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GST के चार सालों का रियलिटी चेक: न माया मिली, न राम!

चार साल से जीएसटी से हम उम्मीद लगाए बैठे हैं लेकिन इससे केंद्र सरकार को उम्मीद से कम कमाई हुई है.

क्विंट हिंदी
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<div class="paragraphs"><p>(फोटो: अर्णिका काला/क्विंट हिंदी)</p></div>
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(फोटो: अर्णिका काला/क्विंट हिंदी)

चार साल से GST से हम उम्मीद लगाए बैठे हैं,

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एक्सपर्ट्स ने जीएसटी (GST) को कई मानदंडों की कसौटी पर कसा है. लेकिन सरकार (Modi Govt) के नजरिये से इसकी सफलता का सबसे अहम पैमाना यह है कि क्या जितनी उम्मीद थी, उतनी धनराशि इससे जुटाई जा सकी. जैसा कि 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट कहती है, “सरकार के वित्त के हिसाब से, जीएसटी से यह उम्मीद लगाई गई थी कि उससे मध्यम अवधि के कर-जीडीपी अनुपात में सुधार होगा और राज्यों को अधिक केंद्रीय हस्तांतरण होंगे.” इस पैमाने पर जीएसटी औंधे मुंह गिरा है. आइए इसे खंगालते हैं

तीन साल बाद भी जीएसटी फ्लॉप शो ही साबित हुआ

जुलाई 2017 में जीएसटी लागू हुआ था. इसलिए टैक्स के लिए पहला पूरा वित्तीय वर्ष 2018-19 था. 2018-19 में जब बजट पेश किया गया तो केंद्र सरकार को उम्मीद थी कि जीएसटी से 7.44 लाख करोड़ रुपए की कमाई होगी. लेकिन आखिर में कमाई हुई 5.82 लाख करोड़ रुपए की जोकि 21.8% कम थी. केंद्र सरकार के स्तर पर जीएसटी में केंद्रीय जीएसटी, एकीकृत जीएसटी और जीएसटी क्षतिपूर्ति सेस शामिल होता है.

चूंकि यह जीएसटी का पहला पूरा वर्ष था इसलिए हम सरकार को बेनेफिट ऑफ डाउट दे सकते हैं. लेकिन अगले दो साल भी यही दस्तूर रहा. 2019-20 में सरकार को जीएसटी से कुल 6.63 लाख करोड़ रुपए मिलने की उम्मीद थी. लेकिन मिले 5.99 लाख करोड़ रुपए. यह 9.7% कम था.

2020-21 में सरकार को उम्मीद थी कि अब की बार 6.91 लाख करोड़ रुपए मिलेंगे. इसके बजाय कमाई में 20.5% की गिरावट हुई. जीएसटी से 5.49 लाख करोड़ रुपए मिले. बेशक, 2020-21 कोविड महामारी का साल था. इसलिए टैक्स कलेक्शन में गिरावट होना लाजमी था.

अब आप इस चार्ट को देखिए. इसमें यह दिखाया गया है कि केंद्र सरकार को जीडीपी के प्रतिशत के रूप में जीएसटी से कितनी कमाई की उम्मीद थी, और असल में कितनी कमाई हुई. इसमें मूल रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार को भी ध्यान में रखा गया है.

(ग्राफिक: अर्णिका काला/क्विंट हिंदी)

(सोर्स: सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी और सीजीए के डेटा के आधार पर गणना)

जैसा कि चार्ट में दिखाया गया है, जीएसटी का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका. इसका मुख्य लक्ष्य था, कर-जीडीपी अनुपात को बढ़ाना या सरकार को अधिक टैक्स हासिल करने में मदद करना. हमने इस मकसद से काम करना शुरू किया था कि जीडीपी का 3.9% टैक्स जमा कर पाएंगे, लेकिन तीन साल बाद हम जीडीपी के 2.8% के बराबर टैक्स जमा कर पाए.

