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ब्रजेश ठाकुर बलात्कार का आरोपी फिर पत्नी-बेटी उसके पक्ष में क्यों?

आखिर वो कौन सी वजहें कि हैं कि महिलाएं सब कुछ जानते हुए भी अपने परिवार में मौजूद बलात्कारियों का साथ निभाती हैं?

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आखिर वो कौन सी वजहें हैं कि महिलाएं सब कुछ जानते-बूझते हुए भी अपने परिवार में मौजूद बलात्कारियों और यौन उत्पीड़कों का साथ निभाती हैं? भारतीय परिवार ऐसे अपराधियों को जान-बूझकर संरक्षण क्यों देता है? भारत में यह चलन आम है और इसका अपवाद रेयर है. बलात्कार के ज्यादातर मामलों में यह पाया गया है कि परिवार आरोपी के पक्ष में खड़ा होता है और आरोपियों के मुकदमे परिवार ही लड़ता है.

इससे भी गंभीर बात है कि परिवार की महिलाएं, खासकर मां, पत्नी और बेटी भी पीड़ित महिला के साथ न होकर उस व्यक्ति के साथ होती हैं, जिस पर बलात्कार का आरोप है या दोष सिद्ध हो चुका है. ऐसे वाकये कम ही सुनने में आते हैं, जब परिवार और परिवार की महिलाओं ने बलात्कार के आरोपी का साथ देना बंद कर दिया हो.

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ब्रजेश ठाकुर के बचाव में पत्नी और बेटी

मुजफ्फरपुर में बालिका गृह यौन उत्पीड़न और बलात्कार कांड में हालांकि अभी जांच चल रही है, लेकिन इस केस के मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर की पत्नी और उसकी बेटी ब्रजेश ठाकुर के बचाव में सामने आ गई हैं. दोनों के पास अपने तर्क हैं, जिनका सही या गलत होना अभी सिद्ध नहीं है, इसलिए केस के मेरिट पर कोई टिप्पणी करना उचित नहीं होगा, लेकिन यह बात तो साफ नजर आ रही है कि ब्रजेश ठाकुर की पत्नी और बेटी का व्यवहार बाकी केसों में महिला परिजनों के व्यवहार से मिलता-जुलता है.

पत्नी और बेटी इस बात का इंतजार नहीं कर रही हैं कि ब्रजेश सिंह के केस में कोई फैसला हो जाए या चार्जशीट फाइल हो जाए, उसके बाद ही वे इस मामले में कोई पक्ष लें. उनके सामने यह रास्ता है कि वे केस में ब्रजेश ठाकुर का न तो समर्थन करें और न ही विरोध और कानूनी प्रक्रिया के पूरा होने का इंतजार करें.

लेकिन हो यह रहा है कि जहां पत्नी “भला है, बुरा है, जैसा भी है, मेरा पति मेरा देवता है” वाली मुद्रा में हैं, वहीं बेटी “माई फादर इस द बेस्ट” के अंदाज में पिता का बचाव कर रही हैं.

इस मामले में गौर करने वाली बात है कि इस मामले में वे स्त्री जाति या समुदाय के साथ खड़ी नहीं हो रही हैं. बरसों पहले जो बात नारीवादियों द्वारा कही गई थी कि “जो भी साड़ी पहनती हैं, वे बहने हैं,” वह यहां गलत साबित हो जाती है. प्राचीन भारतीय परिवार संस्था की मजबूती के सामने स्त्री एकता या स्त्री मुक्ति जैसा आधुनिक विचार धराशायी नजर आते हैं.

ऐसा होने की वजह क्या है? आखिर ऐसा क्यों होता है कि भारतीय परिवारों में खासकर महिलाएं अपने परिवार के पुरुषों द्वारा किए जाने वाले यौन अपराधों को लेकर पीड़ितों का पक्ष नहीं लेतीं? यहां तक कि दोष सिद्ध हो जाने और सजा सुना देने के बाद भी महिलाएं अपने परिवार के पुरुषों को खारिज नहीं करतीं और जेल से उनके छूटकर आने का इंतजार करती हैं.

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कमाने का मुख्य दायित्व पुरुषों पर

इसकी पहली वजह तो शायद यह है कि भारतीय परिवारों में कमाने का मुख्य दायित्व पुरुषों पर है और महिलाएं किसी हालत में नहीं चाहेंगी कि उनके परिवार की आमदनी का मुख्य स्रोत उनसे छिन जाए.

