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लॉकडाउन और तंगी के बीच 3,000 रु.बस किराया देकर घर पहुंचे ये मजदूर

झारखंड के इन मजदूरों ने बताया- कैसे गुजरात से अपने घर तक का सफर पूरा किया

पूनम अग्रवाल
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“हमने एक प्राइवेट बस किराये पर ली और हरेक ने 3,000 रु. किराया दिया. ”
तहल महतो, दिहाड़ी कामगार

उत्तर प्रदेश के मेरठ से करीब 60 दिहाड़ी कामगार लॉकडाउन के दौरान किसी भी हालत में घर पहुंचना चाहते थे. उनके पास ज्यादा पैसे नहीं बचे थे, और न ही कोई और विकल्प इसलिए वे झारखंड अपने घर पहुंचने के लिए निकल पड़े.

लेकिन इन बेबस कामगारों,मजदूरों को 3-3 हजार रुपये बस किराया देना पड़ा तब जाकर वे झारखंड की सीमा पर पहुंच सके. ये उनके लिए मामूली रकम नहीं थी.

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“हमारी सारी बचत खत्म हो चुकी है. हमारे पास इसके अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था. ”
गुड्डू, दिहाड़ी कामगार

बलराम कुमार वर्मा सूरत में एक दुकान में काम करते हैं. वो 2 अप्रैल को झारखंड के लिए रवाना हुए. उन्होंने और तीन सहयोगियों ने दो बाइक पर यात्रा की. उन्होंने बिना कर्फ्यू पास के चार राज्यों को पार किया: महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार. उन्होंने कहा कि उन्हें हर सीमा पर पुलिस ने रोका, उनके बारे में डिटेल लेकर जानकारी दर्ज की और फिर उन्हें आगे बढ़ने दिया गया.

लेकिन, झारखंड के गिरिडीह जिले में अपने घर से महज सौ किलोमीटर दूर, उन्हें झारखंड पुलिस ने सीमा पर पकड़ लिया.

ये जानने के बावजूद कि वे सीमा पर पकड़े जा सकते हैं, बलराम ने अपने साथियों के साथ लगभग 1,750 किलोमीटर की जोखिम भरी यात्रा की थी, क्योंकि वे पैसे की तंगी से जूझ रहे थे.

झारखंड पुलिस ने उन्हें बरही जेल में क्वॉरंटीन के लिए भेजा. बलराम ने पुलिस से अनुरोध किया कि उसे गिरिडीह में क्वॉरंटीन के लिए भेजा जाए ताकि उसका परिवार कम से कम उनसे मिलने आ सके. लेकिन उनकी गुजारिश को पुलिस ने ठुकरा दिया.

बरही जेल में प्रवासी मजदूरों-कामगारों ने कहा कि उन्हें भोजन, पानी और आराम करने के लिए जगह उपलब्ध कराई गई है.

झारखंड बॉर्डर के पास बरही में एक जेल में 380 से ज्यादा प्रवासी कामगारों को रखा गया है. ये जेल अभी नए हैं और चालू नहीं हुए हैं. चूंकि ये किसी गांव के पास नहीं है, इसलिए प्रशासन को लगा कि इसका इस्तेमाल क्वॉरंटीन सेंटर के तौर पर किया जा सकता है.

देखिए ये पूरी वीडियो रिपोर्ट.

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