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वीडियो एडिटर- पुनीत भाटिया
इलस्ट्रेटर- मेहुल त्यागी
प्रोड्यूसर- प्रबुद्ध जैन
अगर कोई आपसे कहे कि आप पांडव हैं या कौरव तो जाहिर है आपका जवाब होगा- पांडव. कोई कौरव बनना या समझे जाना नहीं चाहता. लेकिन दूसरे को कौरव ठहराने में किसी को कोई गुरेज नहीं. राजनीति हो या समाज आजकल कुछ ऐसा ही दिखाई देता है.
Soul खोल के इस एपिसोड में पौराणिक कथाओं को नए नजरिए से देखने वाले बेस्टसेलिंग लेखक देवदत्त पट्टनायक से हमने पूछा ये सवाल?
राजनीति की बात करते हुए अक्सर महाभारत का जिक्र आ जाता है. कुछ लोग अपने को पांडव और विरोधी को कौरव साबित करने की कोशिश करते हैं. आप इसे कैसे देखते हैं?
देवदत्त महाभारत के जरिए ही अपनी बात सामने रखते हैं.
देवदत्त कहते हैं कि हर भगवद् गीता पढ़ने वाला खुद को अर्जुन मानता है यानी नायक. लेकिन सवाल ये है कि क्या खलनायक को हम परिजन मानते हैं? खलनायक को शैतान बनाना पश्चिमी नजरिया है. भारतीय परंपरा में खलनायक पर अलग नजरिया है. खलनायक पर वार करके भी अर्जुन को दर्द होता है. अर्जुन सबको अपना परिवार मानता है. लेकिन महाभारत में ही धृटराष्ट्र कहते हैं कि सिर्फ उनके बेटे ही उनका परिवार हैं. वो भाई के बेटों को परिजन नहीं मानते.
महाभारत की बात करते हुए वसुधैव कुटुंबकम का ध्यान रखना भी जरूरी है. सबके पितामह, ब्रह्मा हैं. हालांकि, इस कुटुंब के भीतर भी युद्ध छिड़ा रहता है. सारी लड़ाई भोग और संसाधनों की है. अन्न देने वाले और अन्न लेने वाले की लड़ाई है.
देवदत्त पट्टनायक के मुताबिक,
पश्चिमी परंपरा के उलट भारतीय परंपरा में चीजें बदलती रहती हैं. देवदत्त कहते हैं कि जैन शास्त्रों में समय को सर्प की तरह माना गया है. अच्छे दिन के बाद बुरे दिन भी आते हैं, फिर अच्छे दिन आते हैं-उत्सर्पणी, अवसर्पिणी. ये चक्र चलता रहता है.
संसद में भी यही चल रहा है. कुछ लोग खुद को पांडव यानी नायक और दूसरे को कौरव यानी खलनायक में बांट रहे हैं. राजा को ये नेतृत्व करने वाले को अन्न की चिंता करनी चाहिए, सिर्फ रणभूमि की नहीं.
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