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एक आम आदमी अपनी छोटी-बड़ी जरूरतों के लिए रेहड़ी पटरी वालो पर निर्भर है. फल सब्जियां से लेकर जूते पॉलिश कराने जैसी हर छोटे बड़े काम के लिए हम इन पर निर्भर रहते हैं. लेकिन हमारी ज़िंदगियों को आसान बनाने वाले इन लोगों को खुद बहुत तरह की परेशानियां झेलनी पड़ती है. दिल्ली (Delhi) जैसे शहरों में वेंडर्स के लिए सबसे बड़ी समस्या जगह की कमी है. इनके पास दुकान लगाने के लिए एक निश्चित स्थान उपलब्ध ना होने के कारण शहरों में ट्रैफिक की समस्या होती है. और पुलिस और नगर निगम द्वारा इन्हें बार-बार सड़क से हटाया जाता है.
प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो के 2020 के आंकड़ों अनुसार भारत में 18,25,776 स्ट्रीट वेंडर्स हैं, जबकि बहुत सी निजी संस्थाओं के डाटा के हिसाब से ये संख्या कई गुना ज्यादा है. नेशनल अकाउंट्स स्टैटिसटिक्स के 2019 के आंकड़ों के अनुसार, अनौपचारिक क्षेत्र देश में 86.8% रोजगार और लगभग 52.4 % GDP में योगदान देता है. जिसमें स्ट्रीट वेंडर्स का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
स्ट्रीट वेंडर्स (प्रोटेक्शन ऑफ लाइवलीहुड एंड रेगुलेशन ऑफ स्ट्रीट वेंडिंग) एक्ट 2014 .
2014 में केंद्र सरकार द्वारा यह एक्ट बनाया गया था, जो स्ट्रीट वेंडर्स को नियमित करने और उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए है. इसमें पांच मुख्य बातें कही गई हैं.
हर नगर निगम में एक टाउन वेडिंग कमेटी होगी जो कि अपने क्षेत्र में सभी स्ट्रीट वेंडर्स का सर्वे कर, उनको सर्टिफिकेट देगी. इस कमेटी में 40% स्ट्रीट वेंडर्स के चुने हुए प्रतिनिधि होंगे.
सर्वेक्षण पूरा होने से पहले किसी भी स्ट्रीट वेंडर को उसकी जगह से बेदखल नहीं किया जाएगा.
जहां तक संभव हो स्थानांतरण (Relocating) से बचना होगा, और इसके लिए निगम को 30 दिन पहले नोटिस देना होगा.
किसी वेंडर का माल जप्त किया जाता है, तो 3 दिन, और जल्दी खराब होने वाला माल 24 घंटे के अंदर छोड़ना होगा. जुर्माने के सिर्फ ₹2000 लिए जाएंगे.
टाउन वेंडिंग कमेटी के सुझाव पर जगह जगह वेंडिंग जोन बनाए जाएंगे.
जब हमने ग्राउंड पर जाकर स्ट्रीट वेंडर से बात की तो पाया कि ज्यादातर स्ट्रीट वेंडर्स को इस एक्ट या सर्टिफिकेट के बारे में जानकारी ही नहीं थी.
जसोला मेट्रो स्टेशन के पास स्ट्रीट वेंडर्स लगाने वाले मोहम्मद सलीम कहते है "कोई सर्टिफिकेट नहीं मिला है. पता रहता तो कब का बनवा लेते हम."
लाखों स्ट्रीट वेंडर्स अभी इस सरकारी सर्विस से बाहर हैं.
बहुत से स्ट्रीट वेंडर्स को वेंडिंग सर्टिफिकेट मिलने के बावजूद भी कई तरह की परेशानियां उठानी पड़ रही है.
पुराना किले पर छापे की मेहंदी लगाने वाली राजकुमारी कहती है कि वह पहले फूड आइटम्स का स्टॉल लगाती थी, जिसके लिए उन्हें वेंडिंग सर्टिफिकेट और fssai से रजिस्ट्रेशन भी मिल चुका है. लेकिन पुलिस वाले उनको यह स्टॉल लगाने नहीं देते इसलिए वे इस छोटी सी मेहंदी की दुकान लगाने को मजबूर हैं.
लक्ष्मी नगर में छोले कुलचे का ठेला लगाने वाले हेमंत कुमार को सर्टिफिकेट मिलने के बावजूद एमसीडी द्वारा हटाए जाने का डर बना रहता है क्योंकि सर्टिफिकेट में उनकी दुकान की बजाएं उनके घर का एड्रेस लिख दिया गया है.
हेमंत कुमार आगे कहते है, "सरकार से हम यही कहना चाहेंगे हमारे जो प्रॉब्लम है उनको सॉर्ट आउट करने की कोशिश करें, बढ़ाएं ना. वरना जो आदमी अभी रोड पर खड़े होकर कमाने की कोशिश कर रहा है, फिर शायद रोड पर खड़े होकर मरने की कोशिश करेगा."
दिल्ली में रेहड़ी पटरी वालों की मुश्किलें कम करने के लिए निगम द्वारा लगातार कोशिशें जारी हैं। हाल ही में दक्षिण दिल्ली नगर निगम ने 1 ऑनलाइन पोर्टल की शुरुआत की है. जिसके माध्यम से, सर्वे में छूटे हुए स्ट्रीट वेंडर्स ऑनलाइन आवेदन करके अपना सर्वे करवा सकते हैं. इस पहल पर टिप्पणी करते हुए जन पहल एनजीओ के सचिव धर्मेंद्र कुमार ने कहा है कि यह केवल आधा समाधान है पोर्टल पर आवेदन देना काफी तकनीकी है जिसको इस्तेमाल करने के लिए स्ट्रीट वेंडर्स को काफी परेशानी होगी.
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