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गंगा में पूरी आस्था लेकिन इतने प्रदूषित जल में कैसे करें आचमन

2525 किलोमीटर लम्बी गंगा नदी के बेसिन में 45 करोड़ की आबादी बसती है.

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भारतीय संस्कृति में आस्था की प्रतीक गंगा नदी को निर्मल और अविरल माना जाता है. लेकिन बनारस के घाटों से अब ये गंगा दूर जा रही है. प्रदूषण ने गंगा को कदम पीछे खींचने पर मजबूर कर दिए हैं. डर है कहीं बढ़ता प्रदूषण गंगा को एक दिन विलुप्त होने के कगार पर न पहुंचा दे. क्विंट ने बनारस के गंगा घाटों पर बढ़ रहे प्रदूषण की पड़ताल की.

आईआईटी बीएचयू के रिटायर्ड प्रोफेसर यूके चौधरी का कहना है कि गंगा नदी का जल पीने योग्य ही नहीं, अब नहाने योग्य भी नहीं है. बनारस के सभी घाटों का जल गंदा हो गया है.

अस्सी घाट से लेकर सफेद घाट तक गंगा जल काला हो गया है. बल्कि अस्सी घाट पर जल से दुर्गंध आती है. यहां सफाई के नाम कुछ नहीं होता.
यूके चौधरी, रिटायर्ड प्रोफेसर, IIT BHU

वो गंगा जिसमें स्नान से पापों से मुक्ति मिलने की मान्यता है, आज खुद बीमार है. बनारस के घाटों पर गर्मियों की तरह सर्दियों में भी गंगा सिकुड़ रही है.

भीमगौड़ा बैरेज से पहले मैक्सिमम छह हजार क्यूबिक फीट पानी निकला जाता था अभी दस हजार क्यूबिक फीट निकाला जा रहा है. उसके अलावा और भी बहुत जगहों से जल निकाला जा रहा है. जल का इतना अधिक दोहन संसार के किसी भी नदी का 95 या अधिक जल दोहन नहीं होता.
यूके चौधरी, रिटायर्ड प्रोफेसर, IIT BHU

गंगा के बेसिन में 45 करोड़ की आबादी बसती है. गंगा पर कई डैम और बैराज बने हैं जिसकी वजह से बनारस में काफी कम पानी पहुंच रहा है. गंगा में प्रवाह और पानी कम होने की वजह से प्रदूषण बढ़ रहा है.

प्रो. यूके चौधरी साल 1976 से गंगा पर काम कर कर रहे हैं. उन्होंने अपने घर पर ही प्रयोगशाला बना रखी है.

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