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फोर्थ ग्रेड जॉब के लिए भटकते बेरोजगार बागी क्यों हुए? सालों की सिसकियां चीख बनीं

RRB, REET, JPSC, UPTET, व्यापम- सरकारी नौकरी खोजते युवाओं के साथ धोखा जैसे सिस्टम बन चुका है

संतोष कुमार
नजरिया
Updated:
<div class="paragraphs"><p>फोर्थ ग्रेड जॉब के लिए भटकते बेरोजगार बागी क्यों हुए? सालों की सिसकियां चीख बनीं</p></div>
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फोर्थ ग्रेड जॉब के लिए भटकते बेरोजगार बागी क्यों हुए? सालों की सिसकियां चीख बनीं

(फ़ोटो: Altered by Quint Hindi)

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पटना और प्रयागराज में जो हुआ, वो क्यों हुआ? 'अंधों का हाथी' वाले किरदारों की तरह देखेंगे तो पता चलेगा कि छात्र तोड़फोड़-आगजनी पर उतरे इसलिए हॉस्टल, लॉज में जाकर पुलिस को पराक्रम दिखाना पड़ा. कोचिंग वालों ने बहका दिया, इसलिए छात्र आंदोलन करने लगे. लेकिन ग्रुप डी, मतलब चतुर्थ श्रेणी, मतलब सरकारी नौकरी में सबसे निचले पायदान की पगार पर कामगार बनने के लिए मजबूर पीएचडी-एमबीए-इंजीनियरिंग कर चुके छात्र इतने उग्र क्यों हो गए?

बेरोजगारों को बागी किसने बनाया?

पटना, रांची, लखनऊ, दिल्ली, भोपाल, जयपुर, प्रयागराज, वाराणसी जैसे शहरों में कॉलेजों के पास, यूनिवर्सिटियों की ओट लेकर खड़े लॉज-हॉस्टल के एक-एक कमरों में चार-चार, छह-छह की तादाद में रहने को मजबूर लड़के. उस कमरे में एक अदद बल्ब के नीचे प्रतियोगिता दर्पण में धंसी आठ-आठ आंखें. किसी भाई को बहन की पढ़ाई पूरी करानी है. किसी बहन को भाई की फीस भरनी है. किसी को बूढ़े पिता का मोतियाबिंद ऑपरेशन कराना है. किसी की उम्र निकली जा रही. किसी की शादी नहीं हो रही. किसी की शादी हो गई है तो वो पत्नी की छोटी-छोटी जरूरतों के लिए मां-बाप से पैसे मांगता शर्म के मारे मरता है. नौकरी की तैयारी में जवानी गला रहे विद्यार्थी जो इस स्टेज में अभ्यर्थी कहे जाते हैं...आखिर इन बेचारों को क्या सूझी कि ट्रेन जलाने लगे, पटरियां उखाड़ने लगे, 'पत्थरबाज' हो गए?

ब्लैक होल में गुम नौकरी की उम्मीद

रेलवे की परीक्षा में RRB की मनमानी तो उस बड़े ब्लैक होल का अंश मात्र है, जिसमें युवाओं का फ्यूचर गुम हो रहा है. ये सब राज्य निरपेक्ष चल रहा है यानी सत्ता में कोई हो, एक सा स्वभाव है-छात्रों से दुश्मनों वाला बर्ताव है. बिहार-यूपी में रेलवे के बवाल के बीच दो हेडलाइन और हैं जो तथाकथित मेनस्ट्रीम मीडिया और देश के नाम पर अपने आकाओं का एजेंडा सेट कर रहे एंकरों से मिस हो गई हैं.

  • राजस्थान में REET पेपर लीक, पास हुए 11 लाख अभ्यर्थियों की नौकरी पर तलवार.

  • 25 जनवरी को झारखंड हाईकोर्ट ने JPSC मेन्स की 28 जनवरी को होने वाली परीक्षा पर रोक लगा दी.

जरा सोचिए राजस्थान में परीक्षा पास कर तैनाती की तारीख का इंतजार कर रहे लाखों युवाओं पर क्या बीती होगी? जरा सोचिए प्रीलिम्स पास कर JPSC मेन्स की तैयारी में महीनों से आंखें फोड़ रहे छात्रों पर क्या बीत रही होगी?

एक ही कहानी बार-बार दोहराई जा रही

RRB, REET, JPSC....ये तीन 'वारदातें' ही छात्रों की हालत बयां करने के लिए काफी हैं लेकिन अगर आपसे ये कहा जाए कि ये वारदातें देश में एक लूप की तरह चल रही हैं तो क्या कहेंगे? कोई 'सीरियल किलर' की तरह छात्रों के करियर को कुचल रहा है. मंदिर-मस्जिद, लव जिहाद, पाकिस्तान के प्राइम टाइम शोर में गुम हो गईं इन सुर्खियों को याद कीजिए.

