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क्या आपको कभी भी ऐसा कहा गया है कि आप कोई काम सिर्फ इसलिए नहीं कर सकते हैं, क्योंकि वो एक ‘आदमी का काम’ है ? अगर हां, तो समय आ गया है कि आप ऐसा कहने वालों का मुंह बंद कर दे. विश्व महिला दिवस के मौके पर हम आपको ऐसी महिलाओं की कहानियां सुनाते हैं, जिन्होंने पुरुषों के एकाधिकार वाले क्षेत्रों में न सिर्फ सफलता के झंडे गाड़े बल्कि कई पूर्व स्थापित सोच को भी बदलकर रख दिया और ‘स्त्री-ओ-टाइप’ की सोच को बुलंद किया.
चेट्टीनाड की लोकप्रियता बढ़ाने का थोड़ा श्रेय मीनाक्षी मेयप्पन को भी जाता है, ये वो ही हैं, जिनकी वजह से चेट्टीनाड एक पर्यटक और पाक कला केंद्र के रूप में मशहूर हुआ. मीनाक्षी नट्टुकोट्टाये चेट्टियार समुदाय के एमएसएमएम परिवार से आती हैं. ये समुदाय अपने व्यवसायिक पृष्टभूमि के लिए जाना जाता है, जिसने 19वीं सदी में दक्षिण पूर्व एशिया में एक बेहद प्रभावशाली व्यवसायिक नेटवर्क स्थापित किया था.
उनका बहुत सारा धन सन 1880 और 1940 के बीच आलीशान भवन बनवाने में खत्म हो गया. ये इस बात का भी सबूत का इस समुदाय का व्यवसाय देश के बाहर भी फैला हुआ है और सफल है. कई तरह के सामाजिक – राजनैतिक बदलावों के कारण इनमें से कई चेट्टीयार को घर लौटना पड़ा, और इनमें से कई घर तो बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गये और लोगों की नजर में आने लगे. अंत में पुरातन चीजों को इकट्ठा करने वालों की नजर इन भवनों पर आकर टिक गई.
जीवन के 60 साल गुजारने के बाद, अधिकांश लोग रिटायमेंट लेने लगते हैं, लेकिन मीनाक्षी के साथ ऐसा नहीं हुआ. मीनाक्षी ने जब बांगला शुरू किया तब वे साठ पार कर चुकीं थीं. ये खूबसूरत भवन उनके परिवार के पुरूषों का क्लब हाउस हुआ करता था, जहां वे आराम फरमाते थे, लेकिन 1990 के अंतिम सालों में ये टूटकर बिखरने लगा. इस लिहाज से देखा जाए, तो मीनाक्षी मेयप्पन ने पुरुषों के एकाधिकार वाले क्षेत्रों में कदम रखा, जब उन्होंने अपने परिवार को विश्वास दिलाने में सफलता पायी कि इस टूटती इमारत को एक बुटीक होटल में तब्दील करने की संभावना है, जहां बेहतरीन चेट्टीनाड खाना परोसा जा सकता है.
आतिथ्य और छोटी-छोटी चीजों का ख्याल रखना मीनाक्षा मेयप्पन के व्यक्तित्व की खूबी है. मेयप्पन का बचपन एक आयरिश महिला सेविका की देखरेख में कोलंबो में गुजरा, जहां उनके पिता एक उप-मेयर के तौर पर काम करते थे.
जब मेयप्पन ने 1999 में बांगला की शुरुआत की, तब इसे एक निर्भीक फैसले के तौर पर देखा गया. यहां एक ऐसी महिला थी जो 64 - 65 की उम्र में, बिना किसी अनुभव के बिल्कुल विपरीत परिस्थितियों में एक होटल चला रही थी. उसकी कोशिश पर्यटकों के लिए बने मानचित्र में एक नया केंद्र स्थापित करना था.
