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महाराष्ट्र के ‘राजकीय संस्कृति और परंपरा’ के नाम पर पिछले चार-पांच दिनों में बड़ा राजनीतिक ‘खेला’ हुआ है. अंधेरी (पूर्व) विधानसभा उपचुनाव को लेकर बहुत गहमागहमी रही. यहां शिवसेना उद्धव बाला साहब ठाकरे (Shivsena Uddav Balasahab Thakare)(एसयूबीटी) गुट की ओर से दिवंगत विधायक रमेश लटके (MLA Ramesh Latake) की पत्नी रितिका लटके( Ritika Latake) को उम्मीदवार बनाया गया, जबकि भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने मुरजी पटेल (Muraji Patel) को मैदान में उतारा था.
कोई अन्य पार्टी उसके खिलाफ अपना प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारती. मतलब ‘अनुकंपा विधायक’ या ‘अनुकंपा सांसद’ के चुनाव को संस्कृति का जामा पहनाकर लोकतांत्रिक वंशवाद या परिवारवाद को स्थापित किया जाता है. यह हुई सिद्धांत की बात. इसी सिद्धांत का आधार लेकर भारतीय जनता पार्टी ने अपने प्रत्याशी को नाम वापस लेने का निर्देश दिया.
अंधेरी पूर्व में अब राजनीतिक दल का कोई उम्मीदवार नहीं है पर कई निर्दलीय प्रत्याशी अभी भी मैदान में हैं इसलिए चुनाव के लिए 3 नवंबर को मतदान जरूर होगा और संभावना है कि श्रीमती लटके उसमें विजयी होंगी.
अंधेरी पूर्व उप चुनावों से बीजेपी क्यों हटी? क्या उसे उपचुनाव में पराजय की आशंका थी? क्या एसयूबीटी को मैदान में ताकत प्रदर्शित करने का मौका न देने के लिए यह कदम उठाया गया? क्या मुंबई महानगर पालिका चुनाव की रणनीति के तहत यह निर्णय लिया गया? ऐसे कई अनुत्तरित सवाल है जो जवाब का इंतजार कर रहे हैं.
पहले महाराष्ट्र की ‘राजकीय संस्कृति और 'परंपरा’ की बात करते हैं. इस ‘राजकीय संस्कृति और परंपरा’ को सभी दलों ने अपनी सुविधानुसार अपनाया और पैरों तले रौंदा है. इसे सुविधा की राजनीति कहना ज्यादा उपयुक्त होगा. पिछले ढाई साल में महाराष्ट्र विधानसभा के लिए तीन उपचुनाव हुए हैं.
कोल्हापुर (उत्तर) Kolhapur (North) विधानसभा उपचुनाव कांग्रेस विधायक चंद्रकांत जाधव Chandrakant Jadhav) के निधन के कारण हुआ. यहां उनकी पत्नी जयश्री जाधव (Mrs.Jayshree Jadhav) को टिकट दिया गया था. उनके खिलाफ बीजेपी ने सत्यजीत कदम (Satyajit Kadam) को मैदान में उतारा.
चुनाव में जीत जयश्री जाधव की हुई. इसी तरह पंढरपुर- मंगलवेढ़ा (Pandharpur-Mangalvedha) विधानसभा उपचुनाव में एनसीपी विधायक भरत भालके (Bharat Bhalake) का निधन होने पर उनके बेटे भगीरथ भालके (Bhagirath Bhalake) को टिकट दिया गया.
यहां उनके बेटे जितेश रावसाहब अंतापुरकर (Jitesh Raosahab Antapurkar) को प्रत्याशी बनाया गया. उन्होंने बीजेपी के सुभाष साबणे (Subhash Sabane) को पराजित किया. जिस ‘राजकीय संस्कृति और परंपरा’ के पालन के बात बीजेपी कर रही है, उसने इन तीनों विधानसभा उपचुनाव में दिवंगत विधायक के घरवालों के खिलाफ अपने उम्मीदवार खड़े किए. इनमें सिर्फ पंढरपुर विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस को पराजित किया.