यूपी

2021 में यूपी में शिक्षक भर्ती की परीक्षा (UPTET) के पेपर पिछले साल लीक हुए. 2018 में पावर कॉरपोरेशन परीक्षा के पेपर लीक हुए. उसी साल पुलिस महकमे में भर्ती परीक्षा, अधीनस्त सेवा चयन बोर्ड परीक्षा, हेल्थ डिपार्टमेंट में प्रोमशन के लिए परीक्षा और हैंडपंप ऑपरेटर के लिए परीक्षा के पेपर लीक हुए. 2017 में सब इंस्पेक्टर भर्ती के पेपर लीक हुए.

यूपी में पेपर लीक जैसे परंपरा बन गई

(ग्राफ़िक्स: धनंजय कुमार)

राजस्थान

पिछले तीन साल में राजस्थान लोकसेवा आयोग और कर्मचा​री अधीनस्थ सेवा बोर्ड 26 परीक्षाओं को रद्द कर चुका है. इनमें से कर्मचारी अधीनस्थ बोर्ड ने तीन परीक्षाओं में पेपर लीक होने को कारण माना है. बाकी परीक्षाओं को प्रशासनिक कारण बता कर रद्द कर दिया गया. इन परीक्षाओं में बैठने के लिए लाखों अभ्यार्थियों ने आवेदन किए थे. राजस्थान में रीट के अलावा सब इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा, कांस्टेबल भर्ती, जेईएन, पटवारी चयन परीक्षाओं पर भी तलवार लटकती दिखाई दे रही है. ज्यादातर परीक्षाओं में नकल गैंग सामने आया है या फिर परीक्षा करवाने में तंत्र की लापरवाही उजागर हुई है.

इसी हफ्ते की खबर है कि राजस्थान के धोलपुर में नमो नारायण मीणा नाम के एक शख्स ने दस साल सरकारी नौकरी की तैयारी करने के बाद खुदकुशी कर ली. 2012 में आयुर्वेद कंपाउंडर की 1600 भर्तियां निकलीं. सरकार बदली और 1000 पदों को समाप्त कर दिया गया.

नमो नारायण मीणा के सुसाइड नोट का हिस्सा

(फ़ोटो: Accessed by Quint Hindi)

झारखंड

जिस JPSC की मेन्स परीक्षा के स्टे की बात हमने आपको ऊपर बताई, उसकी कहानी तो और भी भयानक है. इसकी 16 परीक्षाएं सीबीआई जांच के दायरे में है. 20 साल में सिर्फ 6 एग्जाम करवाए जा सके हैं. या तो मामला भ्रष्टाटार में फंस जाता है या फिर कोई और गड़बड़ी हो जाती है. आयोग के एक चेयरमैन तो भ्रष्टाचार के आरोप में जेल तक जा चुके हैं.

मध्य प्रदेश

व्यापम यानी व्यवसायिक परीक्षा मंडल, जिसे अब PEB यानी प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड नाम दे दिया गया है. व्यापम मेडिकल, इंजीनियरिंग में प्रवेश के लिये परीक्षाएं आयोजित कराने के अलावा राज्य सरकार की नौकरियों परीक्षाएं आयोजित कराता था. व्यापम में भ्रष्टाचार के खिलाफ 2009 में इंदौर के चिकित्सक और सामाजिक कार्यकर्ता आनंद राय ने हाई कोर्ट में याचिका डाली. पता चला कि नेता, अफसर, मंत्रियों ने पैसे लेकर नौकरियां और मेडिकल-इंजीनियरिंग की सीटें बेचीं. इसके लिए खाली कॉपियों को परीक्षा के बाद रंगा गया, कुछ के नाम सीधे रिजल्ट में जोड़ दिए गए.

इस व्यापम कांड के बाद 46 लोगों की मौत हो गई थी. इनमें जांच से जुड़े लोगों के अलावा गवाहों, छात्रों, कॉलेज के डीन और इस खबर की तह तक जाने का प्रयास करते पत्रकार शामिल हैं.

व्यापम का नाम PEB कर दिया गया, लेकिन बदनाम अब भी है. फरवरी 2021 में PEB ने कृषि विस्तार अधिकारी, ग्रामीण विस्तार अधिकारी और स्टाफ नर्सिंग भर्ती परीक्षा करवाई. धांधली के आरोप लगे. आरोप सही पाए गए और अगस्त 2021 में परीक्षाएं रद्द कर दी गई.