फर्जी इनवॉयस के चलते जीएसटी की चोरी

दरअसल जैसे ही जीएसटी प्रणाली लागू हुई, फर्जी इनवॉयस का कारोबार भी चालू हो गया. कंपनियों और लोगों ने फर्जी खर्चा दिखाने के लिए फर्जी इनवॉयस बनाने शुरू कर दिए और इस तरह अपनी कमाई पर उन्हें जितनी जीएसटी चुकानी थी, उससे कम चुकाई गई.

लोकसभा में एक सवाल के जवाब में वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने बताया था कि जुलाई 2017 और दिसंबर 2020 के बीच जाली इनवॉयस के 3,852 मामले दर्ज किए गए. इनमें 35,620 करोड़ रुपए के इनपुट टैक्स क्रेडिट की चोरी की गई है. बेशक, ये मामले वे हैं जिनका पता चल गया है. कुल मिलाकर देखें तो यह समस्या बहुत बड़ी है.

इस मसले को सरकार ने कुछ हद तक समझा है. पिछले नौ महीने से हर महीने जीएसटी से 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा जमा हो रहे हैं (इसमें राज्य जीएसटी भी शामिल है). इनवॉयसेज़ को मैच करके और पिछले इनकम टैक्स डेटा को देखकर यह किया गया ताकि फर्जी इनवॉयेज़ को पकड़ा जा सके.

इसके अलावा पिछले एक साल से विभिन्न वस्तुओं की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. इससे भी अधिक जीएसटी जमा हुई है.

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जीसएटी प्रणाली भी कम जटिल नहीं

अप्रैल 2019 से जीएसटी कलेक्शन अच्छा रहा है. 15 बार ऐसा हुआ है कि एक महीने में 1 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर जमा हुआ है. लेकिन फिर भी सरकार ने जो लक्ष्य निर्धारित किया था, यह उसके लिहाज से पर्याप्त नहीं है. इसकी एक वजह तो यह है कि यह प्रणाली बहुत जटिल है. इसकी हिमायत करने वालों का कहना है कि यह पुरानी प्रणाली से आसान है. हो सकता है, ऐसा हो. लेकिन सवाल यह नहीं है. चूंकि किसी भी नए टैक्स का यह उद्देश्य होता है कि उसकी मदद से टैक्स बेस बढ़े. इसके लिए कर प्रणाली को आसान होना चाहिए जोकि जीएसटी नहीं है. इसके अलावा, जैसा कि 15वां वित्त आयोग कहता है, “अक्सर उसका रेट स्ट्रक्चर और उसका पालन करने की प्रणाली बदलती रहती है. यह भी एक बड़ी चुनौती है.”

फिर दूसरी चुनौतियां भी हैं. हर बिजनेस के पास बेचने के लिए एक प्रॉडक्ट होता है. उस प्रॉडक्ट को बनाने के लिए जितनी चीजों की जरूरत होती है, बिजनेस उन्हें खरीदता है. इन सभी इनपुट्स पर वह जीएसटी चुकाता है. वह इनपुट्स पर चुकाई जाने वाली जीएसटी को इनपुट क्रेडिट टैक्स के तौर पर ले सकता है और फिर आखिर में बेचे जाने वाले प्रॉडक्ट की जीएसटी से उसे घटा सकता है. इससे यह सुनिश्चित होता है कि टैक्स पर टैक्स नहीं लगेगा, यानी कैसकेडिंग नहीं होगी, जैसा कि जीएसटी से पहले की कर प्रणाली में होता था.

लेकिन जीसएटी प्रणाली में एक पेंच और है. कोई इनपुट क्रेडिट टैक्स तभी हासिल कर सकता है, जब उसके वेंडर्स ने जीएसटी चुकाई हो. ऊपर दिए गए उदाहरण को देखिए. अंतिम प्रॉडक्ट बेचने वाला बिजनेस उस प्रॉडक्ट्स को बनाने में इस्तेमाल इनपुट्स पर चुकाई जीएसटी को तभी घटा सकता है, जब उन इनपुट्स को बेचने वाले वेंडर्स ने सरकार को जीएसटी चुकाई हो.

