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CAB खतरनाक, संविधान के खिलाफ-नोबेल विजेता वेंकटरमन रामकृष्णन

भारतीय मूल के नोबल विजेता रामकृष्णन वेंकटरमन नेनागरिकता संशोधन बिल की निन्दा की  

मेघनाद बोस
न्यूज वीडियो
Published:
CAB खतरनाक, संविधान के खिलाफ-नोबेल विजेता रामकृष्णन
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CAB खतरनाक, संविधान के खिलाफ-नोबेल विजेता रामकृष्णन
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: आशीष मैक्यून

नोबेल प्राइज विजेता वेंकटरमन रामकृष्णन का मानना है कि सिटिजन अमेंडमेंट बिल संविधान के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि इससे भारत बहुसंख्यकवादी देश बन जाएगा, जहां अल्पसंख्यकों की भावनाओं से बेपरवाह होकर बहुसंख्यक अपनी इच्छाएं थोपते हैं.

बता दें कि वेंकटरमन रामकृष्णन ने 2009 में केमिस्ट्री में नोबल पुरस्कार जीता है. वेंकटरमन रामकृष्णन का जन्म भारत में हुआ. पढ़ाई के लिए उन्हें विदेश जाना पढ़ा, फिलहाल उनके पास UK और US की दोहरी नागरिकता है.

अब लोग कह रहे हैं कि नागरिकता संशोधन बिल का असर भारत में रह रहे मुसलमानों और भारतीय नागरिकों पर नहीं पड़ेगा, लेकिन मूल बात यह नहीं है. मूल बात यह है कि 20 करोड़ मुसलमानों को यह कुछ ऐसा अहसास कराता है कि उनका धर्म अब दूसरे भारतीय धर्मों जितना वैध नहीं रह गया है. समरसता के लिए यह अच्छा अहसास नहीं है. पाकिस्तान और अफगानिस्तान भारत के प्रतिद्वंद्वी नहीं हो सकते
वेंकटरमन रामकृष्णन, नोबेल पुरस्कार विजेता

9 दिसंबर को गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि- क्या आप कह रहे हैं कि पाकिस्तान में मुसलमानों पर अत्याचार हो सकता है? क्या बांग्लादेश में मुसलमानों का उत्पीड़न हो सकता है? ऐसा कभी नहीं हो सकता! अमित शाह के इस दावे को रामकृष्णन खारिज करते हुए कहते हैं कि ये पूरी तरह से बकवास है. मैं विज्ञान के क्षेत्र से एक उदाहरण रखता हूं.

अब्दुस सलाम बड़े भौतिकशास्त्री थे और उन्हें उनके काम के लिए नोबेल पुरस्कार मिला. पाकिस्तान में लोगों ने उनकी कब्र का अपमान किया क्योंकि वे अहमदिया थे और इसलिए कुछ लोग उन्हें सही मुसलमान नहीं समझते थे और भी लोगों पर जुल्म हुए हैं. मैं समझता हूं कि एक पूरी कौम को इससे बाहर रखने के बजाय लोग इन बातों को केस दर केस तय कर सकते हैं.
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CAB विकास की कठिन चुनौती से ध्यान भटकाता है

रामकृष्णन कहते हैं- भारत को जिन बातों पर गर्व होना चाहिए उनमें से एक यह है कि इसके पास अत्यंत प्रबुद्ध संविधान है. इसे 1950 में लिखा गया है, फिर भी यह चमत्कारिक रूप से प्रगतिशील दस्तावेज है और यही भारत को पड़ोसी देशों से भिन्न बनाता है. भारत का प्रबुद्ध, उदार लोकतंत्र देश में हर किसी के साथ सहिष्णु है.

आज नागरिकता संशोधन बिल संविधान की भावना के खिलाफ दिखता है. यह नागरिकता की जरूरतों में धर्म को विशेष बनाता है और दूसरे धर्मों को अनुमति देते समय जानबूझकर एक धर्म को बाहर करता है. अगर भारत इन धार्मिक और सांप्रदायिक तकरार के सामने सिर झुकाता है तो यह शिक्षा, तकनीकी और आर्थिक क्षेत्र में विकास की अत्यंत कठिन चुनौती से भटकाव होगा. यह बुरा संकेत है. मैं समझता हूं कि देश के लिए बुरा है.

'भारत अब बहुसंख्यकवादी देश है'

रामकृष्णन का कहना है कि भारत को अब हमें बहुसंख्यकवादी देश कहना होगा, जहां अल्पसंख्यकों की भावनाओं से बेपरवाह होकर बहुसंख्यक अपनी इच्छाएं थोपता है. आप इसे लोकतंत्र तो कह सकेंगे लेकिन आदर्श लोकतंत्र कतई नहीं.

एक आदर्श लोकतंत्र में अल्पसंख्यकों के लिए, विरोधी विचारों के लिए सहिष्णुता होती है. यही भारत की खूबसूरती थी. बहुत गरीब देश होते हुए भी यह बहुत सहिष्णु देश रहा. इसने कभी अल्पसंख्यकों पर हुकूमत जताने की कोशिश नहीं की. यह एक ऐसा देश रहा है जहां हर कोई महसूस कर सकता था कि इस देश में उसकी भी हिस्सेदारी है.अगर आप आबादी के पांचवें या छठे भाग को अलग कर दें जो यह महसूस करता हो कि भारत में उनकी हिस्सेदारी नहीं रही, तो वास्तव में एक देश के लिए यह अत्यंत खतरनाक स्थिति हो जाती है.

रामकृष्णन भारत के नागरिक नहीं हैं तो CAB का विरोध क्यों?

जब रामकृष्णन से ये सवाल पूछा गया कि आपके पास अमेरिका-इंग्लैंड की दोहरी नागरिकता है तो आप क्यों नागरिकता संशोधन बिल का विरोध कर रहे हैं?

इस सवाल के जवाब में वेकटरमण रामकृष्णन कहते हैं,

आम तौर पर मैं भारत के राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता, अपनी राय नहीं रखता हूं. लेकिन मुझे बताया गया है कि भारतीय वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों का बड़ा समूह इस बिल के खिलाफ है. मैं उस पर हस्ताक्षर करना नहीं चाहता, क्योंकि मैं भारतीय नागरिक नहीं हूं. लेकिन, मैं एक ऐसा व्यक्ति हूं जिसका जन्म भारत में हुआ और जो वहीं पला-बढ़ा.

वेंकटरमण रामाकृष्णन कहते हैं कि मेरा मानना है कि भारत में गरीबी, पानी, ऊर्जा, अर्थव्यवस्था से जुड़ी कई समस्याएं हैं और सबसे अच्छा यही है कि सभी भारतीय एकजुट रहें और मिलकर काम करें. अगर देश का बड़ा हिस्सा अलग-थलग महसूस करता है और उसे लगता है कि देश के लिए उनका इस्तेमाल नहीं हो रहा है तो यह भारत की प्रगति के लिए अच्छा नहीं है. इसलिए मुझे लगता है कि संविधान के आदर्श वास्तव में ऐसे आदर्श हैं जो देश के साथ बने रहना चाहिए.

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