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वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
'असली किसान खेत में होते हैं, विरोध प्रदर्शन नहीं करते.. खालिस्तानी कहीं के…'
'असली डॉक्टर हॉस्पिटल में मरीजो को इलाज करते हैं.. हड़ताल नहीं.. अर्बन नक्सल..'
'असली छात्र पढ़ाई करते हैं… धरना नहीं.. और हां सरकारी नौकरी नहीं है तो प्राइवेट जॉब करो.. ये क्या मुंह उठाकर सरकार से नौकरी मांगने चले आए.. सरकार है या प्लेसमेंट सेल.. कामचोर कहीं के.. पीटो इन्हें.. जेल में डालो..'
जी हां, यही ट्रेंड चल रहा है. पहले वैकेंसी नहीं, फिर किसी तरह वैकेंसी निकल भी जाए तो एग्जाम में देरी, एग्जाम हो तो पेपर लीक. किसी तरह एग्जाम हो भी गया तो ज्वाइंनिंग लेटर में देरी.. और इन सबमें छात्रों का साल दर साल बर्बाद हो और जब इन मुद्दों पर छात्र आवाज उठाए तो डंडे, घूंसे, मानसिक उत्पीड़न.. लेकिन वोट के टाइम में लंबे लंबे वादे.. इसलिए इन वादों से मुकरने पर हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?
उत्तर प्रदेश और बिहार में रेलवे भर्ती बोर्ड की गैर तकनीकी लोकप्रिय श्रेणियों यानी (RRB-NTPC) के रिजल्ट और ग्रुप D के दूसरे फेज की परीक्षा के खिलाफ अभ्यर्थियों ने जमकर प्रदर्शन किया. कहीं रेल रोकी गई तो कहीं सड़कों पर उतरे. मामला इतना बढ़ा कि पुलिस और छात्र आपने सामने आ गए. बिहार के सीतामढ़ी में तो प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिए पुलिस ने फायरिंग तक कर दी. कहीं पुलिस वॉटर कैनन चला रही है तो कहीं टियर गैस.
बिहार में हुए विरोध की हवा यूपी पहुंच गई. यूपी के इलाहाबाद में छात्रों ने ट्रेन रोक दिया तो बिहार के गया में ट्रेन में आग लगा दी गई. फिर तो पुलिस पीटना शुरू कर दिया, हॉस्टल में लॉज में.
छात्र सोशल मीडिया पर अपनी आवाज उठाते रहे तबतक न रेलवे वोर्ड जागी, न नेता जागे. जब छात्र सड़क पर उतरे तो सबकी नींद खुल गई. रेल मंत्रालय ने NTPC और लेवल वन परीक्षा पर फिलहाल रोक लगा दी साथ ही रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि इस पूरे मामले पर हाई पावर कमेटी का गठन किया गया है. लेकिन छात्रों के मन में सवाल है कि क्या कमेटी के सहारे आंदोलन को कंफ्यूज करने की कोशिश या है या सच में कोई हल निकलेगा?
इसके अलावा विरोध प्रदर्शन जब हिंसक हुआ तो रेलवे ने कैंडिडेट्स को धमकी तक दे डाली. 25 जनवरी को रेलवे की तरफ से चेतावनी जारी की गई कि अगर अभ्यर्थी रेलवे के काम में बाधा उत्पन्न करेंगे और रेलवे की संपत्ति को नुकसान पहुंचाएंगे तो उनके ऊपर कानूनी कार्रवाई की जाएगी और उन्हें पूरी जिंदगी रेलवे की नौकरी नहीं मिल पाएगी. मतलब तीन साल छात्रों का बर्बाद कर दिया उनकी उम्र निकल रही है, परिवार की उम्मीदें टूट रही हैं लेकिन किसी की ज़िम्मेदारी तय नहीं हो रही है.
दो करोड़ नौकरी का वादा करने वाली सरकारों का दावा भी जान लीजिए.
पटना के एक लॉज में घुसकर पुलिस अपने डंडे की अकड़ दिखा रही है. सिर्फ रेलवे ही नहीं टीचर से लेकर पुलिस भर्ती तक में कभी घपला तो कभी पेपर लीक. इसलिए सवाल साफ और सीधा है सरकारी नौकरियों के प्रोसेस में इतना वक्त क्यों लगता है? बार-बार गड़बड़ियों की खबर क्यों आती है? कौन जिम्मेदार है? जिन छात्रों का साल बर्बाद हो रहा है उनके लिए सरकारें क्या करेंगी? क्या जानबूझकर सरकारी नौकरियों के प्रोसेस को कमजोर किया जा रहा है? और अगर आपका जवाब डंडा है तो इस देश में हर बेरोजगार पूछेगा जनाब ऐसे कैसे?
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