अब यह सुनिश्चित करना कई बार मुश्किल होता है, चूंकि बिजनेस का अपने वेंडर्स पर कम ही नियंत्रण होता है. इसके चलते बिजनेस को इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिल पाता, इसके बावजूद कि उसने अपने वेंडर्स को सही जीएसटी चुकाई हो.

दूसरी कई समस्याएं भी हैं

अनुपालन की जिम्मेदारी भी उनकी है, जो जीएसटी प्रणाली का हिस्सा हैं और इससे छोटे कारोबारियों को सबसे ज्यादा मुश्किल हुई है. चूंकि उनके पास इससे निपटने के उपाय नहीं. इनवॉयस जनरेट होने के बाद उसी महीने जीएसटी चुकानी होती है. भुगतान का चक्र इससे लंबा हो सकता है. इससे यह स्थिति हो सकती है कि बिजनेस के पास पर्याप्त कार्यशील पूंजी, यानी वर्किंग कैपिटल न हो. ऐसे में छोटे व्यवसायों को नुकसान होता है. पिछले कई वर्षों से अंतिम प्रॉडक्ट की जीएसटी दरों को कम किया गया है लेकिन अव्यवस्थित तरीके से. इससे टैक्सटाइल और फुटवियर जैसे क्षेत्रों में इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर की समस्या खड़ी हो गई है.

इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर एक ऐसी स्थिति है, जब इनपुट पर जीएसटी दर, अंतिम प्रॉडक्ट की जीएसटी दर से ज्यादा होता है. इससे अंतिम प्रॉडक्ट बेचने वाले बिजनेस को रीफंड मिलता है पर सरकार के टैक्स कलेक्शन पर असर होता है. 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था, “50 प्रतिशत से अधिक इनपुट टैक्स क्रेडिट का एक महत्वपूर्ण कारण कई वस्तुओं के लिए इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर हो सकता है.”

इसके अलावा, कई लोग भूल गए हैं कि जीएसटी में सेवा क्षेत्र भी शामिल है. सेवा क्षेत्र के व्यवसाय तो पहले भी सेवा कर दे रहे थे और केंद्र सरकार से सीधे निपटते थे. जीएसटी के लागू होने के बाद से उन्हें हर उस राज्य में अलग से रिटर्न फाइल करना पड़ता है, जहां उनका कामकाज होता है. इससे उन पर अनुपालन का बोझ बढ़ा है. अनुपालन की भी अपनी लागत होती है, जिसका भार हमेशा ग्राहक नहीं उठाना चाहता.

इस समस्या को इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी के स्तर पर सुलझाया जा सकता है. अगर सेवा क्षेत्र के व्यवसाय सिंगल रिटर्न भरें और आईटी सिस्टम खुद यह आकलन कर ले कि उस टैक्स को अगल-अलग राज्यों के बीच कैसे बांटना है. दिक्कत यह है कि व्यवस्था बनाते समय टैक्सपेयर को ध्यान में नहीं रखा जाता. इसे टैक्समैन की सुविधा के हिसाब से तैयार किया जाता है.(विवेक कॉल इकोनॉमिक कमेंटेटर और लेखक हैं. उन्होंने बैड मनी, ईजी मनी जैसी किताबें लिखी हैं. उनका ट्विटर हैंडिल @kaul_vivek हैं. यह एक ओपिनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

यह भी है कि इस व्यवस्था की जटिलता का फायदा बड़े कारोबारियो को होता है, वह भी छोटे कारोबारियों की कीमत पर. फिर, जीएसटी वेबसाइट पिछले कई सालों में कई बार क्रैश होती रही है क्योंकि वह लोड नहीं ले पाती. खासकर, डेडलाइन के दिनों में. साफ है कि जीएसटी प्रणाली के साथ कई समस्याएं हैं. चूंकि जितनी उम्मीद थी, उतना टैक्स जमा नहीं हो पा रहा है. इस व्यवस्था को सुधारने का यह सही समय है.

(विवेक कॉल इकोनॉमिक कमेंटेटर और लेखक हैं. उन्होंने बैड मनी, ईजी मनी जैसी किताबें लिखी हैं. उनका ट्विटर हैंडिल @kaul_vivek हैं. यह एक ओपिनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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