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PM मोदी को उनके गेम में ही चुनौती.. इन 10 वजहों से अरविंद केजरीवाल BJP के मुख्य टारगेट हैं

बीजेपी का मानना ​​है कि केजरीवाल की पार्टी का मजबूत होना, राज्य स्तर पर उसके चुनावी हितों को नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखती है.

के नागेश्वर
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>अरविंद केजरीवाल BJP के मुख्य टारगेट क्यों हैं, इसके 10 कारण हैं </p></div>
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अरविंद केजरीवाल BJP के मुख्य टारगेट क्यों हैं, इसके 10 कारण हैं

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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Arvind Kejriwal Arrest: केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्रवाई का सामना कर रहे कई विपक्षी नेताओं में से अरविंद केजरीवाल मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार (Modi Government) का मुख्य टारगेट दिखाई पड़ते हैं. इसके कई कारण हैं और यहां, मैं उनमें से दस को बता रहा हूं.

1. लगातार दो कार्यकाल के बाद भी कांग्रेस से मुकाबले में बीजेपी अजेय नजर आती है. निःसंदेह, मोदी की दुखती रग क्षेत्रीय पार्टियों के खिलाफ लड़ाई में है. हालांकि, क्षेत्रीय दलों का प्रभाव सीमित है और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) जैसे अपवाद को छोड़कर, क्षेत्रीय पार्टियों का बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल होने का इतिहास रहा है.

इसके विपरीत, केजरीवाल की AAP (आम आदमी पार्टी) ने बीजेपी के साथ कोई भी संबंध रखने से इनकार कर दिया है और वह देश भर में भगवा ब्रिगेड के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरने की कोशिश कर रही है. हालांकि, अब तक AAP को बहुत सीमित सफलता मिली है. बीजेपी केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी को 2024 के बाद संभावित प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखती है.

आमतौर पर किसी भी राज्य में कांग्रेस के कमजोर होने से बीजेपी, उसके सहयोगियों या संभावित सहयोगियों को फायदा हुआ है. उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) या युवजन श्रमिक रायथू कांग्रेस पार्टी (YCP), और तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) को फायदा मिला. पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा आदि राज्यों में भी कांग्रेस के कमजोर होने का फायदा बीजेपी को मिला.

लेकिन, दिल्ली में कांग्रेस के कमजोर पड़ जाने से आम आदमी पार्टी विजयी हुई और बीजेपी को यह मौका नहीं मिला. इसी तरह, AAP ने बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल (SAD) को पछाड़ कर पंजाब में कांग्रेस सरकार को हटा दिया. AAP गुजरात और गोवा जैसे राज्यों में भी प्रवेश कर रही है, वहीं, कांग्रेस मोदी के रथ को चुनौती देने में विफल रही है.

इस प्रकार, बीजेपी का मानना ​​है कि राज्य स्तर पर केजरीवाल की पार्टी का उदय उसके चुनावी हितों को नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखती है.

2. उत्तरी और पश्चिमी भारत में बीजेपी की मजबूत पकड़ बनी हुई है. 2019 के बाद से, बीजेपी ने भारत के उत्तर और उत्तरपूर्वी हिस्सों में अपने प्रभाव क्षेत्र का काफी विस्तार किया है.

दक्षिण भारत की सियासी जमीन को साधना बीजेपी के लिए मुश्किल बना हुआ है. कांग्रेस और उसके सहयोगी दक्षिण भारत में 130 सीटों के साथ और अधिक मजबूत होकर उभरे हैं, जिससे बीजेपी के लिए अपनी सीटें बढ़ाने की बहुत कम गुंजाइश बची है. इसके विपरीत, AAP उत्तर भारत में बीजेपी को चुनौती देती है, जहां बीजेपी की वैचारिक और संगठनात्मक पकड़ मजबूत है. बीजेपी अपने घरेलू मैदान पर ऐसी चुनौती बर्दाश्त नहीं कर सकती.

