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वीडियो एडिटर: आशीष मैक्यून
नोबेल प्राइज विजेता वेंकटरमन रामकृष्णन का मानना है कि सिटिजन अमेंडमेंट बिल संविधान के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि इससे भारत बहुसंख्यकवादी देश बन जाएगा, जहां अल्पसंख्यकों की भावनाओं से बेपरवाह होकर बहुसंख्यक अपनी इच्छाएं थोपते हैं.
बता दें कि वेंकटरमन रामकृष्णन ने 2009 में केमिस्ट्री में नोबल पुरस्कार जीता है. वेंकटरमन रामकृष्णन का जन्म भारत में हुआ. पढ़ाई के लिए उन्हें विदेश जाना पढ़ा, फिलहाल उनके पास UK और US की दोहरी नागरिकता है.
9 दिसंबर को गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि- क्या आप कह रहे हैं कि पाकिस्तान में मुसलमानों पर अत्याचार हो सकता है? क्या बांग्लादेश में मुसलमानों का उत्पीड़न हो सकता है? ऐसा कभी नहीं हो सकता! अमित शाह के इस दावे को रामकृष्णन खारिज करते हुए कहते हैं कि ये पूरी तरह से बकवास है. मैं विज्ञान के क्षेत्र से एक उदाहरण रखता हूं.
रामकृष्णन कहते हैं- भारत को जिन बातों पर गर्व होना चाहिए उनमें से एक यह है कि इसके पास अत्यंत प्रबुद्ध संविधान है. इसे 1950 में लिखा गया है, फिर भी यह चमत्कारिक रूप से प्रगतिशील दस्तावेज है और यही भारत को पड़ोसी देशों से भिन्न बनाता है. भारत का प्रबुद्ध, उदार लोकतंत्र देश में हर किसी के साथ सहिष्णु है.
आज नागरिकता संशोधन बिल संविधान की भावना के खिलाफ दिखता है. यह नागरिकता की जरूरतों में धर्म को विशेष बनाता है और दूसरे धर्मों को अनुमति देते समय जानबूझकर एक धर्म को बाहर करता है. अगर भारत इन धार्मिक और सांप्रदायिक तकरार के सामने सिर झुकाता है तो यह शिक्षा, तकनीकी और आर्थिक क्षेत्र में विकास की अत्यंत कठिन चुनौती से भटकाव होगा. यह बुरा संकेत है. मैं समझता हूं कि देश के लिए बुरा है.
रामकृष्णन का कहना है कि भारत को अब हमें बहुसंख्यकवादी देश कहना होगा, जहां अल्पसंख्यकों की भावनाओं से बेपरवाह होकर बहुसंख्यक अपनी इच्छाएं थोपता है. आप इसे लोकतंत्र तो कह सकेंगे लेकिन आदर्श लोकतंत्र कतई नहीं.
जब रामकृष्णन से ये सवाल पूछा गया कि आपके पास अमेरिका-इंग्लैंड की दोहरी नागरिकता है तो आप क्यों नागरिकता संशोधन बिल का विरोध कर रहे हैं?
इस सवाल के जवाब में वेकटरमण रामकृष्णन कहते हैं,
वेंकटरमण रामाकृष्णन कहते हैं कि मेरा मानना है कि भारत में गरीबी, पानी, ऊर्जा, अर्थव्यवस्था से जुड़ी कई समस्याएं हैं और सबसे अच्छा यही है कि सभी भारतीय एकजुट रहें और मिलकर काम करें. अगर देश का बड़ा हिस्सा अलग-थलग महसूस करता है और उसे लगता है कि देश के लिए उनका इस्तेमाल नहीं हो रहा है तो यह भारत की प्रगति के लिए अच्छा नहीं है. इसलिए मुझे लगता है कि संविधान के आदर्श वास्तव में ऐसे आदर्श हैं जो देश के साथ बने रहना चाहिए.
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