शेष दो में उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा. अंधेरी (पूर्व) में इस ‘राजकीय संस्कृति और परंपरा’ का पालन करने के नाम पर बीजेपी के चुनाव मैदान से हटने पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले और विधान मंडल में विरोधी पक्षनेता बालासाहेब थोरात सवाल कर रहे हैं कि पंढरपुर, देगलूर और कोल्हापुर (उत्तर) विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी इस ‘राजकीय संस्कृति और परंपरा’ को कैसे भूल गई थी?
मुंडे की बेटी के उपचुनाव में कांग्रेस भी भूली थी ‘राजकीय संस्कृति और परंपरा’ को कांग्रेस जिस ‘राजकीय संस्कृति और 'परंपरा’ की याद बीजेप को दिला रही है, उस परंपरा का निर्वहन कांग्रेस ने भी नहीं किया है. 2014 में बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे (Gopinath Munde) के निधन के बाद बीजेपी ने उनकी बेटी प्रीतम मुंडे Preetam Munde) को बीड (Beed) लोकसभा सीट उपचुनाव के लिए प्रत्याशी बनाया.
तब कांग्रेस ने इस परंपरा को तिलांजलि देते हुए प्रीतम मुंडे के खिलाफ कांग्रेस के अशोकराव शंकरराव पाटील ( Ashok Shankarrao Patil) को टिकट दिया. इस उपचुनाव में अशोक पाटिल 696000 मतों से पराजित हुए. सभी दल अपनी सहूलियत से ‘राजकीय संस्कृति और परंपरा’ का मुद्दा उठाते हैं और एक दूसरे पर टीका टिप्पणी करते रहते हैं.
परिवार के सदस्य को टिकट दिए जाने पर जिस ‘राजकीय संस्कृति और परंपरा’ की बात की जा रही है, उस ‘परंपरा’ की भी एक ‘परंपरा’ है. जिस राजनीतिक दल के विधायक का निधन हुआ होता है, उसके परिवार के सदस्य को अनुकंपा टिकट दिए जाने के बाद परंपरा के अनुसार संबंधित पार्टी का अध्यक्ष अन्य दलों से अनुरोध करता है कि वे यह चुनाव निर्विरोध कराने में सहयोग दें.
अंधेरी (पूर्व) उपचुनाव में शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने निर्विरोध चुनाव की अपील भी नहीं की थी. बीजेपी से निर्विरोध चुनाव कराने की अपील महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे (Raj Thakare) ने की जो इस चुनाव में कहीं भी नहीं थे. एनसीपी नेता शरद पवार ने भी यही बात कही. इन दोनों की अपील पर बीजेपी तत्काल सक्रिय हो गई और दिल्ली से चर्चा के बाद बीजेपी प्रत्याशी मुरजी पटेल का नाम वापस लेने की घोषणा की गई.
इस सारे घटनाक्रम में जिस तेजी से फैसला लिया गया, वह आश्चर्यजनक है. इससे पहले बीजेपी की ओर से दावा किया गया था कि मुरजी पटेल भारी मतों से जीतेंगे क्योंकि 2019 के चुनाव में बीजेपी से बगावत कर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पटेल ने 45000 से ज्यादा वोट हासिल किए थे. बीजेपी के फैसले को लेकर यह भी पूछा जा रहा है कि जब ‘राजकीय संस्कृति और परंपरा’ का पालन किए जाने की बात कही जा रही है तो पर्चा भरने के समय इस बात को याद क्यों नहीं किया गया.
यह भी चर्चा हो रही है कि बीजेपी इस उपचुनाव से अपनी जान छुड़ाना चाहती थी, इसलिए उसने मुंबई बीजेपी अध्यक्ष आशीष शेलार (Aashish Shelar) को राज ठाकरे के पास भेज कर इस प्रकार की अपील करने का आग्रह किया. बीजेपी यह बात स्वयं नहीं कह सकती थी, इसलिए राज ठाकरे की आड़ में यह काम किया गया.
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (CM Ekanath Shinde) ने भी राज ठाकरे से मुलाकात की थी और संभावना इस बात की है कि मैदान से वापसी की पटकथा इसी दौरान लिखी गई हो. राज ठाकरे के बाद शरद पवार ने भी ऐसी ही अपील की जिससे बीजेपी ने हाथों-हाथ लपक लिया.