3. बीजेपी अल्पसंख्यक वोटों के लिए अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को हिंदू विरोधी बताकर उनके खिलाफ हिंदुत्व का इस्तेमाल करती है. इस मामले में कुछ विपक्षी दल अपने-अपने कारणों से बीजेपी को इसे राजनीतिक हथियार बनाने का जरिया भी देते रहते हैं. उदाहरण के लिए, बीजेपी ने सनातन धर्म पर डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन की टिप्पणियों के लिए विपक्षी 'इंडिया ब्लॉक' पर निशाना साधा.

हालांकि, बीजेपी अरविंद केजरीवाल के खिलाफ इस तरह के हिंदू विरोधी आरोप नहीं लगा सकती है. केजरीवाल ने खुद को भगवान हनुमान का भक्त बताकर और अयोध्या की मुफ्त तीर्थयात्रा जैसे वादे करके अपने आप को हिंदूवादी के रूप में स्थापित किया है.

अरविंद केजरीवाल ने बड़े पैमाने पर देशव्यापी सीएए विरोधी प्रदर्शनों से खुद को दूर रखा और दिल्ली दंगों के दौरान भी आलोचना के बावजूद इससे दूर रहे.

इस प्रकार, केजरीवाल AAP को अल्पसंख्यक समर्थक के रूप में चित्रित करने के प्रयास में बीजेपी को मात देते हैं. इसलिए केजरीवाल की राजनीति बीजेपी को नागवार गुजर रही है.

4. बीजेपी विपक्ष यानी कांग्रेस पार्टी या क्षेत्रीय पार्टियों पर जुबानी हमला बोलती है और उन्हें भ्रष्ट करार देती है. इसके विपरीत, आम आदमी पार्टी और केजरीवाल दोनों का उदय 'इंडिया अगेंस्ट द करप्शन' आंदोलन हुआ है. दरअसल, यूपीए-2 शासन के दौरान हुए इस आंदोलन से नरेंद्र मोदी को सत्ता में आने में फायदा भी हुआ था.

इसलिए, बीजेपी जल्दी केजरीवाल को भ्रष्ट घोषित करना चाहती है, जिससे वह दावा पेश कर सके कि बीजेपी देश भर में भ्रष्ट शासन के खिलाफ लड़ने वाली एकमात्र पार्टी है.

बीजेपी का 'भ्रष्टाचार-विरोधी' राजनीतिक नैरेटिव अरविंद केजरीवाल को बदनाम करने में फेल रहा है.

5. बीजेपी केजरीवाल पर परिवारवाद की राजनीति को बढ़ावा देने का आरोप नहीं लगा सकती, जो अक्सर कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाने वाला हथियार है. आखिरकार, AAP एक आंदोलन से उभरी है, जिसका हिस्सा कई नागरिक समाज संगठन थे. AAP नेतृत्व द्वारा परिवारवाद को कायम रखने के कोई संकेत नहीं हैं. इस प्रकार, बीजेपी को कोई मौका नहीं मिल रहा है.

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6. बीजेपी भलीभांति जानती है कि भारत के विविध राजनीतिक परिदृश्य में केवल हिंदुत्व ही पर्याप्त नहीं है. वास्तव में, 2014 में मोदी का नारा गुजरात मॉडल के विकास का था, जिसे पार्टी आसानी से भूल गई है. हालांकि, बीजेपी अभी भी कांग्रेस के दशकों के कुशासन और अस्थिर क्षेत्रीय पार्टी की साजिशों का हवाला देकर निराश मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए स्वच्छ राजनीति और सुशासन के राजनीतिक नैरेटिव का उपयोग करती है.

AAP स्वच्छ राजनीति और सुशासन को अपना अनोखा यूएसपी भी बताती है. दिल्ली के विकास मॉडल के आसपास इसके अभियान ने उन्हें पंजाब में सत्ता हासिल करने और अन्य जगहों पर विस्तार करने में मदद की.

वास्तव में, मूल रूप से निवेश पर निर्भर गुजरात मॉडल के प्रचार की तुलना में शिक्षा और स्वास्थ्य में दिल्ली का ट्रैक रिकॉर्ड अधिक विश्वसनीय नैरेटिव साबित हुआ है.

