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तुर्की और सीरिया में 7.8% तीव्रता के भूकंप (Turkey-Syria Earthquake) के बाद मची तबाही की भयावह तस्वीरें देखकर हर इंसान सहम गया है. दिल्ली या पंजाब में बैठा कोई व्यक्ति 4300 से ज्यादा लोगों की मौत के बाद उनके दुख का सिर्फ अनुमान लगा सकता है, लेकिन दोनों देशों पर आई ये आपदा वास्तव में जितनी दिख रही है उससे कहीं ज्यादा बड़ी है. दोनों देश पहले से ही आर्थिक मोर्चे पर एक जंग लड़ रहे हैं. खस्ताहाल अर्थव्यवस्था और बढ़ती महंगाई के चलते लोग पहले से ही त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे हैं.
सितंबर 2021 में 1 यूएस डॉलर की कीमत 8 तुर्किश लीरा (तुर्की की मुद्रा) के बराबर थी, जो दिसंबर 2022 तक बढ़कर 19 तुर्किश लीरा तक पहुंच गई. इस भारी गिरावट का एक कारण मुद्रास्फिति है, लेकिन इसके कई और कारण हैं.
अर्थव्यवस्था पिछले साल धीमी होकर 5 प्रतिशत की अनुमानित विकास दर पर आ गई, जो एक साल पहले 11 प्रतिशत से अधिक थी. दो-तिहाई से अधिक तुर्की लोग भोजन और किराए के भुगतान के लिए संघर्ष कर रहे हैं. आधे से ज्यादा कर्मचारी हर महीने 300 डॉलर से भी कम कमाते हैं.
आर्थिक तंगी से जूझ रहे तुर्की के लिए भूकंप दोहरी चुनौती है, क्योंकि देश के पास इससे हुए नुकसान की भरपाई के लिए पैसा ही नहीं है.
लेकिन अब सवाल ये कि तुर्की में ऐसा क्यों हो रहा है? तुर्की की गिरती अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ी भूमिका यहां की सरकार की है. सेंट्रल बैंक ऑफ तुर्की बाकी देशों की व्यवस्था से उलट अपने यहां सरकार से स्वतंत्र नहीं है. इसलिए बैंक के लिए स्वतंत्र होकर नीतियां बनाना आसान नहीं है. अर्थव्यवस्था में लोगों का भरोसा टूट रहा है, इसलिए लीरा में गिरावट के साथ ही स्थानीय और विदेशी निवेशकों ने अपना पैसा निकालना शुरू कर दिया.
मार्केट एक्सपर्ट तिमोथी एश कहते हैं कि
हालांकि ऐसा नहीं है कि सरकार या राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन के खिलाफ किसी ने बोलने की कोशिश नहीं कि, जब भी किसी ने कोशिश की तो उसे पद से हटाकर मुंह बंद कर दिया गया. कई वित्त मंत्रियों और सेंट्रल बैंक के अध्यक्षों को पद से हटा दिया.
तुर्की में शक्तियों का केंद राष्ट्रपति ही हैं, इसलिए किसी और के पास फैसले लेने की कोई स्वतंत्र शक्ति नहीं है. एक्सपर्ट के अनुसार, उनकी नीतियां ही देश को गर्त में धकेल रही हैं.
सीरिया में भी हालात कोई बहुत बेहतर नहीं है. ये देश पिछले 12 सालों से गृहयुद्ध की चपेट में है. इसका अर्थव्यवस्था पर तो बुरा असर पड़ा ही है साथ ही लाखों लोगों के लिए मानवीय संकट खड़ा हो गया है. गृहयुद्ध के चलते पिछले कुछ सालों में लाखों लोग सीरिया छोड़ तुर्की में जा बसे और अंतरराष्ट्रीय मानवीय सहायता पर निर्भर हैं. इनके लिए फूड सप्लाई बॉर्डर पार से होती है और भूकंप के चलते सप्लाई चेन भी असर पड़ा है. लाखों लोगों के सामने खाने का संकट खड़ा हो गया है.
तेल की कमी के बीच सरकार ने गैसोलीन और डीजल के दाम भी बढ़ाए. आधिकारिक रेट 20 लीटर यानी 5 गैलन गैस खरीदने के लिए डेढ़ लाख सीरियन पाउंड तक चुकाने पड़ रहे हैं. ये कई आम लोगों की पूरी तनख्वाह के बराबर है. समाचार एजेंसी AP की रिपोर्ट के अनुसार, कई लोगों ने तो इसलिए नौकरी छोड़ दी क्योंकि वे आने-जाने का खर्च नहीं उठा सकते.
सीरिया के मर्सी कॉर्प्स कंट्री डायरेक्टर किरेन बार्न्स ने एक बयान में कहा कि "पहले से ही, उत्तर पश्चिम सीरिया में 4.1 मिलियन लोग भूखे रह रहे थे और यूक्रेन में युद्ध शुरू होने के बाद से खाद्य असुरक्षा और बिगड़ गई है. आवश्यक खाद्य पदार्थों की कीमतें भी बढ़ रही हैं."
उत्तर-पश्चिमी सीरिया में लगभग 2.1 मिलियन लोगों के हैजा से प्रभावित होने का भी खतरा है. उत्तरपूर्वी सीरिया में यूफ्रेट्स नदी का दूषित पानी को मजबूर लोग कभी भी इस भयानक बिमारी की चपेट में आ सकते हैं. सालों से चल रही लड़ाई के चलते यहां पानी का बुनियादी ढांचा नष्ट हो गया है. पूरे सीरिया में 47 फीसदी लोगों के पास पीने का साफ नहीं है.
सीरिया इंटरनेशनल रेस्क्यू कमेटी की कंट्री डायरेक्टर तान्या इवांस ने वोक्स को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि, "उत्तर पश्चिम सीरिया में कई लोग 20-20 बार विस्थापित हुए हैं, और स्वास्थ्य सुविधाओं पर क्षमता से अधिक दबाव पड़ा है. हेल्थकेयर सुविधाओं तक लोगों की पहले से ही पहुंच नहीं है."
सीरिया और तुर्की दोनों ही देशों में खाद्य, विस्थापन, अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य का संकट है. ऐसे में एक प्रलयकारी भूकंप ने हजारों लोगों की जान तो ले ही ली है साथ में जो लोग जीवित हैं उनके संघर्ष को भी और मुश्किल कर दिया है. सीरिया और तुर्की अपने दम पर दोबारा खड़े हो पाने में असमर्थ हैं और उन्हें बाकी देशों के सहारे की सख्त जरूरत है.
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