मुक्तिकामी आंदोलनों ने दुनियां को बहुत कुछ दिया है. स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व की तरफ जितने कदम हम आगे बढ़े हैं, उसमें मुक्तिकामी सघर्षों और आंदोलनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास भी आंदोलन की गौरवशाली परंपरा लिए है. स्त्री संघर्ष के इतिहास में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, श्रमशील महिलाओं के संघर्ष की याद दिलाती रहेगी.
सन 1908 में, अमेरिका के न्यूयार्क शहर में महिलाओं ने बड़ी संख्या में एकजुट होकर मार्च किया. उनकी मुख्य मांग थी कि उनके नौकरी के घंटे कम किए जायें. आगे के दिनों में वेतन की बढ़ोतरी, वोट देने के अधिकार की मांग भी महिलाओं ने की. 1975 में संयुक्त राष्ट संघ ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को आधिकारिक मान्यता दी. अब प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है.
इस दिवस को लोग बड़े पैमाने पर, विभिन्न तरीके से मनाते हैं. यह समाज के लिए बहुत अच्छी बात है. लेकिन इसके मूल संदेश को हमें भूलना नहीं चाहिए. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का मूल उद्देश्य महिलाओं के संघर्ष एवं आंदोलन की शानदार परंपरा को याद करना है और आगे बढ़ाना है.
संघर्ष और आंदोलन आज भी हो रहे हैं. इन संघर्षों से महिलाओं के अधिकारों में इजाफा हुआ है और वे लैंगिक समानता की तरफ कुछ कदम आगे भी बढ़ी हैं. उम्मीद की जा सकती है की एक दिन ये दुनिया जरूर बदलेगी, जहां स्त्री–पुरुष के बीच समानता होगी. वास्तव में तब हमारा समाज मानवीय समाज कहलाने का हकदार होगा.
बीता वर्ष यानि सन 2018, भारतीय महिलाओं के लिए संघर्ष और उपलब्धियों का साल रहा है. सबरीमाला आंदोलन, ट्रिपल तलाक, मी- टू मूवमेंट, एडल्ट्री कानून जैसे मुद्दों पर महिलाओं के संघर्ष की जीत हुई है.
सबरीमाला आंदोलन
सबरीमाला मंदिर में 10 वर्ष से 50 वर्ष तक की महिलाओं का प्रवेश वर्जित था. लैंगिक भेदभाव पर आधारित यह प्रथा महिला के अधिकार को मासिक धर्म के नाम पर सीमित करता है. इस लैंगिक असमानता के खिलाफ लंबे समय तक महिलाओं ने संघर्ष कर मंदिर में प्रवेश करने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त किया.
पीरियड्स के नाम पर धार्मिक, सामाजिक प्रथायें महिलाओं के न केवल अधिकारों को सीमित करती है बल्कि उनका शोषण भी करती है.
पीरियड्स के दौरान महिलाओं के साथ भेदभाव
नेपाल में प्रचलित चौपड़ी प्रथा के कारण पीरियड्स के दौरान महिलाओं की मौत तक होने की घटना हो जाती है. 4 फरवरी 2019 बीबीसी हिन्दी की रिपोर्ट के अनुसार पार्वती बोगाती की मौत माहवारी के दौरान धुआं भरे कमरे में दम घुटने से हुआ. नेपाल में प्रचलित चौपाड़ी प्रथा सरकार द्वारा प्रतिबंधित है. बावजूद इसके समाज का रूढ़िवादी तबका इस प्रकार की स्त्रीविरोधी प्रथाओं को अपनाए है. इस प्रथा का भारत में भी कहीं-कहीं प्रचलन है.
