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वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम
40 साल की मोमिरन नेस्सा को फॉरनर्स ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशी घोषित किए जाने के बाद करीब 10 साल तक असम के एक डिटेंशन सेंटर में रखा गया. उनका आरोप है कि कोकराझार के डिटेंशन कैंप में जेल अधिकारियों ने उन्हें एक इंजेक्शन दिया जिससे उनका गर्भपात हो गया.
मोमिरन को नवंबर 2019 में डिटेंशन सेंटर से रिहा किया गया, इसलिए नहीं कि वो अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने में सफल रही, बल्कि मई 2019 में आए सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश ने असम सरकार को उन लोगों को रिहा करने के लिए मजबूर किया जिन्हें 3 साल से ज्यादा हिरासत में रखा जा चुका था. इसके साथ एक शर्त थी कि रिहा होने के बाद हिरासत में रहे लोग हर हफ्ते पुलिस के सामने पेश होंगे.
उन्हें उनके पति के अंतिम संस्कार में शामिल होने से भी रोका गया.
हालातों पर अफसोस करती मोमिरन कहती हैं, मैंने कोई गलती नहीं की. मेरे सारे कागजात व्यवस्थित हैं. जब वो मेरा नाम वोटर लिस्ट में डाल रहे थे, तब उन्होंने मेरे नाम के आगे ‘D’ लिख दिया. सरकार ने हमें बड़ी परेशानी में डाल दिया. मेरे परिवार ने काफी कुछ सहा है. मेरे पति अपने पीछे दो बच्चे छोड़ गए हैं. मैं उनकी देखभाल कैसे करूंगी? मेरे पास कुछ नहीं है.
मोमिरन की कोई आमदनी नहीं है. उनके 3 बच्चों की देखभाल उनके भाई कर रहे हैं. वो सरकार से मदद की आस रखती हैं.
मोमिरन का केस असम NRC की प्रक्रिया में खामियों को उजागर करता है और ये बताता है कि अगर NRC पूरे देश में लागू हुआ तो क्या हो सकता है! देखिए ये वीडियो रिपोर्ट.
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