Home Videos विनिवेश के ‘मारुति मॉडल’ से सरकार हो सकती है मालामाल
विनिवेश के ‘मारुति मॉडल’ से सरकार हो सकती है मालामाल
आजादी के 70 साल बाद आखिरकार हमारी ब्यूरोक्रेसी को समझ आया कि मालिकाना हक और नियंत्रण को मिलाना ठीक नहीं है.
राघव बहल
वीडियो
Published:
i
निर्मला सीतारमण 80’ में भारत सरकार और जापान की सुजुकी मोटर कॉर्पोरेशन के जॉइंट वेंचर डील से ले सकती हैं सीख!
(फोटो:Shruti Mathur/The Quint)
✕
advertisement
वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
वीडियो प्रोड्यूसर: सोनल गुप्ता
कैमरापर्सन: शिवकुमार मौर्या
हम सरकार नियंत्रित संस्थानों में केस टू केस बेसिस पर अपनी हिस्सेदारी 51% से कम करने पर विचार कर रहे हैं. हम 51% सरकार की हिस्सेदारी की नीति को बदलकर 51% संस्थान और सरकार की हिस्सेदारी की नीति पर आना चाहते हैं.
निर्मला सीतारमण, वित्त मंत्री
5 जुलाई 2019 के लंबे बजट भाषण के 97वें पैरा में जब मैंने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को यह कहते सुना तो कुर्सी पर तनकर बैठ गया. क्या! मोदी 2.O देश के अक्षम पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स (पीएसयू) के निजीकरण के लिए मान गई है और उसने अब तक के सबसे बड़े स्ट्रक्चरल रिफॉर्म का ऐलान कर दिया है?
कंट्रोल छोड़िए, ओनरशिप रखिए
टेलीविजन सिग्नल में गड़बड़ी की वजह से मैं जो शब्द नहीं सुन पाया था, जब मैंने उन्हें पढ़ा तो मेरा उत्साह ठंडा पड़ गया: ‘लेकिन इन कंपनियों पर सरकार अपना कंट्रोल बनाए रखेगी.’ सरकार के सचिव का यह बयान सुनने के बाद तो इस मामले में बचा-खुचा जोश भी हवा हो गया.
‘कंपनी पर कंट्रोल के लिए 51 पर्सेंट हिस्सेदारी जरूरी है, हम इस नीति को छोड़ने जा रहे हैं. पहली बार 51 पर्सेंट स्टेक और कंट्रोल को अलग किया जा रहा है. हम इन कंपनियों में हिस्सेदारी 51 पर्सेंट से कम करने को तैयार हैं, लेकिन इसके बावजूद इन पर नियंत्रण बनाए रखेंगे.’
अतनु चक्रवर्ती, सचिव, दीपम
मेरा सिर भन्ना रहा था और मैं फिर से कुर्सी पर धंस गया था. आजादी के 70 साल बाद आखिरकार हमारी ब्यूरोक्रेसी को समझ आया कि मालिकाना हक और नियंत्रण को मिलाना ठीक नहीं है. मैडम, सच कहूं तो मुझे इस बात की खुशी है. अगर यह आजादी पहली पीढ़ी के उद्यमियों को दी जाए तो उनमें कुछ करने दिखाने का जज्बा काफी बढ़ जाएगा, लेकिन मैडम अभी तो आपने डंडे का गलत सिरा पकड़ रखा है. आप चाहें तो सरकारी कंपनियों का मालिकाना हक अपने पास रखिए, लेकिन प्लीज, प्लीज कंट्रोल छोड़ दीजिए.
अगर आपको मेरी बात पर भरोसा नहीं है तो मारुति उद्योग लिमिटेड का इतिहास देखिए, जो शायद देश का शायद सबसे सफल विनिवेश है.
मारुति: देश का सबसे सफल विनिवेश
सरकार ने जापान की सुजुकी मोटर कॉरपोरेशन के साथ मिलकर इस कंपनी को शुरू किया था और तब यह शेयर बाजार में लिस्टेड नहीं थी
सरकार कंपनी में मेजॉरिटी शेयरहोल्डर थी, लेकिन सुजुकी को 26 पर्सेंट हिस्सेदारी के साथ कंपनी पर मालिकाना हक दिया गया था
1982 और 1992 में सुजुकी को कंपनी में हिस्सेदारी बढ़ाने की मंजूरी मिली, पहले उसने इसे 26 से बढ़ाकर 40 और बाद में 50 पर्सेंट किया
सरकार की कंपनी में करीब बराबर की हिस्सेदारी थी, लेकिन उसने सुजुकी को अधिक कंट्रोल दिया और बदले में कई बेशकीमती छूट मिली. इसमें विदेशी बाजार तक अधिक पहुंच और भारतीय प्लांट्स में कंपनी के ग्लोबल मॉडल्स का निर्माण शामिल था. इन कदमों की वजहों से कंपनी के वैल्यूएशन में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई
इसके बाद सरकार ने एक और धमाका हुआ. कंपनी ने 400 करोड़ का बड़ा राइट्स इश्यू पेश किया और सरकार ने सुजुकी की खातिर इसमें अपने हिस्से के शेयर छोड़ दिए. इससे कंपनी को बिजनेस बढ़ाने के लिए बड़ा फंड मिला और सुजुकी को नियंत्रण हिस्सेदारी. लेकिन जरा रुकिए, सरकार के भी हाथ खाली नहीं थे. उसे सुजुकी को कंपनी का नियंत्रण सौंपने की एवज में 1,000 करोड़ रुपये का भारी-भरकम प्रीमियम मिला. इसके साथ वह सुजुकी को 2,300 रुपये प्रति शेयर के भाव पर ऑफर फॉर सेल अंडरराइट करने के लिए तैयार कर पाई
आखिरकार कंपनी लिस्ट हुई (और देश की सबसे कीमती ऑटो कंपनी बनी) और सरकार को इसमें निवेश पर शानदार ROI (रिटर्न ऑन इनवेस्टमेंट यानी निवेश पर मुनाफा) मिला- यह इस वजह से हुआ क्योंकि वह मालिक बनी रही, लेकिन उसने कंट्रोल छोड़ दिया. इस वजह से पार्टनर सुजुकी को ज्वाइंट वेंचर में भारी वैल्यू क्रिएट करने में मदद मिली
इसलिए मैडम, प्लीज आप मारुति के तजुर्बे से सीखिए (पहले की सरकारें भी अक्लमंद थीं, सारी समझदारी सिर्फ मोदी 2.0 के पास ही नहीं है). आप अपनी कंपनियों का नियंत्रण छोड़िए और मालिक बने रहिए.