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Booker Prize: कौन हैं गीतांजलि श्री, जिन्हें मिला बुकर पुरस्कार

गीतांजलि श्री बुकर प्राइज हासिल करने वाली हिंदी की पहली लेखिका हैं.

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<div class="paragraphs"><p>गीतांजलि श्री</p></div>
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गीतांजलि श्री

फोटो: सोशल मीडिया

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"मैंने कभी इंटरनेशनल बुकर प्राइज जीतने की कल्पना नहीं की थी. कभी सोचा ही नहीं कि मैं ये कर सकती हूं. ये एक बड़ा पुरस्कार है. मैं हैरान, प्रसन्न, सम्मानित और विनम्र महसूस कर रही हूं."

हिंदी की प्रसिद्ध उपन्यासकार गीतांजलि श्री के उपन्यास 'रेत समाधि' के अंग्रेजी अनुवाद 'Tomb of Sand' को साहित्य का प्रतिष्ठित बुकर पुरस्कार (Booker Prize) दिया गया है.

गीतांजलि श्री अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली हिंदी उपन्यासकार हैं. हालांकि, उनकी लेखनी का लोहा बुकर मिलने के पहले से लोग मानते रहे हैं.

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1957 में गीतांजलि पांडे के रूप में जन्मी गीतांजलि श्री ने अपना सरनेम अपनी मां के नाम से बदल दिया.

बचपन में हिंदी पत्रिकाओं में किताब के कुछ अंश पढ़ने के साथ साहित्य से उनका जुड़ाव हुआ

आउटलुक को दिए एक इंटरव्यू में गीतांजलि श्री कहती है..

"मेरा बचपन यूपी के अलग-अलग शहरों में बीता ,जहां मेरे पिता एक सिविल सर्वेंट के रूप में तैनात हुए. मेरे चारों तरफ... हिंदी ही हिंदी थी."

गीतांजलि ने दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्री राम कॉलेज और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से आधुनिक भारतीय इतिहास का अध्ययन किया.

जापानी और लैटिन अमेरिकी साहित्य से लेकर भारतीय स्थानीय लेखकों तक गीतांजलि ने सभी प्रकार के साहित्य को पढ़ा. उन्होंने मुंशी प्रेमचंद के काम पर केंद्रित अपनी पीएचडी थीसिस लिखते हुए हिंदी का भी अध्ययन किया.

'यह विचार कि मैं एक लेखक हूं बचपन से मेरे साथ है! सालों तक यह साफ नहीं था कि मेरा हिंदी और अंग्रेजी से क्या रिश्ता है और दोनों में से मेरा 'रचनात्मक' माध्यम कौन सा है'
आउटलुक को दिए एक इंटरव्यू में गीतांजलि

'बेल पत्र' से लेखनी की शुरुआत

गीतांजलि श्री पिछले तीन दशक से लेखन की दुनिया में सक्रिय हैं. उनकी पहली कहानी 'बेल पत्र' 1987 में साहित्यिक पत्रिका हंस में प्रकाशित हुई थी. लेकिन 1991 में उनकी लघु कहानियों के संकलन 'अनुगूंज' के प्रकाशन के बाद उन पर लोगों का ध्यान गया तब से, उन्होंने कई लघु कहानियां और उपन्यास लिखा.

उनके 1993 के उपन्यास 'माई' से उन्हें और भी प्रशंसा मिली.इसका कई भाषाओं में अनुवाद किया गया.

'माई' के अंग्रेजी में आने के एक साल से भी कम समय में मैंने इतनी समीक्षाएं, इंटरव्यू और फोटो खिंचवाए, जितने हिंदी में आने के दस साल में नहीं हुए!'
आउटलुक को दिए एक इंटरव्यू में गीतांजलि

इसके बाद 1998 में आई 'हमारा शहर उस बरस' और 2001 में आई 'तिरोहित' को भी मिली काफी सराहना मिली. जिसने गीतांजलि श्री को देश की साहित्यिक दुनिया में एक अलग पहचान दिलाई.

2022 में उनकी बुक रेत समाधि ने अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई है.

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