(क्या पीएम मोदी के स्टार सांसदों के गांवों को गोद लेने से उनके ‘अच्छे दिन’ आ गए? सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत इन गोद लिए गए गांवों का क्या हाल है, देखिए क्विंट की ग्राउंड रिपोर्ट.)
2014 में आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बिहार की राजधानी पटना से करीब 30 किलोमीटर दूर अलावलपुर गांव को गोद लिया था. सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत इस गांव को गोद लिया गया. चार साल बाद, कुछ महिलाएं गांव में आईटी क्षेत्र में हुए विकास से तो खुश हैं लेकिन ज्यादातर गांव वालों के लिए पानी, सड़क और सफाई जैसे एक सपना हों.
क्विंट हिंदी की खास सीरीज- हमारे सांसदों के गांव:अच्छे दिन? इससे पहले हमने मथुरा से सांसद हेमा मालिनी और लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के गोद लिए गांवों पर भी रिपोर्ट पेश की थी.
‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ के उद्देश्य?
सांसदों से उम्मीद की जाती है कि वो अपने गोद लिए गांवों को बेहतर और आदर्श बनाने की दिशा में काम करेंगे. इनमें से कुछ लक्ष्य हैं:
- शिक्षा की सुविधाएं
- साफ-सफाई
- स्वास्थ्य सुविधाएं
- कौशल विकास
- जीवनयापन के बेहतर मौके
- बिजली, पक्के घर, सड़कें जैसी बुनियादी सुविधाएं
- बेहतर प्रशासन
इस योजना के तहत सरकार का उद्देश्य मार्च 2019 तक हरेक संसदीय क्षेत्र में तीन गांवों को आदर्श ग्राम बनाना था जिसमें से कम से कम एक गांव को 2016 तक ही ये लक्ष्य हासिल करना था.
कंप्यूटर हैं, शौचालय नहीं
रवि शंकर प्रसाद ने गांव में एक कॉल सेंटर शुरू किया. गांव की ही कुछ महिलाओं को यहां साढ़े तीन हजार रुपये की तनख्वाह पर नौकरी मिली है.
करीब 10 लड़कियों को जॉब मिली है. कंप्यूटर के बारे में जानकारी मिली है.गुजरात, हरियाणा दिल्ली जैसे अलग-अलग राज्यों के लोगों से बात करने का मौका मिलता है.लवली कुमारी, निवासी, अलावलपुर
गांव में 90 फीसदी आबादी राजपूतों की है जो पक्के घरों में रहते हैं. लेकिन दलितों के पास बुनियादी सुविधाएं तक नहीं.
हम लोगों के टोली में न पानी की सुविधा है न ही मोटर पंप. हमारे पास कोई सुविधा ही नहीं है. नाली में कचरा भरा हुआ है. न ही शौचालय है न ही घर.सुनैना देवी, निवासी, अलावलपुर
किसी भी स्कीम (SAGY) के बारे में किसी ने कुछ भी नहीं बताया. हमारी परवाह किसी को नहीं है. हम लोगों से उन्हें कोई फायदा नहीं, वो हमें नीचे रखते हैं.रमेश दास, मजदूर, अलावलपुर के निवासी
स्वास्थ्य सुविधाओं का बुरा हाल
इस गांव के जो संपन्न लोग हैं वो तो स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए नजदीक के शहर में चले जाते हैं. लेकिन बाकी लोगों को गांव में मौजूद स्वास्थ्य सुविधाओं पर ही निर्भर रहना पड़ता है. जब हमने गांव के कम्युनिटी सेंटर की पड़ताल की तो वहां जानवरों के खाने का चारा और भूसा भरा हुआ था.
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