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‘’मैंने (मुंबई ATS चीफ हेमंत करकरे से) कहा तेरा सर्वनाश होगा. ठीक सवा महीने में सूतक लगता है. जिस दिन मैं गई थी, उस दिन इसके सूतक लग गया था और ठीक सवा महीने में जिस दिन आतंकवादियों ने इसको मारा, उस दिन उसका अंत हुआ. ये उसकी कुटिलता थी, ये देशद्रोह था, धर्म विरुद्ध था’’...
ये वो शब्द हैं जो मध्यप्रदेश के भोपाल से बीजेपी की कैंडिडेट और मालेगांव ब्लास्ट की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर ने 26/11 के आतंकी हमले में शहीद हुए ATS चीफ हेमंत करकरे को लेकर कहे हैं. जिस हेमंत करकरे ने एक शहर को बचाने के लिए अपनी जिंदगी की परवाह नहीं कि अपने सीने पर गोली खाई उन्हें प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने सर्वनाश का श्राप दिया था- ये बात वो खुद कह रही हैं
हैरान कर देने वाली ये बातें किसीआम इंसान ने नहीं कही. ये बातें कहीं हैं बीजेपी की लोकसभा उम्मीदवार ने. वही बीजेपी जो देश की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती और राष्ट्रवाद पर झंडाबरदारी का कोई मौका नहीं छोड़ती.
मुंबई में 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकी हमले के बाद बीजेपी ने कांग्रेस सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. और छोड़े भी क्यों जब मामला सुरक्षा का हो तो.
ये वही बीजेपी है जो उस वक्त महाराष्ट्र के गृह मंत्री रहे आर आर पाटिल के बड़े-बड़े शहरों में ऐसी छोटी-छोटी बातें होती रहती हैं वाले कमेंट पर सड़कों पर उतर आई थी.
ये वही बीजेपी है, जिसने उस वक्त महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था जब वो अपने बेटे रितेश देशमुख और फिल्म डायरेक्टर राम गोपाल वर्मा को लेकर होटल ताज पहुंचे थे. होटल ताज को भी आतंकियों ने निशाना बनाया था.
भोपाल से अपना उम्मीदवार घोषित करते हुए शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें ऐसा शख्स बताया, जिसका जन्म ही देश को सुरक्षित रखने के लिए हुआ हो.
क्या ऐसे वो देश को सुरक्षित रखेंगी? ये 'ग्लोरिफाई' करते हुए कि कैसे उन्होंने उस शख्स को श्राप दिया था, जिसने मुंबई को बचाने के लिए अपनी जान गंवा दी? प्रज्ञा ठाकुर से हमारी दरखअवास्त है कि श्राप देना ही है तो करप्शन को दीजिए, आतंकवाद को दीजिए.
बीजेपी के कई नेताओं ने प्रज्ञा ठाकुर की गिरफ्तारी को 'हिंदुओं को बदनाम' करने की साजिश बताया. कुछ दिनों पहले वर्धा रैली में भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 'हिंदू आतंक' शब्द गढ़ने वाली कांग्रेस को हिंदू कभी माफ नहीं करेंगे.
26 नवंबर 2008 की रात, हेमंत करकरे अपने घर से निकले और फिर कभी वापस नहीं लौटे.
आज मुंबई की सड़कों पर जाइए, मैं आपको चैलेंज करता हूं, कि आप एक भी मुंबईकर ऐसा नहीं पाएंगे जो प्रज्ञा ठाकुर के बयान का समर्थन करता हो.
उनके बयान ने न सिर्फ शहीद करकरे को अपमानित किया, बल्कि उन सभी मुंबईकरों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई जो डायरेक्टली या इनडायरेक्टली हमले के पीड़ित हैं. और जो अभी भी अपनी जिंदगी के उस सबसे काले अध्याय को भूलने की कोशिश कर रहे हैं.
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