देश में रोजगार की स्थिति

(ग्राफिक्स: धनंजय कुमार)

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नौकरी का वादा देंगे, नौकरी मांगोगे तो पीट देंगे-क्रोनोलॉजी

करियर के साथ कत्लेआम का सिस्टम अब जम चुका है. तुम हमें वोट दो, हम नौकरी का वादा देंगे लेकिन नौकरी नहीं देंगे. छात्रों के सपनों और बच्चे नौकरी पा जाएंगे तो सहारा मिलेगा-बूढ़े मां-बाप की इन उम्मीदों का गला घोंटने वाले लोगों का हाथ पकड़ने के लिए जब छात्रों का हाथ उठता है तो कहते हैं कि ये आंदोलनजीवी हैं. सरकार के खिलाफ साजिश है. और फिर इनके खिलाफ चलता है सत्ता के सिपाहियों का डंडा.

  • आज चुनाव है तो यूपी सरकार प्रयागराज में छात्रों को पीटने वाले पुलिसवालों को सस्पेंड कर रही है. लेकिन ये प्रयागराज जो अब उबल पड़ा है, वो महीनों से सुलग रहा था. यहां 4 जनवरी की रात छात्र नौकरी की मांग पर थाली चम्मच लेकर सड़कों पर निकले थे. अगले दिन भी सड़कों पर निकले तो जमकर लाठियां चलाई गईं. छात्रों ने हिंसा नहीं की थी.

  • दिसंबर 2021 में 69000 बेसिक शिक्षक भर्ती के लिए लखनऊ में शांतिपूर्वक कैंडल मार्च करते अभ्यर्थियों को कीट पतंगों की तरह पीटने वाले पुलिस वालों के खिलाफ क्या एक्शन हुआ? पुलिस के हाथ थे, निर्देश कौन दे रहा था? तब तो किसी ट्रेन में आग नहीं लगाई गई थी, कोई ट्रैक भी नहीं उखाड़ा गया था. पांच महीने से प्रदर्शन कर रहे थे छात्र, बदले में मिली लाठी क्योंकि आजकल पॉलिटिक्स को प्रदर्शन पसंद नहीं. नो एंट्री.

  • नवंबर 2021 में झारखंड की राजधानी रांची में JPSC पीटी परीक्षा की कटऑफ जारी करने की मांग कर रहे छात्रों को बेतरह पीटा गया.

  • उससे पहले सितंबर 2021 में यूपी के ललितपुर में छात्रों को लाठियों में आग लगाकर पीटा गया.

  • जून 2021 में बिहार की राजधानी पटना में शिक्षक अभ्यर्थियों पर पुलिस ने लाठियां भांजी थीं. गुनाह क्या था? STET की परीक्षा पास कर चुके लोग नौकरी की मांग करने शिक्षा मंत्री के आवास का घेराव करने निकले थे. कोई ट्रेन नहीं जली थी.

छात्र मर रहे हैं

कहीं पेपर लीक हो जाता है. कहीं कोई और गड़बड़ी हो जाती है. कहीं भ्रष्टाचार के आरोप लग जाते हैं तो कहीं मामला कोर्ट में जाकर अटक जाता है. लेकिन इन सबका नतीजा होता है कि नौकरी नहीं मिल पाती. छात्रों पर क्या बीत रही है ये समझना है तो एक सरकारी डेटा पढ़िए. पिछले चार साल में बेरोजगारी के कारण खुदकुशी में 24 फीसदी का इजाफा हुआ है. एनसीआरबी का डेटा है. ये तो कोविड के पहले का डेटा है. हालात फिर और खराब हुए. कोविड लॉकडाउन के वक्त गांवों की तरफ खुद घिसटती भीड़ आइना भी थी कि बेरोजगारी का क्या आलम है, लेकिन सरकार ने कह दिया कि ये तो आंकड़े में ही नहीं. कोई ताज्जुब नहीं कि अक्टूबर 2021 में आई इसी NCRB की रिपोर्ट कहती है कि खुदकुशी करने वालों में सबसे ज्यादा दिहाड़ी मजदूर थे. करीब 24%. कौन हैं ये लोग जो जान ले रहे हैं अपनी? क्या वो नहीं जो पढ़ लिखकर भी मजदूरी करने को मजबूर हैं, अंदर ही अंदर घुट रहे हैं? क्या वही तो नहीं जिन्हें बीए पास करने के बाद भी मजदूरी नहीं मिलती? गांव छोड़कर शहर आने के बाद भी नहीं मिलती. क्या वही तो नहीं जो अपने गांव में खुली साफ आबोहवा में रहते थे और जिनका शहरों के तंग कमरों में दम घुट रहा है, फिर भी 7-8 हजार में महीना काटने को मजबूर हैं?