अगर पुरुष ने कोई गलत काम किया भी है तो इसकी सजा के तौर पर पुरुषों का जेल जाना या मृत्युदंड परिवार की महिलाओं और बच्चों के लिए भी सजा है. भारत में वर्कफोर्स में महिलाओं का हिस्सा लगभग 25 फीसदी के आसपास है और हर चार में से एक महिला भी इसलिए काम कर पाती हैं कि परिवार इसकी इजाजत देता है.

पति अगर जेल चला जाए तो ऐसी हालत में पत्नी का काम पर जाना रुक जा सकता है. पति तमाम बुराइयों के साथ परिवार के साथ रहे यह भावनात्मक से कहीं ज्यादा, आर्थिक मामला है.
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पति या पुरुष के बिना परिवार की कल्पना कठिन

भारतीय समाज व्यवस्था में परिवार संस्था के केंद्र में पुरुष है. महिलाओं के बिना परिवार का अस्तित्व संभव है. महिलाएं फिर आ जाती हैं, लेकिन पुरुष के बिना परिवार नहीं चलते. इसलिए बेटे को समाज में इतना अधिक महत्व दिया जाता है कि लोग पांच या छह या सात बेटियों के बाद भी एक बेटे की कामना करते हैं.

समाज में सुरक्षा के लिए भी परिवार में पुरुष का होना अनिवार्य माना जाता है. बिना पुरुष वाले घर की महिलाए यौन उत्पीड़न की आसान शिकार होती है.

इसलिए भी परिवार की महिलाएं कई बार यह जानते हुए भी दोष उनके पति या बेटे का है, पीड़ित के साथ खड़ी नहीं होतीं. यह उनके लिए नैतिकता या अनैतिकता का नहीं, अपने स्वार्थ और अपने अस्तित्व का मामला होता है.

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बलात्कार को लेकर सांस्कृतिक प्रशिक्षण में दोष

भारतीय संस्कृति में बलात्कार को बुरा तो माना गया है लेकिन इसका मुख्य दोषी महिला को माना गया है और सजा भी उसकी ही ज्यादा है. अगर धर्मग्रंथों/मिथकों से मिसाल लें तो ऐसे कई मामले हैं, जब ऋषियों ने लड़कियों से यौन संबंध बनाए और इसे कोई बुरी बात नहीं माना गया.

यहां तक कि जब इंद्र ने अहिल्या के साथ छल से संबंध बनाया तो उनके पति ने इंद्र को पूजा के अधिकार से वंचित होने का शाप दिया. अहिल्या ज्यादा सख्त सजा की हकदार बनी और उसे पत्थर हो जाना पड़ा.

ये कथाएं सुनकर बड़ा होने वाला समाज और उसके लोग अगर बलात्कार के लिए लड़कियों के कपड़ों या उनकी जीवन शैली को दोषी ठहराएं तो यह स्वाभाविक बात है. यही सांस्कृतिक प्रशिक्षण परिवार की महिलाओं को भी प्राप्त होता है. बल्कि कथा और जागरण सुनने में महिलाएं ज्यादा आगे रहती हैं.

इसलिए ब्रजेश ठाकुर की पत्नी सहजता से कह पाती है कि बालिका गृह में आने वाली लड़कियां ही गलत थीं. कोई प्रेम में भागकर आती थीं तो कोई वेश्यावृत्ति के अड्डो से छुड़ाकर लाई जाती थीं. ब्रजेश की पत्नी के तर्क का विस्तार यह है कि ऐसी लड़कियों या बच्चियों के आरोपों का कोई मतलब नहीं है क्योंकि वे तो हैं ही वैसी.

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अच्छी औरत होने का मतलब

लड़कियों को बचपन से यह सिखाया जाता है कि पति के साथ हर हाल में खड़ा होना. दुख, सुख हो या संकट, पति का साथ निभाना है. इसलिए जब पति बलात्कार करके आता है और इस वजह से संकट में होता है तो महिलाएं वही करती हैं, जो उन्हें बचपन से सिखाया जाता है. हर हाल में पति का साथ देने वाली महिलाओं को आदर्श महिला माना जाता है. इसलिए महिलाएं बलात्कारी पति का साथ देकर अच्छी महिला बन रही होती हैं.

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(लेखिका भारतीय सूचना सेवा में अधिकारी हैं.इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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