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Soul खोल with देवदत्त पट्टनायक: नेता को चापलूसी पसंद या आलोचना?

आज के दौर में किसी नेता के लिए कवि और विदूषक दोनों का संतुलन जरूरी

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  • वीडियो एडिटर- पुनीत भाटिया
  • इलस्ट्रेटर- मेहुल त्यागी
  • प्रोड्यूसर- प्रबुद्ध जैन

क्विंट हिंदी की खास पेशकश, Soul खोल में माइथोलॉजिस्ट और बेस्टसेलर लेखक देवदत्त पटनायक आपको बताते हैं जिंदगी और आज के राजनीतिक माहौल को समझने का फलसफा.

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इस सीरीज के दूसरे एपिसोड में हमने देवदत्त से पूछा ये सवाल:

राजदरबारों में कवि और विदूषक की परंपरा होती थी. कवि गुणगान करता था तो विदूषक मजाक के लहजे में राजा की कमियां बताता था.आज के मीडिया के नजरिए से ये रोल किस तरह बदलते दिखते हैं?

देवदत्त इसका बड़ा दिलचस्प जवाब देते हैं.

देवदत्त के मुताबिक, आज के दौर में संतुलन बेहद जरूरी है. खाने का उदाहरण देते हुए उन्होंने समझाया कि जिस तरह से अगर खाने में ज्यादा खट्टा होगा तो उसे संतुलित करने के लिए मीठे की जरूरत होगी. इसी तरह से अगर ज्यादा मीठा होगा तो खट्टे की जरूरत.

राजा सिर्फ कवि पसंद करता है?

राजा रजवाड़ों के दौर में कवि की काफी अहमियत होती थी, जो सिर्फ राजा के गुणगान करता रहता था. वहीं, एक विदूषक भी होता था जो राजा की खिल्ली उड़ाता था. अब ये राजा पर निर्भर करता था कि वो कवि प्रेमी है या विदूषक प्रेमी. इस स्थिति में किसी को भी सही गलत ठहराना खतरनाक होता है.

सिर्फ तारीफ सुनने वालों की ग्रोथ नहीं

अगर राजा को सिर्फ अपने बारे में अच्छा-अच्छा सुनने की आदत पड़ जाती है तो आप जिंदगी में आगे नहीं बढ़ सकते. आगे बढ़ने के लिए आपको आलोचक (विदूषक) की भी जरूरत होती है. इसी तरह से अगर राजा के आस-पास हमेशा निंदा करने वाले होते हैं तो इससे राजा का मनोबल गिरता है.

इसी तरह समाज में भी हमें अपने आस-पास ये देखना चाहिए कि कितने निंदा करने वाले विदूषक हैं और कितने कवि. इससे हमें पता चलेगा कि हम कितने पानी में हैं, और ये जान सकेंगे कि आपका राजा कैसा है. आप समझ सकेंगे कि राजा विदूषक प्रेमी है या कवि प्रेमी.

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