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'स्त्री' एक हॉरर कॉमेडी है जो मध्य प्रदेश की एक मशहूर लोककथा पर आधारित है. इसमें एक औरत की कहानी है, जिसकी मौत पुरुषों के उस पर किए गए जुल्मों की वजह से हो जाती है. इसके बाद वो शहर के सभी आदमियों से बदला लेने के लिए आत्मा के रूप में वापस लौटती है.
विकी के किरदार में राजकुमार राव अपने दर्जी पिता का इकलौता बेटा है. वो सभी तरह के अंधविश्वासों का मजाक उड़ाता है और खुद को "मॉडर्न लड़का" कहता है. पिता को उसपर बहुत गर्व है और वो उसे "भगवान का दर्जी रूपी अवतार" मानते हैं. सिलाई मशीन पर अपने असरदार स्किल्स के चलते विकी ने "चंदेरी का मनीष मल्होत्रा" का ओहदा हासिल किया है.
अपने महिला ग्राहकों की सटीक माप का अंदाजा वो महज उन्हें एक नजर घूरकर ही लगा लेता है और 'इकत्तीस मिनट' में एक लहंगे की सिलाई कर सकता है.
इस मनोरंजक फिल्म में राज निदिमोरु और कृष्ण डीके के बेहतरीन लेखन ने अच्छी कॉमेडी तैयार की है. रात को सुनसान अंधेरी सड़क पर चलते हुए पुरुष खुद को महफूज नहीं पाते और महिलाएं अपने पतियों या बेटों को रात में अपने घरों से बाहर नहीं निकलने और दरवाजा बंद करने के लिए कहती हैं.
स्त्री में आइटम सॉन्ग हैं, सेक्सुअल कंटेंट की ओर इशारा करने वाले सीन हैं, हॉरर सीन हैं, लेकिन ये कभी भी अपनी हदों को नहीं लांघती. यही डायरेक्टर अमर कौशिक की सबसे बड़ी जीत है.
श्रद्धा कपूर ने अपने किरदार के साथ पूरी तरह इंसाफ किया है. हालांकि कॉमेडी के लिहाज से उन्हें फिल्म में ज्यादा मौके नहीं मिल पाए. इसलिए ये काम राजकुमार राव पर छोड़ दिया गया है, जिन्होंने अपने किरदार के जरिए इस काम को बखूबी पूरा किया.
अपारशक्ति खुराना और अभिषेक बनर्जी ने भी अपने असरदार एक्टिंग से अच्छी कॉमेडी की है. यहां तक कि महज कुछ सींस में नजर आए पंकज त्रिपाठी भी अपने खास मस्तमौला अंदाज से अच्छी छाप छोड़ने में कामयाब हुए. कुल मिलाकर एक अच्छी स्क्रिप्ट और अच्छी अदाकारी के साथ 'स्त्री' एक बढ़िया मनोरंजक फिल्म है. इसे देखने जाएंगे तो आपको मलाल नहीं होगा.
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