बेरोजगारी के कारण 4 साल में 24% ज्यादा खुदकुशी

(ग्राफ़िक्स: धनंजय कुमार)

अक्षम सरकार या सब जानबूझकर?

सवाल ये है कि राज्य दर राज्य सरकारें ठीक से परीक्षा करा नहीं पा रही हैं तो वो क्या वो अक्षम हैं या ये सब जानबूझकर हो रहा है? क्योंकि यही सरकारें बड़े-बड़े चुनाव तो सफलतारपूर्व करा लेती हैं. क्यों? क्योंकि वहां नेताओं का करियर दांव पर होता है?

दरअसल नौकरियां चुनाव के दौरान उगाए नेताओं के कल्पवृक्षों पर नहीं उगतीं. उसके लिए चाहिए प्लानिंग. उसके लिए चाहिए मजबूत इकनॉमी, लगातार ग्रोथ, ईमानदार मेक इन इंडिया, गांव तक उद्योग. लेकिन नौकरी का वादा वोट की राजनीति की जरूरत है. तो नेता जी लंबी-लंबी हांक जाते हैं और अपना काम निकलते ही, बातें बदलने लगती हैं.

जिस रेलवे की नौकरियों के लिए बवाल मचा है उसका वादा भी 2019 चुनाव से पहले किया गया था. यूपी में अभी चुनाव से पहले पुलिस भर्ती का ऐलान हो गया है, देखिए बहाली कब होती है, कितनी लाठियों के बाद होती हैं. सरकारें नौकरी के आस में बैठे करोड़ों छात्रों को नौकरी के बदले धोखा दे रही हैं और मेन स्ट्रीम मीडिया में इसकी चर्चा तक नहीं होती. वो हिंदू-मुसलमान-पाकिस्तान की अफीम चटाने में मशगूल है. रेलवे के खिलाफ छात्रों के आंदोलन को लेकर भी मीडिया आंख मूंदे बैठे रहा. सोशल मीडिया हैशटैग ट्रेंड हो रहे थे लेकिन हमारे हाहाकारी एंकरों को कुछ नहीं दिखा. सिसकियां दबा दी जाती हैं, जब रोना भी कोई नहीं सुनता है तो छात्र सड़कों पर निकल कर चीखते हैं. और चीखते हैं तो सरकार और उसकी गोद में बैठा मीडिया कहता है कि 'ध्वनि प्रदूषण' अच्छी बात नहीं है.

नौकरी की जरूरत पंथ निरपेक्ष है

नेता युवाओं को धर्म रक्षा, गोरक्षा, राष्ट्र रक्षा के नाम पर बरगलाने में लगे हैं. लेकिन नौकरी की जरूरत पंथ निरपेक्ष है. बिन सैलरी भजन होत न गोपाला. नौकरियां पैदा करने लिए लाए गए नेता मंदिर-मस्जिद में व्यस्त हैं. युवाओं की किस्मत बदलने का वादा कर आए, सड़कों और शहरों के नाम बदलने में जुटे हैं. भविष्य सुधारने आए, इतिहास ठीक करने लगे. अपने नागरिकों का कल्याण तो कर नहीं पाए, धर्म के नाम पर नागरिकता बांटने चले.

तो बात ये है कि बात चली थी हर साल दो करोड़ नौकरियां देने के वादे से. बात चली थी मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया से रोजगार पैदा करने की. फिर पकौड़े तलने को भी नौकरी बता दिया. इधर पकौड़े तलने वालों का भी धर्म पूछा जाने लगा है. मुसलमान हो तो हिंदू नाम पर रेहड़ी का नाम क्यों रखा? हिंदू इलाके में क्यों बेचने आए आए? सड़क किनारे नॉनवेज क्यों बेच रहे हो? नोटबंदी और जीएसटी की दुश्वारियां से बच भी गए तो कोविड का ताला. प्राइवेट सेक्टर निवेश करते डरता है तो फैक्ट्रियों में कम नौकरी. सरकारी नौकरियों की जगहें सिकुड़ती जा रही हैं तो नौकरियां आए कहां से?

जाहिर है नौकरी मांगने पर पोल पट्टी खुलती है सो दी जाती हैं लाठियां, लांछन और धमकियां- कि नौकरी के लिए प्रदर्शन में सरकारी संपत्ति का नुकसान हुआ तो जिंदगी भर सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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Published: 29 Jan 2022,01:52 PM IST

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