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ये गंगा है. काशी के घाटों के किनारे की तस्वीर. बड़े-बड़े वादों और हकीकत की कड़वी तस्वीर.
मोदी सरकार के चार साल पूरे होने के बाद भी गंगा तक कोई भी योजना नहीं पहुंच सकी. गंगा सफाई के लिए विशेष मंत्रालय तक बनाया गया, लेकिन वाराणसी में गंगा का जलस्तर अब तक के इतिहास में सबसे निचले स्तर पर है.
नेताओं से लेकर उद्योगपतियों ने घाटों पर बड़े-बड़े कार्यक्रम किए. सफाई को लेकर कई योजनाओं का ऐलान हुआ, लेकिन गंगा राजनीति के जाल में फंस गई.
अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के महामंत्री स्वामी जितेन्द्रानंद कहते हैं:
फ्रांस के राष्ट्रपति के दौरे के समय गंगा में पानी छोड़ा गया था. लेकिन अब गंगा सूख रही है. गंगा में पानी छोड़ने के लिए डीएम ने चिट्ठी लिखी है.
तीन दशक से भी पहले गंगा सफाई अभियान की शुरुआत हुई थी. लेकिन गंगा का प्रदूषण कम नहीं हुआ. अविरल और निर्मल गंगा की बात सिर्फ बयानों में है. गंगा में प्रदूषण कम नहीं हुआ, बल्कि बढ़ा है. गंगा का वजूद खतरे में है.
तूफानी अंदाज में की गई गंगा सफाई की सरकारी योजनाएं कहीं हवा तो नहीं हो गईं?
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