advertisement
बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती (Mayawati) ने 30 अगस्त को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर कहा, "NDA और INDIA में ज्यादातर वो गरीब विरोधी, जातिवादी, सांप्रदायिक और अमीरों के समर्थन वाली पार्टियां हैं" और कहा कि उनके साथ गठबंधन का कोई सवाल ही नहीं है.
हाल ही में, उन्होंने कहा था कि उनकी पार्टी ने अगले साल होने वाला लोकसभा चुनाव उत्तर प्रदेश में अकेले लड़ने का फैसला किया है, क्योंकि पुराने अनुभवों से पता चलता है कि गठबंधन में जाने से ज्यादा फायदा नहीं है.
उन्होंने पहले कहा था, "हम चुनाव अकेले लड़ेंगे. हम राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और हरियाणा में चुनाव लड़ेंगे." उन्होंने इसी के साथ ये भी कहा था कि वो पंजाब और हरियाणा में क्षेत्रीय पार्टियों के साथ लड़ेंगे, "बशर्ते उनका किसी और गठबंधन के साथ कोई डील या गठबंधन न हो."
मायावती ने पार्टी के फैसलों को लेकर मीडिया से 'फेक न्यूज' न फैलाने की अपील की. अपने अगले बयान ने उन्होंने लिखा, "बीएसपी, विरोधियों के जुगाड/जोड़तोड़ से ज्यादा समाज के टूटे/बिखरे हुए करोड़ों उपेक्षितों को आपसी भाईचारा के आधार पर जोड़कर उनके गठबंधन से साल 2007 की तरह अकेले आगामी लोकसभा तथा चार राज्यों में विधानसभा का आमचुनाव लडे़गी. मीडिया बार-बार भ्रान्तियां न फैलाए."
मायावती का ये कदम विपक्ष पर तीखा हमला बोलने के कुछ दिनों बाद सामने आया है. उन्होंने कहा था कि उनकी पार्टी को ट्रांसफर वोट नहीं मिलते.
उन्होंने आगे कहा, कांग्रेस और बीजेपी की गठबंधन सरकारों ने दिखाया है कि उनकी विचारधारा, इरादे और राजनीति- दलितों, आदिवासी, मुसलमानों और अन्य पिछड़े समूहों के हितों के खिलाफ है.
कुछ दिन पहले बीएसपी के बड़े नेताओं को मीटिंग के लिए पार्टी ऑफिस में बुलाया गया था.
राजनीतिक विश्लेषक और पिछले आम चुनावों के आंकड़े दोनों इस ओर इशारा करते हैं कि अकेले चुनाव लड़ना BSP के लिए अच्छा फैसला नहीं है.
राजनीतिक रणनीतिकार अमिताभ तिवारी ने क्विंट हिंदी से कहा, "किसी तरह बीएसपी बीजेपी की 'बी-टीम' के रूप में दिखने लगी है, और ये बीजेपी विरोधी मतदाताओं के दिमाग में बैठ चुका है. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को ऐसा करवाने में बड़ी सफलता मिली है. मायावती के खुद के फैसले भी उन्हें इसी ओर ले गए हैं."
15 साल पहले पार्टी ने 206 विधायकों के साथ राज्य में बहुमत वाली सरकार बनाई थी. उस दौरान 30.4% वोट शेयर मिला था. 2022 के विधानसभा चुनावों में वोट शेयर महज 12.7% था और बीएसपी सिर्फ एक सीट जीतने में कामयाब रही.
बीएसपी ने यूपी विधानसभा में अपनी पहली एंट्री 1989 के विधानसभा चुनाव में दर्ज कराई थी. 1989 से 2007 तक, 1991 को छोड़कर हर विधानसभा चुनाव में बीएसपी की सीटें बढ़ती रही.
हालांकि, अब जब यूपी में मुख्य मुकाबला बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच ही नजर आता है तो बीएसपी के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं. अगर लोकसभा चुनाव के पहले 'INDIA' खेमे में एसपी-कांग्रेस-आरएलडी के बीच ठीक-ठाक समझौता हो जाता है, तो बीएसपी के लिए मुश्किलें और बढ़ जाएंगी.
अपने बयान में मायावती ने ये भी कहा था, "गठबंधन में जाने से बीएसपी को उत्तर प्रदेश में फायदे से ज्यादा नुकसान हो गया, क्योंकि हमारे वोट गठबंधन के सहयोगी को चले जाते हैं, लेकिन दूसरी पार्टियों के पास वो क्षमता नहीं है कि वो अपने हमें दिलवा सकें."
समाजवादी पार्टी के समर्थकों का कहना है कि ये बीएसपी है जो अपने वोट ट्रांसफर नहीं करती. वे इस तर्क का हवाला देते हैं कि बीएसपी ने एसपी से दोगुनी सीटें जीती थीं.
बीएसपी के सुधींद्र भदौरिया कहते हैं कि मायावती की घोषणा पार्टी की विचारधारा के अनुसार है.
उन्होंने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा, "चाहे पहले की बात की हो या अब की, बीएसपी अंबेडकर और कांशीराम के विचारों को मानती है. उनके सपने दशकों तक दलितों, महिलाओं और अन्य लोगों के लिए किए गए पार्टी के राजनैतिक कामों में झलकते हैं."
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पार्टी के लिए सबसे जरूरी चीज इसकी विचारधारा और संविधान है.
हालांकि, अमिताभ कहते हैं कि अगर बीएसपी अकेले चुनावों में जाती है तो ये पार्टी के लिए ज्यादा फायदेमंद नहीं है. वे कहते हैं कि अगर मायावती विपक्ष को पड़ने वाले वोटों का कुछ हिस्सा चाहती हैं तो उन्हें जरूर विपक्ष के साथ जाना चाहिए.
वे आगे कहते हैं, "यूपी-बिहार में लोग 'वोट कटवा' कहते हैं तो वो आप ही होंगे."
इसके अलावा वो कहते हैं कि क्षेत्रीय पार्टियों की एक अघोषित आयु-सीमा होती है. 1950 से 77 तक कई क्षेत्रीय पार्टियों ने चुनाव लड़े, लेकिन अब उनका अस्तित्व नहीं है, इसकी उम्र 30-40 साल रहती है.
अमिताभ ने कहा कि बहुत कम क्षेत्रीय दल आज भी हैं क्योंकि वे खुद में बदलाव करते आए हैं. क्षेत्रीय दल बंट सकते हैं, खत्म हो सकते हैं और शानदार प्रदर्शन भी कर सकते हैं. युवाओं के बीच मायावती को चंद्रशेखर आजाद की भीम आर्मी से भी चुनौती मिल रही है.
'NDA बनाम INDIA' की इस जंग में खुद को एक व्यवहार्य राष्ट्रीय विकल्प के रूप में पेश करना, BSP के लिए मुख्य चुनौती होगी.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)