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वीडियो प्रोड्यूसर: अनुभव मिश्रा
वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहिम और विवेक गुप्ता
प्रधानमंत्री मोदी अक्सर अपने ‘ऐतिहासिक कदमों’ का जिक्र करते हैं. देश के पहले पोस्ट-ट्रुथ बजट के साथ इसमें एक खतरनाक कदम जुड़ गया है.
संसद में बजट पेश किए जाने के ठीक 18 घंटे पहले नाटकीय ढंग से देश के पिछले दो वित्त वर्ष के जीडीपी को बढ़ाया गया. वित्त वर्ष 2016-17 के जीडीपी आंकड़ों को ‘अपग्रेड’ करने में सबसे अधिक बेशर्मी दिखाई गई, जिस साल नोटबंदी से अर्थव्यवस्था तबाह हो गई थी.
खैर, सरकारी आंकड़ों में सब कुछ खुशनुमा है. जीडीपी के संशोधित आंकड़ों को देखने पर तो लगता है कि 500 और 1,000 के जिन नोटों को अमान्य घोषित किया गया था, उनसे 4 घंटे में (लोगों को पुराने नोटों का इस्तेमाल करने के लिए सिर्फ इतना ही समय मिला था, जिसके बाद उनकी वैल्यू टॉयलेट पेपर से भी कम हो गई थी) लोगों ने इतनी खरीदारी की कि फाइनल प्राइवेट कंजम्पशन एक्सपेंडिचर की दर 7.3 पर्सेंट से बढ़कर 8.2 पर्सेंट हो गई. ट्रेड, होटल, ट्रांसपोर्ट और कम्युनिकेशन क्षेत्र को तो जैसे पंख लग गए थे. इनकी ग्रोथ को पिछले अनुमान से 0.40 पर्सेंट अधिक दिखाया गया है.
लेकिन आंकड़ों में हेराफेरी...माफ कीजिएगा, ‘संशोधन’ यहीं नहीं रुका.
अगले साल कृषि क्षेत्र की ग्रोथ 3.4 पर्सेंट से बढ़कर 5 पर्सेंट पहुंच गई (ये 50 पर्सेंट की चौंकाने वाली बढ़ोतरी. मैं स्तब्ध हूं. आखिर ग्रामीण क्षेत्रों में समृद्धि जब इतनी बढ़ रही थी तो उसका पता जमीनी स्तर पर आंकड़े जुटाने वाले क्यों नहीं लगा पाए?).
इसका नतीजा क्या हुआ? 2017-18 के संशोधित आंकड़ों में जीडीपी ने कम से कम कागजों पर आधा पर्सेंट की चौंकाने वाली छलांग लगाई. इन आंकड़ों की मानें तो देश के किसान खुशी से झूम रहे हैं.
बजट पढ़े जाने से कुछ घंटे पहले जादुई ढंग से भारत के इस साल के नॉमिनल जीडीपी में 3.5 लाख करोड़ से अधिक की बढ़ोतरी हो गई. इसकी क्या अहमियत है? सारे जरूरी आंकड़ों के लिए यह डीनॉमिनेटर है. इसमें फिस्कल डेफिसिट भी शामिल है. इसलिए जीडीपी बढ़ाने से आप बजट की सारी नाकामियों को छिपा सकते हैं. फिस्कल डेफिसिट भले लक्ष्य से अधिक हो, लेकिन आप दुनिया से कह सकते हैं ‘पहले के अनुमान से संशोधित जीडीपी अधिक है, इसलिए हम इस मामले में सुरक्षित जोन में हैं.’ फिस्कल डेफिसिट को जीडीपी के पर्सेंटेज के रूप में देखा जाता है. इसलिए जीडीपी डेटा बढ़ाने से डेफिसिट अपने आप कम हो गया. मान गए गुरु.
इसकी पोल वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने खोली. जब उन्हें वित्त वर्ष 2019 में 3.3 पर्सेंट के फिस्कल डेफिसिट टारगेट को लेकर घेरा गया तो जवाब मिला, ‘अब हमारे पास जीडीपी के संशोधित आंकड़े हैं. इस लिहाज से 2019-20 में जीडीपी 225 लाख करोड़ रुपये रहेगी, जिसे पहले हमने 220 लाख करोड़ माना था. संशोधित जीडीपी के लिहाज से अगले साल फिस्कल डेफिसिट 3.1 पर्सेंट रहेगा.’ जीडीपी एक अनुमान है. इसलिए अगर आप कुछ चीजों को बदलें तो इसमें भी बदलाव किया जा सकता है. मान गए गुरु.