7. देश का नेतृत्व कौन करेगा, इस मामले में बीजेपी स्पष्ट रूप से अपने प्रतिद्वंद्वियों से आगे है. इस प्रकार, 'ब्रांड मोदी' का व्यक्तित्व बीजेपी का चुनावी आकर्षण है. भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी की छवि बदली, इसके बावजूद कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा.

कई क्षेत्रीय नेता मोदी के व्यक्तित्व पर सफलतापूर्वक अंकुश लगा सकते हैं लेकिन, उनकी पहुंच उनके राज्यों तक ही सीमित है. ममता बनर्जी, केसीआर, नीतीश कुमार आदि की राष्ट्रीय छवि बनने की कोशिशें लड़खड़ा गईं लेकिन इस मामले में अरविंद केजरीवाल एक चुनौती बने हुए हैं.

8. मोदी की सफलता सोशल मीडिया के निर्णायक प्रभाव से महत्वपूर्ण रूप से जुड़ी हुई है, जिसने उन्हें नए, युवा, बल्कि अराजनीतिक मतदाताओं के साथ प्रभावी संबंध बनाने में मदद की. सोशल मीडिया की दुनिया में जगह बनाने के मामले में न तो कांग्रेस नेता और न ही कोई अन्य क्षेत्रीय नेता नरेंद्र मोदी और बीजेपी के करीब पहुंच पाए हैं लेकिन, केजरीवाल और उनकी AAP को उनके सोशल मीडिया फॉलोअर्स से भारी समर्थन मिलता रहा है.

9. पीएम मोदी अपनी प्रमुख योजनाओं की लोकप्रियता का उपयोग करके समर्थन जुटाते हैं. बीजेपी ने लाभार्थियों पॉलिटिक्स को संस्थागत बनाकर लाभार्थियों को वोट बैंक में बदल दिया है. यहां भी केजरीवाल टक्कर के हैं. इन मुफ्त चीजों को अक्सर मोदी रेवड़ी संस्कृति के रूप में टारगेट करते हैं. लेकिन पीने के पानी, बिजली और महिलाओं के लिए मुफ्त परिवहन पर केजरीवाल की योजनाएं मतदाताओं के बीच बेहद लोकप्रिय हैं.

10. बीजेपी और AAP दोनों के मतदाता मध्यम वर्ग और आकांक्षी भारतीय हैं. केजरीवाल इन पारंपरिक वोट बैंक को लेकर बीजेपी के लिए संभावित चुनौती साबित हो सकते हैं. अनुच्छेद 370, सर्जिकल स्ट्राइक, राम मंदिर, नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और समान नागरिक संहिता जैसे कई मुद्दों पर वैचारिक रूप से अस्वीकार्य लेकिन राजनीतिक रूप से चतुर स्टैंड से केजरीवाल ने आक्रमण भाषणों के जरिए उनपर हमला करने वाले प्रतिद्वंदी बीजेपी को 'राष्ट्र-विरोधी' कहकर निहत्था कर दिया है '.

दिल्ली में कड़ी प्रतिद्वंद्विता के बावजूद, अरविंद केजरीवाल का कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया ब्लॉक में शामिल होना, बीजेपी के लिए परेशान करने वाला है. वजह है कि बीजेपी ने राज्य विधानसभा चुनावों में निराशाजनक प्रदर्शन के बावजूद दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीटें जीती थीं.

उपराज्यपाल के जरिए दिल्ली सरकार की शक्तियों पर अंकुश लगाने की चाल और अब कथित दिल्ली शराब घोटाले में गिरफ्तारी, ये सब भारतीय राजनीति में केजरीवाल के प्रयोग को रोकने के लिए बीजेपी के गेम प्लान का हिस्सा है.

(प्रोफेसर के नागेश्वर एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक, उस्मानिया विश्वविद्यालय के संकाय सदस्य और पूर्व एमएलसी हैं. यह एक ओपनियन पीस है और व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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