ADVERTISEMENTREMOVE AD

Russia- Ukraine War के बाद क्या एक और युद्ध होने वाला है?

Armenia VS Azerbaijan: सीमा पर हाल ही में हुई बमबारी और फायरिंग में दोनों देशों के 100 सैनिकों की मौत हो गई.

Published
छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

रूस-यूक्रेन युद्ध के अलावा दुनिया में एक और बड़ा युद्ध छिड़ सकता है. आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच एक बार फिर से युद्ध शुरू हो गया है. सीमा पर जारी इस लड़ाई में अभी तक दोनों देशों के लगभग 100 सैनिकों की मौत हुई है. आर्मेनिया ने दावा किया है कि उसके 49 सैनिक मारे गए हैं, जबकि अजरबैजान ने कहा कि उसके 50 सैनिकों की मौत हुई है.

0
आर्मेनिया की डिफेंस मिनिस्ट्री ने बताया कि 14 सितंबर 2022 की रात करीब 12 बजकर 5 मिनट पर हमला हुआ है. नार्गोनो काराबाख और आर्मेनिया के अलग-अलग इलाकों में हमले किए गए. जिनमें ड्रोन हमले भी शामिल हैं.

जबकि अजरबैजान के विदेश मंत्रालय का कहना है कि आर्मेनियाई सैनिकों के बड़े पैमाने पर उकसावे के जवाब में अजरबैजान ने यह कार्रवाई की. हालांकि रूस के बीच-बचाव के बाद दोनों देशों ने गोलीबारी को तत्काल प्रभाव से रोकने पर सहमति जताई है.

ये दोनों देश दो साल पहले भी नागोर्नो-काराबाख को लेकर 3 महीने की जंग लड़ चुके हैं. और इस क्षेत्र को लेकर इनके बीच समय-समय पर संघर्ष होता रहा है. दोनों देशों की तुलना भारत-पाकिस्तान से भी की जाती है. तो आखिर ये विवाद क्या है? क्यों दोनों देशों की तुलना भारत-पाकिस्तान से की जाती है?

ADVERTISEMENTREMOVE AD

नागोर्नो-काराबाख

नागोर्नो काराबाख 4400 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ एक पहाड़ी इलाका है. यह इलाका अंतरराष्‍ट्रीय रूप से अजरबैजान का हिस्‍सा है लेकिन उस पर आर्मेनिया के जातीय गुटों का कब्‍जा है. 1991 में जब सोवियत यूनियन टूटा. तो कई देश अलग हुए. इन्हीं में से आर्मेनिया और अजरबैजान भी थे. नागोर्नो-काराबाख की अधिकतर आबादी आर्मीनियाई है लेकिन सोवियत अधिकारियों ने उसे अजरबैजान के हाथों सौंप दिया. उस समय नागोर्नो-काराबाख के लोगों ने खुद को अजरबैजान से स्वतंत्र बताते हुए आर्मेनिया का हिस्सा घोषित कर दिया. नागोर्नो काराबाख की इस हरकत को अजरबैजान ने सिरे से खारिज कर दिया. इसी को लेकर दोनों देश लड़ते रहते हैं.

Armenia VS Azerbaijan: सीमा पर हाल ही में हुई बमबारी और फायरिंग में दोनों देशों के 100 सैनिकों की मौत हो गई.

नागोर्नो-काराबाख

माना जाता है कि जोसेफ स्टालिन ने आर्मेनिया को खुश करने के लिए नागोर्नो-काराबाख का सौदा किया था. जबकि, अजरबैजान का दावा है कि यह इलाका परंपरागत रूप से उसका है और वह इसे अपने देश में जरूर शामिल करेगा.

तो अब आप समझ ही गए होंगे कि दोनों देशों की तुलना भारत-पाकिस्तान के रिश्तों से क्यों की जाती है. थोडा यहां की आबादी को भी समझ लेते हैं. आर्मेनिया ईसाई बहुल देश है, जबकि अजरबैजान एक मुस्लिम राष्ट्र है.

लेकिन यहां एक बात जो समझने कि है वो ये कि नागोर्नो-काराबाख, जिस इलाके को लेकर संघर्ष होता रहता है. यहां यहां रहने वाले लोग आर्मेनियाई मूल के हैं. 1991 से पहले भी नागोर्नो काराबाख के लोग अजेरी रूल यानी अजरबैजान के कानून का विरोध करते रहे हैं. क्योंकि उसे वे अपने खिलाफ मानते थे.

नागोर्नो-काराबाख क्यों अहम है?

इसके कई भौगोलिक और रणनीतिक कारण हैं.

दक्षिणपूर्वी यूरोप में पड़ने वाली कॉकेशस के इलाके की पहाड़ियां रणनीतिक तौर पर बेहद अहम मानी जाती हैं. सदियों से इलाके की मुसलमान और ईसाई ताकतें इन पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहती रही हैं.

अजरबैजान में बड़ी संख्या में तुर्क मूल के लोग रहते हैं. ऐसे में नाटो के सदस्य देश तुर्की ने साल 1991 में एक स्वतंत्र देश के रूप में अजरबैजान के अस्तित्व को स्वीकार किया था. और तुर्की अलग अलग मौकों पर हुए संघर्षों में अजरबैजान का साथ देता रहा है.

वहीं आर्मीनिया के रूस के साथ गहरे संबंध हैं. यहां रूस का एक सैन्य ठिकाना भी है और दोनों देश सैन्य गुट कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन के सदस्य हैं.

नागोर्नो काराबाख के इलाके से गैस और कच्चे तेल की पाइपलाइनें गुजरती है इस कारण इस इलाके के स्थायित्व को लेकर जानकार चिंता जताते रहे हैं.

बहरहाल रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध का दंश झेल रही दुनिया एक और फ्रंट पर युद्ध की आशंका से परेशान है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×