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दुनिया का सबसे छोटा युद्ध, जो सिर्फ 38 मिनट में खत्म हो गया

1896 में ब्रिटेन ने एक छोटे से देश जांजीबार के खिलाफ लड़ा था इतिहास का सबसे छोटा युद्ध

अज़हर अंसार
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<div class="paragraphs"><p>Anglo-Zanzibar War:&nbsp;दुनिया का सबसे छोटा युद्ध, जो सिर्फ 38 मिनट में खत्म हो गया</p></div>
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Anglo-Zanzibar War: दुनिया का सबसे छोटा युद्ध, जो सिर्फ 38 मिनट में खत्म हो गया

फोटो: Altered By Quint

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एक आम दिन, सुबह हम उठते हैं, फ्रेश होते हैं, नाश्ता करते हैं, ये सब करने में हमें कितना समय लगता है? यही करीब 30-40 मिनट. ठीक इतने ही मिनट में एक युद्ध शुरू हुआ और खत्म भी हो गया था.

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पहला विश्व युद्ध 4 साल से ज्यादा दिनों तक चला था, और दूसरा 6 साल. 11वीं से 13वीं शताब्दी में हुए धर्म युद्ध करीब 200 साल तक चले थे. दुनिया हमेशा युद्ध देखती रही है. अभी भी रूस और यूक्रेन(Russia-Ukraine War) के बीच करीब 8 महीनों से जंग जारी है. 6 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. लाखों लोग बेघर हुए हैं. ये युद्ध खत्म होता नजर नहीं आ रहा है. इसके अलावा भी रोज युद्ध के खतरे पैदा होते रहते हैं. जैसे चीन और अमेरिका में तनातनी रहती है. आर्मेनिया-अजरबैजान नागोर्नो-काराबाख को लेकर छिट-पुट हमले करते रहते हैं.

लेकिन जिस युद्ध की आज हम बात कर रहे हैं वो महज 38 मिनट में खत्म हो गया था. क्योंकि इतने में ही एक पक्ष ने अपने घुटने टेक दिए थे. इस युद्ध को इतिहास के सबसे छोटे युद्ध के तौर पर जाना जाता है.

जांजीबार द्वीपसमूह

जांजीबार दक्षिण अफ्रीका महाद्वीप के करीब एक द्वीपसमूह है और फिलहाल तंजानिया का एक अर्द्ध-स्वायत्त हिस्सा है. बात 1890 की है, जब जांजीबार ने ब्रिटेन और जर्मनी के बीच हुई एक संधि पर हस्ताक्षर किए थे. इस संधि की वजह से जांजीबार पर ब्रिटेन का अधिकार हो गया, जबकि तंजानिया का अधिकांश हिस्सा जर्मनी के हिस्से में चला गया. संधि के बाद ब्रिटेन ने जांजीबार की देखभाल का जिम्मा हमद बिन थुवैनी के हाथों में सौंप दिया, जिसके बाद थुवैनी ने खुद को वहां का सुल्तान घोषित कर दिया.

जांजीबार के सुल्तान हमद बिन थुवैनी की मौत

हमद बिन थुवैनी ने 1893 से 1896 यानी तीन साल तक जांजीबार पर अपना शासन चलाया, लेकिन 25 अगस्त 1896 को अचानक उनकी मौत हो जाती है. इनकी मौत के बाद थुवैनी का भतीजा खालिद बिन बर्गश जांजीबार आता है और खुद को जांजीबार का सुल्तान घोषित कर देता. और यहीं से होती है समस्या की शुरुआत.

चूंकि जांजीबार पर ब्रिटेन का अधिकार था, ऐसे में थुवैनी के भतीजे का जांजीबार आना और बिना उनकी इजाजत के जांजीबार की सत्ता हथिया लेना ब्रिटेन को नागवार गुजरा. ये तय संधि के भी खिलाफ था. संधि के मुताबिक जांजीबार में आने से पहले खालिद को ब्रिटिश साम्राज्य की अनुमति लेनी थी लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. ब्रिटेन ने खालिद को अल्टीमेटम दिया कि 27 अगस्त की सुबह 9 बजे तक जांजीबार छोड़कर चला जाए. खालिद ने चेतावनी को नहीं माना. और अपनी और महल की सुरक्षा के लिए चारों तरफ करीब तीन हजार सैनिकों को तैनात कर दिया.

अल्टीमेटम खत्म, युद्ध शुरू

ब्रिटेन जांजीबार को वापस अपने अधिकार में लेना चाहता था इसलिए ब्रिटेन अपनी सेना को वहां भेज भी चुका था. जिसके जनरल थे ल्योड मैथ्यू. संधि टूट चुकी थी, खालिद मानने वाला नहीं था. फिर भी ब्रिटेन की सेना ने अल्टीमेटम खत्म होने का इंतजार किया. और जैसे ही 27 अगस्त की सुबह घड़ी ने 9 बजाया जनरल ल्योड मैथ्यू ने बमबारी का आदेश दे दिया.

एक तरफ ब्रिटिश साम्राज्य की सेना थी, जिसके पास 150 जहाजों का बेड़ा और करीब 900 सैनिक थे और कई तरह के हथियार. दूसरी तरफ जांजीबार के खालिद के पास 3000 वफादार सैनिक. ब्रिटेन की बमबारी इतनी खतरनाक थी कि महज 38 मिनट में ही एक संघर्ष विराम की घोषणा हो गई और युद्ध समाप्त हो गया. अगर दोनों पक्षों के नुकसान की बात करें तो खालिद की सेना के 500 सैनिक मारे गए थे जबकि ब्रिटेन की सेना से सिर्फ एक सैनिक घायल हुआ था.

युद्ध खत्म होते ही जांजीबार फिर से ब्रिटेन के कब्जे में आ गया. माना जाता है कि खालिद महल छोड़ पीछे के दरवाजे से भाग गया था.

27 अगस्त 1896 को ब्रिटिश साम्राज्य और जांजीबार के बीच हुए इस युद्ध को ही इतिहास का सबसे छोटा युद्ध माना जाता है.

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