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केंद्र सरकार के विवादस्पद तीन कृषि कानूनों (Farm Laws) से जब हजारों किसानों को लगा कि वे उन्हें बर्बाद कर देंगे तो नवंबर 2020 में उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी की ओर मार्च किया. तब एक एक सवाल सामने आया कि इस संघर्ष के दौरान उनकी भूख को कौन मिटाएगा? ठीक तभी जसपाल सिंह ने गाजीपुर बॉर्डर के विरोध स्थल पर लंगर लगाने की सोची.
शुक्रवार, 19 नवंबर को जैसे ही प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले की घोषणा की, उत्तर प्रदेश के बिजनौर के 60 वर्षीय किसान जसपाल सिंह जी विरोध स्थल पर जलेबी बांटते दिखे- जलेबी पीएम मोदी की घोषणा के उपलक्ष्य में नहीं बनाया गया था, लेकिन निश्चित रूप से उसने इसे और मीठा जरूर कर दिया था.
अपने आस-पास के किसानों की तरह ही उन्होंने कहा कि निर्णय की सराहना तभी की जाएगी जब सरकार आधिकारिक तौर पर इन कानूनों को वापस ले लेगी और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानूनी गारंटी प्रदान करेगी.
अपने परिवार से लगभग 200 किमी दूर सिंह कहते हैं कि ऐसी कोई कठिनाई नहीं है जिसका प्रदर्शनकारियों को सामना नहीं करना पड़ा हो.
जसपाल सिंह लगभग एक साल से साइट पर भोजन परोस रहे हैं और विरोध प्रदर्शन समाप्त होने तक लंगर जारी रखने की योजना है.
जसपाल सिंह की तरह, कई अन्य लंगर सेवाएं किसानों की बहुआयामी जरूरतों को पूरा कर रही हैं जिन्होंने अपने घरों के आराम से महीनों दूर बिताया है.
बिस्वरूप रॉय चौधरी की मेडिकल टीम की सदस्य हरप्रीत किसानों को छोटी-छोटी समस्याओं के लिए घरेलू उपचार दे रही हैं. न तो हरप्रीत और न ही डॉ चौधरी किसान आंदोलन से जुड़े हैं, लेकिन उन्होंने मदद करने का फैसला किया था क्योंकि कई प्रदर्शनकारी किसान दिल्ली में चिकित्सा देखभाल का खर्च नहीं उठा सकते थे.
हरप्रीत का कहना है कि ये दवाइयां रसोई में पाए जाने वाले चीजों से बनी हैं और तीव्र और पुरानी दोनों तरह की बीमारियों के इलाज में "कुशल" हैं.
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