गंभीरता से कहूं तो मोदी सरकार ने जीडीपी के साथ जो किया है, वह परेशानी की बात है. पिछले साल 2012 को बैक सीरीज मानकर पिछले आंकड़ों को अपग्रेड करने की वैज्ञानिक पहल शुरू हुई थी. ‘अफसोस’ इसमें यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान जीडीपी ग्रोथ 10 पर्सेंट से अधिक हो गई. यह 2006-07 में रिकॉर्ड 10.08 पर्सेंट और 2010-11 में 10.3 पर्सेंट रही थी. मोदी सरकार को इससे शर्मिंदगी उठानी पड़ी. लिहाजा, इस पूरी पहल को खत्म करके नई मेथडोलॉजी तय करने के लिए चीयरलीडर्स को लाया गया. फिर एक चमत्कार हुआ. यूपीए सरकार के दौर में ग्रोथ औंधे मुंह हो गई और मोदी सरकार के कार्यकाल में कुलांचे भरने लगी. यहीं से अर्थव्यवस्था पर झूठ बोलने की शुरुआत हुई.
मेरे मन में एक सवाल घूम रहा है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी ने अर्जेंटीना की राष्ट्रपति क्रिस्टीना फर्नांडीज डी किर्चनर (और उनके दिवंगत पति नेस्टर किर्चनर) का नाम सुना है? वे अर्जेंटीना के महंगाई दर के आंकड़ों में हेराफेरी के लिए बदनाम हैं. मैं यहां उनके बारे में अंतरराष्ट्रीय पत्रिका फोर्ब्स के एक लेख का जिक्र कर रहा हूं (30 जनवरी 2015): 2016 में सालाना महंगाई दर 10 पर्सेंट के करीब पहुंच गई थी. अब नेस्टर किर्चनर की सरकार फ्रॉड में माहिर हो गई है. जनवरी 2007 में वास्तविक महंगाई दर को छिपाने के लिए राष्ट्रपति ने कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स और नेशनल स्टैटिस्टिक्स एंड सेंसस इंस्टीट्यूट के एक्सपर्ट्स को निकाल दिया. इन लोगों ने महंगाई दर को गलत तरीके से कम दिखाने से इनकार कर दिया था. किर्चनर ने यह काम अपने दरबारियों को सौंप दिया है.
क्या ऐसी खबर आपने अपने देश में सुनी है? भारत के नेशनल स्टैटिस्टिक्स कमीशन (एनएससी) के दो सदस्यों ने हाल में बेरोजगारी दर के आंकड़ों में छेड़छाड़ से इनकार करते हुए इस्तीफा दे दिया और किस तरह से उनकी जगह नीति आयोग के सरकार के दरबारियों ने ले ली? है न डराने वाली बात. अब आप दिल तोड़ने वाला यह गीत गुनगुनाना मत शुरू कर दीजिएगा- डॉन्ट क्राई फॉर मी, अर्जेंटीना...
मोदी जी क्या हम भारत को अर्जेंटीना के रास्ते पर ले जाना चाहते हैं? आपके राष्ट्रवादी तेवर को देखते हुए इस तरह की अटकलें भी नहीं लगनी चाहिए थीं.
संदिग्ध जीडीपी डेटा के अलावा, भारत का बजट ‘कैश एकाउंटिंग’ की आदिम पॉलिसी पर आधारित है. इस वजह से नौकरशाहों को आंकड़ों में हेराफेरी करने में आसानी होती है. मैं यहां इसके कुछ उदाहरण दे रहा हूं :
सरकार को अब एक्रुअल और कंसॉलिडेटेड एकाउंटिंग को अपना लेना चाहिए. यह एक बुनियादी सुधार है. जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक बजट में नीचे दी गई चीजों की जानकारी ईमानदारी से दी जानी चाहिए:
अगर ये रिफॉर्म नहीं होते तो फर्जीवाड़े का यह खेल चलता रहेगा और फरेबी बजट पेश किए जाते रहेंगे. वैसे, स्वाभाविक तौर पर समझदार इस देश की जनता मई 2019 में हस्तक्षेप कर सकती है.
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