि लंबे समय तक चलने वाले कानूनी मुकदमे अथवा ट्रायल के बाद ही हम अपने आजाद होने की उम्मीद कर सकते हैं.’

उमर खालिद चिट्ठी में बताते हैं कि उनकी और उनके जैसे कई कैदी जिन्हें UAPA में गिरफ्तार किया गया है, बहुत समय तक उनका मुकदमा ही शुरू नहीं किया गया.

‘हमारे केस में, पहली गिरफ्तारी के बाद से 14 महीने बीत चुके हैं,लेकिन फिर भी हमारा मुकदमा शुरू तक नहीं हुआ, इस तरह हमें अपनी बेगुनाही साबित करने का भी कोई मौका नहीं मिला, हम सभी 16 आरोपी इस ‘साजिश‘ के मामले में पूर्व-परीक्षण (प्री-ट्रायल) हिरासत में हैं और इस महामारी के कारण कई न्यायाधीशों, वकीलों और अदालत के कर्मचारियों के बीमार पड़ने के साथ कार्यवाही में और देरी ही हो रही है.’

'जाहिर है कि यह प्रक्रिया अपने आप में ही एक सजा है, जो प्रक्रिया सामान्य हालातों में भी बेहद धीमी गति से चलती है, वह आज की विषम परिस्थितियों में और अधिक क्रूर हो गई है, क्या केंद्र सरकार आज की विषम परिस्थितियों पर विचार करते हुए राजनीतिक बंदियों को रिहा करेगी?

‘मुझे कोई उम्मीद नहीं है, क्योंकि पिछले साल भी इस महामारी से ऐसी ही असाधारण परिस्थितियां थीं- विरोध प्रदर्शनों पर अंकुश लगा हुआ था और मीडिया का सारा ध्यान स्वास्थ्य और आर्थिक संकट पर केंद्रित था, जिसने इस सरकार को हममें से कई लोगों को- जिन्होंने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम की असंवैधानिकता के बारे में बात की थी- जेलों में ठूंसने का सही मौका दे दिया.’

आजादी पर उमर खालिद लिखते हैं कि, वो अक्सर सोचते हैं कि अगर आज वो आजाद होते तो क्या करते. मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर पर भी उन्होंने लिखा-

‘मैं अक्सर सोचता रहता हूं कि अगर हम आज आजाद होते तो हमारा जीवन कैसा होता, हम जरूरतमंदों तक उनकी व्यक्तिगत पहचान की परवाह किए बिना राहत, सहानुभूति और एकजुटता के साथ पहुंचते. फिर भी हम यहां पड़े हुए हैं, उन परिस्थितियों के बीचों-बीच जो बदसे बदतर होती जा रही हैं और हम सभी बीमारी, चिंता और नताशा के मामले में व्यक्तिगत त्रासदी से जूझ रहे हैं’

‘इस महामारी के कारण होने वाली अनगिनत मौतों के साथ-साथ विशेषज्ञों ने पिछले 14 महीनों से लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले भारी असर की ओर भी लगातार इशारा किया है, काश लोग इस संदर्भ में राजनीतिक कैदियों और हमारे परिवारों के बारे में भी सोचते, महावीर नरवाल के लिए भी सोचते जो अपने अंतिम समय में न केवल कोविड-19 से पीड़ित थे, बल्कि अपनी बेटी को आजाद देखने के लिए पिछले एक साल से इंतजार से भी जूझ रहे थे.’

‘काश लोगों ने नताशा के बारे में भी सोचा होता, जो अपने पिता के अंतिम क्षणों में भी उनके साथ नहीं थी और अब उनका अंतिम संस्कार करने के तीन सप्ताह बाद एक बार फिर उसे वापस जेल लौटना है.'

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