पीरियड्स के दौरान महिलाओं के साथ भेदभाव किये जाने के खिलाफ आवाज उठी है, जागरूकता बढ़ी है. इस प्रकार के प्रयासों को पुरस्कृत किया जा रहा है. ‘पीरियड: एंड आफ सेंटेन्स’ नाम कि एक डाक्यूमेंट्री फिल्म को इस बार का आस्कर अवार्ड मिला है. अवॉर्ड इस प्रकार के प्रयास को उत्साहित करने का काम तो करते हैं लेकिन महत्वपूर्ण है जागरूकता. सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार भी स्त्री जागरूकता का संघर्ष का परिणाम है.
ट्रिपल तलाक, आफरीन रहमान, आतिया साबरी, शायरा बानो आदि महिलाओं ने ट्रिपल तलाक के विरोध में लंबा संघर्ष किया. ट्रिपल तलाक दुनिया के अनेक मुस्लिम देशों में प्रतिबंधित है. यह एक विवादित प्रथा है, जिससे महिलाएं ही अधिक पीड़ित हैं. इस प्रथा को खत्म करने की दिशा में उठाया गया कदम स्वागत योग्य है.
Me too: ‘तू बोलेगी मुंह खोलेगी तब ही तो जमाना बदलेगा’
इस मूवमेंट ने दुनिया भर के शोषितों को अपनी आवाज बुलंद करने का एक प्लेटफॉर्म दिया. महिलाएं, बच्चे और पुरुषों ने भी इस प्लेटफॉर्म से अपनी आप बीती सुनाई. बड़ी-बड़ी हस्तियां सवालों के घेरे में और कानून के दायरे में आ गए. एक प्रकार से यह आंदोलन महिलाओं के पक्ष में है. तमाम विसंगतियों के बावजूद मीटू मूवमेंट से पहली बार वे लोग डरे और सहमे, जिन्होंने कभी–न-कभी यौन शोषण किया था. इस मूवमेंट से जो माहौल बना वह पुरुषों को परेशान करनेवाला तो रहा, लेकिन इससे एक जबर्दस्त संदेश लोगों में गया.
इसके अलावा आईपीसी की धारा-497 (व्याभिचार से संबंधित कानून) को सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया.
ये सारे मुद्दे महिला मुक्ति से जुड़े हैं जो वर्ष 2018 में महिलाओं की उपलब्धि भी कही जा सकती है. बेशक ये छोटी-छोटी जीत है, फिर भी इसे समाजिक समानता की ओर बढ़नेवाला एक एक कदम माना जा सकता है. आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर इन छोटे-छोटे संघर्षों को भी याद रखने की आवश्यकता है.
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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का मूल संदेश श्रम, संघर्ष, आंदोलन में महिलाओं की भूमिका को याद करना उसके महत्व को समझना है. महिलाओं ने फ्रांस की क्रांति से लेकर दुनिया के अनेक परिवर्तनकारी आंदोलनों में हिस्सा लिया. भारत की बात करें तो स्वाधीनता आंदोलन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भागीदारी सर्वविदित है.
बावजूद इसके महिलाएं आज भी गैरबराबरी और शोषण का शिकार हैं. वे सामाजिक असमानता की सबसे बड़ी भुक्तभोगी हैं. एक निर्धन मजदूर स्त्री घर में लैंगिक असमानता का, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का और बाजार में विकल्पहीनता का शिकार होती हैं. अमीर घर की महिलाएं भी पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर असमानता को झेलती हैं. इसलिए महिलाओं की सबसे पहली लड़ाई सामाजिक समानता के लिए होगी.
उसकी अंतिम लड़ाई भी समानता के लिए ही होगी जिसके बिना मानवीय संसार की कल्पना नहीं की जा सकती है. महिला मुक्ति का स्वप्न पूरा तब तक पूरा नहीं हो सकता है. इसके लिए जरूरी है की स्त्रियां सामाजिक समानता के आंदोलनों में अपनी भूमिका अदा करे. आंदोलनों से और संघर्षों से ही समाज की तस्वीर बदलती है. आज का दिवस इसी महत्वपूर्ण संदेश के स्मरण का दिन है. दुनिया भर के महिलाओं-पुरुषों को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई.
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