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(क्या पीएम मोदी के स्टार सांसदों के गांवों को गोद लेने से उनके ‘अच्छे दिन’ आ गए? सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत इन गोद लिए गए गांवों का क्या हाल है, देखिए क्विंट की ग्राउंड रिपोर्ट.)
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने साल 2014 में सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत एक गांव गोद लिया. ये गांव है- मध्य प्रदेश के विदिशा का अजनास गांव. इस गांव की आबादी है करीब 6 हजार. गांव के सरपंच के मुताबिक, गांव में कई सारे डेवलपमेंट प्रोजेक्ट पास किए गए हैं लेकिन उनपर काम शुरू नहीं हो सका है. हॉस्पिटल बनाने के लिए जमीन ली जा चुकी है, लेकिन कंस्ट्रक्शन का काम अभी नहीं शुरू हो सका है. गांव में शौचालय भी बने हैं लेकिन ये 6 हजार की आबादी वाले गांव के लिए पर्याप्त नहीं हैं.
हमारे सांसदों के गांव:अच्छे दिन? क्विंट हिंदी की इस खास सीरीज में ये पांचवां गांव है जिसके हालात हम आपको दिखा रहे हैं. इससे पहले हमने मथुरा से सांसद हेमा मालिनी, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद, पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद प्रधान के गोद लिए गांवों पर भी रिपोर्ट पेश की थी.
सांसदों से उम्मीद की जाती है कि वो अपने गोद लिए गांवों को बेहतर और आदर्श बनाने की दिशा में काम करेंगे. इनमें से कुछ लक्ष्य हैं:
इस योजना के तहत सरकार का उद्देश्य मार्च 2019 तक हरेक संसदीय क्षेत्र में तीन गांवों को आदर्श ग्राम बनाना था जिसमें से कम से कम एक गांव को 2016 तक ही ये लक्ष्य हासिल करना था.
गांव के सरपंच का दावा है कि गांव में अच्छी खासी संख्या में टॉयलेट बन गए हैं, इसलिए खुले में शौच से ये गांव मुक्त है.
ये सही है कि गांव में टॉयलेट बने हैं, लेकिन क्या सिर्फ 90 टॉयलेट करीब 6 हजार की जनसंख्या वाले गांव के लिए काफी है? जो टॉयलेट नए भी बने हैं उनमें से कई में दरवाजे तक नहीं लगे, ऐसे में इसका इस्तेमाल नहीं हो सकता.
कुछ गांववालों को टॉयलेट के लिए पैसे देने का वादा किया गया था, लेकिन मिल नहीं सका.
अजनास में एक पुराना स्वास्थ्य केंद्र है जो अक्सर बंद ही रहता है, चार साल पहले नए अस्पताल के लिए जमीन मुहैया कराई गई थी. लेकिन साल बीतते गए अब तक कंस्ट्रक्शन का काम होते नहीं दिख रहा है.
इस पुराने अस्पताल में बस एक नर्स है. ऐसे में गांववालों को इलाज के लिए पास के शहर में जाना पड़ता है.
सिर्फ अस्पताल का ही नहीं, अजनास गांव में स्कूल का भी यही हाल है. पिछले 4 साल से ये स्कूल भी निर्माणाधीन है. बच्चे पुरानी इमारत में पढ़ने को मजबूर हैं.
गांव की कुछ सड़कें सीमेंटेड हैं लेकिन ज्यादातर सड़कों पर नालियों का पानी बहकर सड़क तक आता दिखता है.
गांव में स्ट्रीटलाइट्स लगाने के लिए करीब 13 लाख खर्च किए गए. इनमें से ज्यादातर अब काम नहीं करते और जो काम करते हैं वो कभी बंद ही नहीं किए जाते.
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