यह भी चर्चा है की शिंदे (बालासाहेबांची शिवसेना) गुट की इस उपचुनाव में रुचि नहीं थी. मुंबई प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष आशीष शेलार यह चुनाव लड़ाने के लिए बेताब थे और मुरजी पटेल के पीछे वहीं खड़े थे. मैदान से हटने के फैसले पर भी उनकी असहमति थी. यह बात भी सामने आई है कि अंधेरी (पूर्व) के बीजेपी कार्यकर्ता और मुरजी पटेल से नाखुश थे और पार्टी का एक बड़ा गुट पटेल के खिलाफ था. कहा जा रहा है कि इस फैसले के जरिए आशीष शेलार के पर कतरे गए हैं.
बीजेपी को इस निर्णय के लिए सहमत कराने का श्रेय लेने की भी होड़ है. राज ठाकरे ने यह फैसला लेने के लिए बीजेपी को धन्यवाद देते हुए कहा है कि हमारे अनुरोध को स्वीकार कर बीजेपी ने चुनाव न लड़ने का फैसला किया है उसके लिए आभार प्रकट करता हूं. इस पर चुटकी लेते हुए शरद पवार ने कहा है कि किसी के भी मुर्गे के बांग देने से सुबह होती है, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है.
बीजेपी ने फैसला किया है तो यह अच्छा किया है. निर्णय क्या हुआ है, यह महत्वपूर्ण है. वह कब हुआ और क्यों हुआ यह महत्वपूर्ण नहीं है. जेल में बंद संजय राउत का कहना है कि राज ठाकरे का पत्र बीजेपी की स्क्रिप्ट का ही हिस्सा है, क्योंकि उपचुनाव में बीजेपी 45,000 से अधिक वोटों से हार रही थी. उनका कहना है कि बीजेपी ने अंधेरी(पूर्व) विधानसभा चुनाव क्षेत्र का सर्वे कराया था जिसमें बीजेपी के हारने की रिपोर्ट मिली थी. प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले( Chandrashekar Bawankule)और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ( Dy CM Devendra Phadanvis)का कहना है कि बीजेपी की जीत पक्की थी, लेकिन परंपरा का पालन करते हुए हमारे प्रत्याशी ने नाम वापस लिया है.
यह भी कहा जा रहा है कि मुंबई मनपा चुनाव को ध्यान में रखकर अंधेरी पूर्व उपचुनाव से बीजेपी ने हाथ खींचा है. चुनाव लड़कर अगर उद्धव गुट जीतता तो यह जाहिर होता है कि पिछले 5 महीनों के राजनीतिक घटनाक्रम में सहानुभूति का फायदा उद्धव गुट को मिला है. बीजेपी के जीतने की स्थिति में हार जीत का फैसला यह बताता है कि शिंदे गुट दम रखता है या उद्धव गुट दमदार है. हर हाल में इस सीधे मुकाबले में हुई जीत- हार का असर मुंबई महानगर पालिका के चुनाव पर पड़ना ही था.
बहस का मुद्दा यह है कि क्या ‘अनुकंपा विधायकी’ संसदीय लोकतंत्र को मजबूत करती है? इसके राजनीतिक निहितार्थ क्या हैं? क्या यह लोकतांत्रिक वंशवाद,परिवारवाद को बढ़ावा नहीं देती है? क्या गुणवत्ता को छोड़कर सिर्फ सहानुभूति के सहारे पार्टियों का चुनाव जीतना सही है? और सबसे अंत में यह कि अपनी सुविधानुसार ‘राजकीय संस्कृति और परंपरा’ की दुहाई देना कहां तक उचित है? यह भी तय है कि इन सवालों के जवाब और कोई नहीं बल्कि राजनीतिक दल ही अपनी कथनी और करनी से देंगे.
(विष्णु गजानन पांडे महाराष्ट्र की सियासत पर लंबे समय से नजर रखते आए हैं. वे लोकमत पत्र समूह में रेजिडेंट एडिटर रह चुके हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं और उनसे ‘दी क्विंट’ का सहमत होना जरूरी नहीं है)
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