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वीर दास ने कहा, "I come from which India? I come from two Indias.." नहीं, वीर दास हम दो भारत से नहीं आते हैं, हम 3,4,5 या कहें कई भारत से हैं. जिसके बारे में हम और हमारा भारत बात करने से हिचकता है. मैं यहां वो अमीर-गरीब, ऊंच नीच वाला भारत और इंडिया की कहानी नहीं बता रहा. न ही वीर दास (Vir Das) की तरह ये कहूंगा कि मैं उस भारत से आता हूं, जहां दिन में औरतों की पूजा करते हैं और रात में उनका गैंगरेप करते हैं. ये सब सबको पता है. साल 2013 में आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने भी कहा था
लेकिन जब भारत के लोग वीर दास के 'टू इंडिया' पर भड़केंगे, नाराज होंगे, लेकिन असल भारत की तस्वीर से आंख चुराएंगे, 2 नहीं, 3,4,5 और कई भारत की हकीकत पर पर्दा डालेंगे, तो हम पूछेंगे जरूर, जनाब ऐसे कैसे?
अमेरिका के वॉशिंगटन डीसी के जॉन एफ केनेडी सेंटर फॉर द परफॉर्मिंग आर्ट में कॉमेडियन वीर दास ने ‘आई कम फ्रॉम टू इंडियाज’ नाम से एक परफॉर्मेंस दिया. जिसका एक वीडियो क्लिप वायरल हुआ. फिर क्या था हाय तौबा शुरू. 'विदेश में घर की बेइज्जती करा दी.' 'बताइए पति दारू पीकर पत्नी को पीटे लेकिन पत्नी को नहीं बोलना चाहिए, पति तो देवता होता है' टाइप माहौल बनने लगा.. लेकिन सच तो ये है कि वीर दास ने टू इंडिया की बात की, लेकिन कई इंडिया छूट गए.
यस आई कम फ्रॉम इंडिया जहां 'दूध मांगोगे खीर देंगे, कश्मीर मांगोगे चीर देंगे' का नारा तो है, लेकिन कश्मीरी हमारे नहीं हैं. याद है कुछ दिन पहले कश्मीर में गैर-कश्मीरियों पर हमला हुआ तो मीडिया से लेकर सबका गुस्सा फूट पड़ा. बोलना भी चाहिए, लेकिन जब श्रीनगर के हैदरपोरा इलाके में बिजनेसमैन अल्ताफ भट और डेंटल सर्जन डॉक्टर मुदासिर गुल की हत्या के आरोप लगे तो इसपर बात नहीं होगी. यस आई ऑल्सो कम फ्रॉम दिस इंडिया. आप अल्ताफ भट्ट की बच्ची को सुनिए. रो रोकर कह रही है कि उसके पिता की मौत के बाद जब उसने उन पुलिस वालों से पूछा 'अकंल ये आपने क्या किया और आपको कैसे लगा कि मेरा पिता आतंकवादी है, तो वो हंस रहे थे.'
यस आई कम फ्रॉम इंडिया जहां रागिनी तिवारी, नरसिंहानंद, सुरेश च्वाहणके जैसे नफरती लोग नफरत फैलाते हैं, लेकिन पुलिस उन्हें जेल में नहीं डालती, लेकिन सिद्दीक कप्पन से लेकर समृद्धि सकुनिया और स्वर्णा झा जैसे पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया जाता है. कुछ लोगों पर बात-बात पर UAPA-NSA लगाया जाता है और कंगना जैसे लोगों को आजादी के लड़ाकों को नीचा दिखाने की छूट दी जाती है. लेकिन एक भारत है जिसे इस नाइंसाफी से फर्क ही नहीं पड़ता.
यस I come from an India जहां टीवी चैनल नकली मुद्दों पर बहस का गटर बनते जा रहे हैं, लेकिन गटर में उतरकर अपनी जिंदगी गंवा देने वाले पर चर्चा नहीं होती है.
लेकिन ईएमआई वाले भारत को फर्क कहां पड़ता है, कौन मरता है कौन जीता है.
यस आई ऑल्सो कम फ्रॉम इंडिया जहां देश की संसद के पास एक भारत के लोग मुल्ले काटे जाएंगे के नारे लगते हैं, दूसरा भारत उन भड़काऊ नारे लगाने वालों को बेल दे देता है. और तीसरा भारत टीवी देखते हुए कहता है कि डार्लिंग ये मुल्ले सही नहीं होते हैं.
यस आई कम फ्रॉम इंडिया जहां खजुराहो की मंदिर पर गर्व करते हैं, लेकिन एलजीबीटीक्यू को एलियन समझते हैं.
आखिर में इतना ही कहूंगा यहां कई भारत हैं. पुलिस का भारत, डंडे का भारत, अमीर का भारत, गरीब का भारत, न्याय का और अन्याय का भारत, नजरअंदाज हो रहे लोगों का भारत, भीड़ और झुंड का भारत. यस आई कम फ्रॉम इंडिया जो वीर दास के जोक पर ऑफेंड होता है, लेकिन डेमोक्रेसी के जोक बनने पर नहीं. ऐसे लोगों से हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?
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