चेट्टीनाड के आसपास के इलाकों में साल के नौ महीने मौसम गर्म रहता है और ये इलाका भी अलग-थलग सा है. एक्सपेरिमेंट के तौर यात्रा करने का शगल आजकल का है, उन दिनों ऐसा नहीं था. लेकिन मीनाक्षी मेयप्पन ने अनुभवों को संरक्षित करने की कला काफी पहले सीख ली थी, जब ऐसा चलन में नहीं था.
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(फोटो: अश्विन राजागोपालन)
बांगला होटल का नाम चेट्टीनाड पाककला का पर्याय बन गया. इस इलाके खाना न सिर्फ भारत के विभिन्न इलाकों में पाये जाने वाले भोजन में सबसे विकसित माना जाता है, बल्कि वो इस समुदाय के वैश्विक संबंधों की भी बखूबी बखान करता है. उदाहरण के तौर पर स्टार एनिसीड या चक्रफूल ऐसी ही एक खाद्य सामग्री है.
मीनाक्षी मेयप्पन ने 60 की उम्र में होटल चलाना शुरू किया. बांगला का केले के पत्ते में परोसा जाने वाला भोजन पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य कारण है, ये होटल चेट्टीनाड की संस्कृति के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध है. होटल का मुख्य रसोईया करुप्पियाह, एक समय में मेयप्पन का पारिवारिक रसोईया हुआ करता था, और सालों तक उनके घर की रसोई का कर्ता-धर्ता वही रहा.
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मीनाक्षी मेयप्पन अपनी बिरादरी की शान बन गईं हैं, उनके समाज के लिए वे उनकी ब्रांड एंबेस्डर हैं. वे दो कॉफी टेबल किताबों की लेखिका भी हैं- जिनका नाम बांगला टेबल - फ्लेवर्स एंड रेसिपीज फ्रॉम चेट्टीनाड और द मैंन्शंस ऑफ चेट्टीनाड है. इन दोनों ही किताबों में इस इलाके की वास्तु-शिल्प इतिहास का वर्णन किया गया है.
मेयप्पन आज भी समय निकाल बांगला में आने वाले मेहमानों और पर्यटकों से बातचीत करती हैं. इस दौरान वे उन्हें इस इलाके की संस्कृति और खानपान के इतिहास के बारे में रोचक जानकारी देती हैं. बांगला में आप जाएंगे तो वहां आपको ऐसी अनेक चीजें मिल जाएंगी, जो एक परिवारिक माहौल पैदा करती है. मसलन, पुरानी तस्वीरें, चेट्टीनाड का पारंपरिक शिल्प, बर्तन इत्यादि. मैं जब भी वहां जाता हूं तो मुझे लगता है कि मैं किसी होटल में नहीं बल्कि घर गया हूं.
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कहा जाता है कि नकल, चापलूसी की सबसे ईमानदार कोशिश है और बांगला के साथ भी ऐसा ही हुआ है. उसकी नकल कर, कई और लोगों ने ऐसे ही मिलते-जुलते होटल यहां खोल लिये हैं.
ऐसा नहीं है कि मीनाक्षी मेयप्पन से प्रेरणा लेने वाले लोगों में सिर्फ उद्यमी या व्यवसायी ही हैं. हर बार जब मैं उनकी महिला स्टाफ से बातें करता हूं. तो वे उनका गुणगान करते नहीं थकती हैं. वे ये बताती हैं कि कैसे मेयप्पन उन्हें हमेशा अच्छा काम करने को प्रेरित करती हैं. उन लोगों को इस बात का बेहद गर्व है कि मेयप्पन ने वो कर दिखाया जो कभी पुरुषों का अधिकार क्षेत्र हुआ करता था.
84 की उम्र पार कर चुकी मीनाक्षी मेयप्पन की उर्जा कम होने का नाम नहीं ले रही, वे आज भी पूरे दमखम से अपने काम में लगी हैं.
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