advertisement
वीडियो एडिटर: वरुण शर्मा
“काम पर से उसकी लाश आई.”
74 साल के मोहम्मद शरीफ ये रट लगाकर रोते हैं. उत्तर प्रदेश के कानपुर में CAA के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान पुलिस की फायरिंग में उनके बेटे रईस की जान चली गई. रईस की उम्र 30 साल थी. वो पापड़ और आईसक्रीम बेचने का काम करते थे. शादी-विवाह के मौकों पर बर्तन धोकर र250-300 रुपये की अतिरिक्त कमाई भी कर लिया करते थे.
रईस के गरीब परिवार को जनाजे के लिए भी लोगों से 5000 रुपये जुटाने पड़े.
नागरिकता कानून के खिलाफ कानपुर में हुई हिंसा में 20 दिसंबर को 3 लोग मारे गए थे. प्रदर्शन के मद्देनजर यहां इंटरनेट बंद कर दिया गया था. यूपी पुलिस का कहना है कि सिर्फ रबड़ बुलेट और पैलेट गन से फायरिंग हुई. हालांकि ऐसे वीडियों भी सामने आ चुके हैं, जिनमें पुलिसकर्मी फायरिंग करते दिख रहे हैं.
रईस बाबू पूर्वा में रहते थे जहां बाजार वाले इलाके में उन्हें गोली लगी.
पुलिस की गोलियों के दूसरे शिकार बने 23 साल के आफताब आलम. दीवारों पर पुताई का काम करने वाले आफताब अपना 450 रुपये का मेहनताना लेने निकले थे.
बीए सेकेंड ईयर के छात्र आफताब ने घटना से 20 दिन पहले सरकारी नौकरी के लिए फॉर्म भी भरा था. उनकी मां ये सब याद कर फफक पड़ती हैं.
25 साल के सैफ जो चमड़े की फैक्ट्री में मजदूरी करते थे, वो भी गोली के शिकार हुए. सैफ के पिता मोहम्मद तकी, जो मकानों की रंगाई-पुताई का काम करते हैं, अचानक बेटे की मौत ने उन पर जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ा दिया है.
मोहम्मद तकी कहते हैं कि सरकार को मुआवजा देना चाहिए, क्योंकि उनकी उम्र इस लायक नीं कि वो परिवार को कमा कर खिला सकें.
सैफ के पिता की ही तरह रईस और आफताब के परिवार को मदद की जरूरत है और इंसाफ का इंतजार भी लेकिन क्या उत्तर प्रदेश सरकार, इनका दर्द समझेगी औ गोलीबारी करने वालों के खिलाफ करेगी कार्रवाई?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)