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दिल्ली में RLJD चीफ उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) की केंद्रीय मंत्री अमित शाह (Amit Shah) से मुलाकात हुई और सियासी पारा बिहार का चढ़ गया. बड़ा सवाल है कि आखिर इस मुलाकात के मायने क्या हैं? अलग-अलग कयास लगाए जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि कुशवाहा NDA में शामिल हो सकते हैं. क्या ये नीतीश और महागठबंधन के लिए खतरे की घंटी है? तो वहीं कुशवाहा के आने से बीजेपी को क्या फायदा होगा?
उपेंद्र कुशवाहा और अमित शाह की मुलाकात के बाद कहा जा रहा है कि कुशवाहा जल्द ही NDA में शामिल हो सकते हैं. उनके आव-भाव से भी यही लग रहा है. हालांकि, वो कुछ भी खुलकर बोलने से बच रहे हैं.
फिर इस मुलाकात का क्या मतलब है. अब जरा क्रोनोलॉजी समझिए. इस साल जनवरी में उपेंद्र कुशवाहा से बीजेपी नेताओं ने दिल्ली में मुलाकात की थी. उस दौरान कुशवाहा नीतीश के साथ ही थे. कुशवाहा उन दिनों दिल्ली AIIMS में अपना हेल्थ चेकअप करा रहे थे. इस मुलाकात के करीब एक महीने बाद वो JDU से अलग हो गए. उन्होंने अपनी नई पार्टी- राष्ट्रीय लोक जनता दल बना ली. इसके बाद उन्होंने बिहार में विरासत बचाओ, नमन यात्रा की और जनता का मिजाज जाना. जनता की जब्ज टटोलने के बाद कुशवाहा ने शाह से मुलाकात की है, जो बिहार में नई राजनीतिक समीकरण की ओर इशारा कर रही है.
वो आगे कहते हैं कि सीटों को लेकर भी कुशवाहा और शाह के बीच बातचीत हुई है. अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी कुशवाहा को तीन सीटें देगी. एक सीट उनका काराकाट का रहेगा, दूसरा- सीतामढ़ी और तीसरा- सुपौल को लेकर बात हो रही है.
यहां एक और सवाल उठता है कि अगर कुशवाहा NDA में जाते हैं तो JDU को कितना नुकसान होगा? कहा जा रहा है कि कुशवाहा के NDA में जाने से सीधे तौर पर लव-कुश समीकरण पर असर पड़ेगा. लव-कुश समीकरण से मतलब है कुर्मी और कोइरी वोट बैंक. नीतीश कुमार कुर्मी जाति से आते हैं, वहीं उपेंद्र कुशवाहा कोइरी जाति से ताल्लुक रखते हैं. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में कोइरी जाति के 8 फीसदी लोग हैं, वहीं कुर्मी जाति के 4 फीसदी लोग हैं.
नीतीश को घेरने और लव-कुश वोट बैंक में डेंट लगाने के लिए बीजेपी ने चौतरफा प्लान बनाया है. सम्राट चौधरी को बिहार बीजेपी का अध्यक्ष बनाना भी इसी का हिस्सा माना जा रहा है. इसके जरिए भी बीजेपी की नजर कुशवाहा वोटों पर है.
अब जरा आपको कुशवाहा का अब तक का राजनीतिक सफर बता देते हैं. कुशवाहा ने 9 बार चुनाव लड़ा लेकिन जीत उन्हें सिर्फ 2 बार मिली. वह पलटी मारने में नीतीश कुमार से कम नहीं है. 2023 में अलग होने से पहले भी वो दो बार नीतीश कुमार का साथ छोड़ चुके हैं.
साल 2000 में हुए विधानसभा चुनाव में हार के बाद लालू की पार्टी का सामना करने के लिए समता पार्टी और JDU का विलय किया गया. 2003 में उपेंद्र कुशवाहा को JDU ने नेता प्रतिपक्ष बनाया.
पांच साल बाद सियासी समीकरण बदले. साल 2010 में नीतीश के न्योते पर कुशवाहा ने JDU में वापसी की. लेकिन साल 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मार्च 2013 में उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी नई पार्टी- राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बना ली. 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने NDA को अपना समर्थन दिया. मोदी लहर में उनकी पार्टी ने बिहार में तीन लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की. इसके बाद उन्हें मोदी कैबिनेट में जगह मिल गई और वो मानव संसाधन राज्य मंत्री बने.
इसके बाद उन्हें तेजस्वी यादव का साथ मिला. वे 2019 लोकसभा चुनाव में विपक्षी महागठबंधन में शामिल हुए. उन्हें 5 सीटें मिलीं, दो पर वे खुद चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. इसके बाद उन्होंने महागठबंधन का साथ छोड़ दिया. 2020 के विधानसभा चुनावों के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने एक बार फिर JDU का रुख किया. उन्होंने अपनी पार्टी RLSP का JDU में विलय करा दिया. उन्हें JDU संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया गया था. लेकिन 2023 में उन्होंने फिर अपनी अलग राह पकड़ ली.
नीतीश कुमार से अलग होकर भले ही कुशवाहा ने अपनी पार्टी बना ली हो, लेकिन उनके सामने कुछ चुनौतियां भी है. वरिष्ठ पत्रकार कुमार पंकज कहते हैं कि, कुशवाहा अपने समर्थकों को बीजेपी से जोड़ तो सकते हैं, लेकिन उसे वोट बैंक में तब्दील करना उनके लिए चुनौती होगी.
बहरहाल, कुशवाहा के दावों में कितना दम है ये तो वक्त ही बताएगा. इसके साथ ही अगले कुछ दिनों में ये भी पता चल जाएगा की बिहार कि सियासत किस ओर करवट लेती है.
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