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द टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए स्ट्रिंगर के रूप में काम करने वाले पत्रकार अखलाद खान का सोमवार, 11 अप्रैल को मुरादाबाद में हार्ट अटैक की वजह से निधन हो गया. अखलाद की उम्र सिर्फ 28 साल की थी.
खान ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में बड़े पैमाने पर हेट स्पीच से जुड़े अपराधों को कवर किया और 2020 उत्तर-पूर्वी दिल्ली सांप्रदायिक हिंसा से संबंधित मामलों पर बारीकी से नजर रखी. अगर आप उनकी ट्विटर टाइमलाइन पर निगाह डालेंगे तो पाएंगे कि उनके ज्यादातर ट्वीट सांप्रदायिक हिंसा और घृणा अपराधों के बारे में जानकारी देने पर केंद्रित थे.
मैंने अखलाद से कई बार बातचीत की, ज्यादातर हेट क्राइम की खबरों को लेकर और उत्तर-पूर्वी दिल्ली हिंसा के आरोपी शाहरुख पठान के खिलाफ मामले पर भी अपडेट के लिए बातचीत की है जो अखलाद का रिश्तेदार था.
उनके साथ मेरी आखिरी टेलीफोन पर बातचीत इस साल जनवरी के आखिरी हफ्ते में हुई थी, जब उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया और अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन ऑन द ग्राउंड न्यूज के साथ एक स्ट्रिंगर के रूप में शामिल होने से ठीक पहले सलाह लेने के लिए फोन किया था.
द क्विंट में मेरे सहयोगी मेघनाद बोस भी याद करते हैं कि अखलाद अक्सर विभिन्न प्रकाशनों को बिना किसी फीस के हेट क्राइम्स पर स्टोरी और इनपुट भेजते थे.
पंजाब की एक पत्रकार कुसुम अरोड़ा याद करते हुए कहती हैं कि अखलाद ने कोरोना के समय खूब मदद की. उन्होंने कहा, "ऐसे ही अखलाद ने मेरे एक ट्वीट पर रिप्लाई किया और मेरे दोस्त के चचेरे भाई को दिल्ली के अस्पताल में भर्ती कराया."
जो पत्रकार अखलाद के साथ काम करते थे उनका मानना है कि काम के तनाव की वजह से अखलाद के स्वास्थ्य पर असर पड़ा है.
अखलाद सबसे बहादुर, सबसे आदर्शवादी और जोशीले पत्रकारों में से एक थे. उनकी मौत से इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि भारत में मुस्लिम पत्रकार, विशेष रूप से सांप्रदायिकता पर नजर रखने वाले पत्रकारों का वर्तमान में क्या हाल है.
न्यूजक्लिक के पत्रकार तारिक अनवर ने अपने विचार व्यक्त किए जो हेट क्राइम की खबरें कवर करते हैं. अखलाद की मौत की खबर के बाद तारिक अनवर ने अपने फेसबुक पर लिखा, "नफरत और लाचारी का यह माहौल हम पर भारी पड़ता है. यह हमें तनाव देता है, चिंता पैदा करता है."
मुस्लिम पत्रकारों के लिए ये कितना मुश्किल हैं क्योंकि उन्हें मुस्लिमों के खिलाफ फैलाई जा रही नफरत पर रिपोर्टिंग करनी होती है. जब आप सुनते हैं कि मुसलमानों को कैसे मारा जाना चाहिए या मुस्लिम महिलाओं का बलात्कार कैसे किया जाना चाहिए, इस पर जहर से भरे अभद्र भाषा सुनते हैं तो आपको इन सारी खबरों को बिना किसी भावना के साथ देखना होता है.
जबकि आप ये जानते हैं कि ये सारा जहर आप पर केंद्रित हैं और आपके परिवार और समुदाय के लिए वास्तविक जीवन में इसके परिणाम हो सकते हैं.
जरा सोचिए कि सुल्ली डील्स, बुल्ली बाई, और कई नफरत भरे संदेशों और बलात्कार की धमकियों की पीड़िता पर क्या गुजरती होगी और सोचिए इससे गुजरने के बाद उन्हें कर्नाटक में हिजाबी लड़कियों के मामले पर रिपोर्टिंग करने जाना होता है, उनके मन में क्या चलता होगा?
लेकिन अखलाद खान चला गया, बहुत जल्दी. अखलाद समाज में फैल रहे जहर की चपेट में आ गया. यह जहर हर बीतते दिन के साथ बढ़ता ही जा रहा है. अखलाद उस न्याय से पहले ही चल बसा, जिसकी वह उम्मीद कर रहा था. उसे वह शांति और न्याय मिले जो उसे इस दुनिया में नहीं मिला. RIP अखलाद.
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Published: 17 Apr 2022,06:27 PM IST