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आतंकवाद से टकराव और प्रज्ञा ठाकुर का बचाव, ये क्या बात हुई?

प्रज्ञा ठाकुर आतंकवाद के आरोपों से मुक्त नहीं हुई हैं बल्कि उन्हें सिर्फ बेल पर छोड़ा गया है.

अस्मिता नंदी & कौशिकी कश्यप
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2019 के लोकसभा चुनावों में, BJP के लिए सबसे बड़ा मुद्दा आतंक के खिलाफ लड़ाई है.
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2019 के लोकसभा चुनावों में, BJP के लिए सबसे बड़ा मुद्दा आतंक के खिलाफ लड़ाई है.
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दु प्रीतम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकी घटना की आरोपी को भोपाल लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है, लेकिन आज हम इस पर सवाल नहीं कर रहे कि वो ऐसा कर सकते हैं या नहीं, हम सवाल कर रहे हैं कि क्या उन्हें ऐसा करना चाहिए?

इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी आतंक के खिलाफ लड़ाई की बात कर रही है. ऐसे में क्या प्रधानमंत्री को 2008 मालेगांव ब्लास्ट की आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का बचाव करना चाहिए? टाइम्स नाउ को दिए एक इंटरव्यू में पीएम ने कहा कि उस ब्लास्ट से प्रज्ञा को जोड़ना एक 'राजनीतिक साजिश' थी, जिसमें कई लोगों की जान चली गई थी.

क्या वाकई? चलिए, कुछ तथ्यों पर आते हैं

प्रज्ञा सिंह ठाकुर को उस समय के मुंबई ATS चीफ हेमंत करकरे ने मालेगांव आतंकी हमले में मुख्य साजिशकर्ता बताया था. करकरे 26/11 मुंबई हमले में आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हुए थे और भोपाल से बीजेपी उम्मीदवार ने कहा कि वो उनके श्राप की वजह से मारे गए थे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पुलवामा के शहीदों के नाम पर वोट मांग रहे हैं और उनकी पार्टी की सहयोगी 26/11 आतंकी हमले के ‘हीरो’ का अपमान कर रही है.

मालेगांव बम ब्लास्ट की जांच की बात करें तो, हमले में जिस बाइक में बम प्लांट किए गए थे वो प्रज्ञा ठाकुर की थी.

प्रज्ञा के खिलाफ चार्जशीट में ये भी आरोप था कि वो कट्टर हिंदुत्व संगठन 'अभिनव भारत' की मीटिंग्स का हिस्सा रही थीं. इन मीटिंग्स में कथित रूप से मुस्लिम बहुल इलाकों में हमले की योजना बनाई जा रही थी.

2011 में ये केस NIA के हाथ में आया. उस समय केंद्र में यूपीए 2 की सरकार थी. NIA ने अपनी फाइनल चार्जशीट 2016 में दायर की, जिसमें ठाकुर को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया. यानी तब, जब एनडीए सरकार केंद्र में थी.

अचानक से प्रज्ञा सिंह साजिश में मुख्य भूमिका के किरदार से बाहर आ गईं और ऐसा लगा कि पूरे मामले में उनकी कोई भूमिका नहीं है. चार्जशीट दायर करने के पहले, NIA की स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर रोहिनी सालयान ने पब्लिकली कहा था 'जब से नई सरकार आई है, मुझे हिंदू कट्टरपंथ पर नरम रुख अपनाने के लिए कहा गया है.'

इसका साफ मतलब है कि उन्होंने ये माना है कि मोदी सरकार के दौर में, उन पर दबाव था कि वो प्रज्ञा ठाकुर को आतंकी घटना में शामिल होने के सभी आरोपों से मुक्त कर दें.

जांच में कथित तौर पर ढिलाई बरतने के आरोपों के बावजूद NIA के स्पेशल कोर्ट ने ठाकुर को छोड़ने से इनकार कर दिया. 2018 में कोर्ट ने कहा कि UAPA और IPC के तहत प्रज्ञा ठाकुर के खिलाफ आरोप दर्ज करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं. वो आतंकवाद के आरोपों से मुक्त नहीं हुई हैं बल्कि उन्हें सिर्फ बेल पर छोड़ा गया है.

तो पीएम और बीजेपी पार्टी, दोनों कैसे प्रज्ञा का बचाव कर रही हैं? क्या बीजेपी को उस शख्स को उम्मीदवार बनाना चाहिए जिस पर आतंकवाद से जुड़े कई कानूनों के तहत आरोप हैं?

या फिर भारतीय न्याय व्यवस्था में विश्वास नहीं है!

टाइम्स नाउ के इसी इंटरव्यू में पीएम ने कहा कि वो जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों और आतंकवादियों को 'हिटिंग टच' देना चाहते हैं. तो फिर प्रज्ञा ठाकुर का बचाव क्यों? क्या पीएम को ये कहना चाहिए था कि 'साध्वी' को बेवजह प्रताड़ित किया गया या फिर आतंकियों के धर्म की वजह से नजरिये में ये अंतर देखने को आ रहा है?

पीएम ने ये भी कहा कि भोपाल से प्रज्ञा ठाकुर की उम्मीदवारी को लेकर इतना हो-हल्ला मचा है, लेकिन राहुल गांधी और सोनिया गांधी से कोई भी सवाल नहीं करता है जो जमानत पर बाहर हैं?

प्रधानमंत्री जी, क्या आपको सच में आर्थिक अपराध के लिए लगे आरोपों की तुलना आतंकी गतिविधियों से करनी चाहिए?

बीजेपी ने खुलकर आतंकवाद की एक आरोपी को चुनाव मैदान में उतार दिया. उसके बचाव के लिए आर्थिक अपराध की बराबरी आतंकी कृत्यों से की जा रही है. 26/11 के वीर शहीद की मौत को लेकर अपशब्द कहने वालों को शह दी जा रही है. और इसके बाद भी फिर वो आपके पास आएंगे और आतंक के खिलाफ लड़ाई और पुलवामा के वीर शहीदों के नाम पर आपका वोट मांगेंगे!

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