मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019केजरीवाल वही राजनीति कर रहे हैं, जिससे कभी नफरत करते थे

केजरीवाल वही राजनीति कर रहे हैं, जिससे कभी नफरत करते थे

केजरीवाल के ऐलान-’’बुजुर्गों को अयोध्या की मुफ्त तीर्थयात्रा, राम राज्य के सिद्धांत पर शासन’’

आशुतोष
नजरिया
Published:
i
null
null

advertisement

क्या देश में सेक्यूलरिज्म यानी धर्मनिरपेक्षता ने दम तोड़ दिया है? एक वह दौर था जब देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन में जाने पर ऐतराज जता दिया था. उनका तर्क था कि भारत एक सेक्युलर देश है और यहां के मुखिया को किसी धार्मिक कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बनना चाहिए. राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू की नहीं सुनी थी. वह कार्यक्रम में चले गए थे. इसी से यह बहस छिड़ गई थी कि क्या धर्म किसी का निजी मामला है और क्या राज्य को धर्म के मामलों में दखल देना चाहिए.

लेकिन तब से अब तक दुनिया बहुत बदल चुकी है. धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा का कोई मायने नहीं रह गया है. राजनीति के साथ धर्म की मिलावट न्यू नॉर्मल बन चुका है. इसके लिए किसी एक राजनीतिक दल को जिम्मेदार नहीं ठहराजा जा सकता. हर पार्टी का दामन भीगा हुआ है. हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने एक राजनीतिक मंच से चंडी पाठ किया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा में भाषण के दौरान खुद को राम भक्त बताया.

उन्होंने सदन में कहा कि उनकी सरकार रामराज्य के सिद्धांतों पर ही काम करती आई है.

क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री दक्षिण की तरफ मुड़ गए हैं

ममता बैनर्जी एक तनाव भरे चुनावी माहौल के बीचों-बीच हैं. भाजपा ने बंगाल की राजनीति को जबरदस्त तरीके से घुमाकर रख दिया है. आर्थिक और धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे कहीं नेपथ्य में चले गए हैं. वहां सबसे बड़ी बहस इस बात पर छिड़ी है कि कौन कितना बड़ा हिंदू है. हाल तक राज्य में सेक्युलर-लेफ्ट का बोलबाला था. लेकिन अब यह चर्चा हो रही है कि राम बड़ा आइकन हैं या देवी दुर्गा. ये वैसा ही है जैसे अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा चुनावों में हनुमान चालीसा का पाठ किया था.

आप लॉजिक दे सकते हैं कि प्यार और जंग में सब जायज है. ऐसे में ममता बैनर्जी और अरविंद केजरीवाल को चुनावों के दौरान ऐसी गुस्ताखी के लिए माफ किया जा सकता है. लेकिन इसका क्या तर्क हो सकता है कि केजरीवाल विधानसभा सत्र के दौरान खुद को राम और हनुमान का भक्त बता रहे हैं.

केजरीवाल के भाषण से पहले उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में देशभक्ति को शामिल करने की बात कही और यह भी कहा कि दिल्ली में 500 जगहों पर तिरंगे लगाने के लिए 45 करोड़ रुपए खर्चे जाएंगे. इससे साफ संकेत मिलता है कि यह काफी सोचा-विचारा कदम है, और आप के नेताओं ने धार्मिक नजरिए से बजट तैयार करने में अच्छा खासा समय खपाया है. क्या इसका मतलब यह है कि केजरीवाल ने मोदी से कुछ पैंतरे उधार लिए हैं और दक्षिणपंथी हो गए हैं? क्या इसका यह मतलब भी है कि यह केजरीवाल का वह पहलू है जिसे अब तक एक बड़े वर्ग ने देखा नहीं था और जोकि आरएसएस जैसा ही है?

बदले बदले क्यों नजर आ रहे हैं केजरीवाल

राजनीति में आने से पहले केजरीवाल के लिए कहा जाता था कि वह आरएसएस के वॉलंटियर थे. जब उनके मेंटर अन्ना हजारे जंतर मंतर पर भूख हड़ताल के लिए बैठे थे, तब यह आरोप लगाया जाता था कि आरएसएस ने इस धरने को ‘स्पांसर’ किया है और उनके पीछे भारत माता का पोट्रेट इस बात का सबूत है. यह भी आरोप लगाया जाता था कि अन्ना हजारे और उनकी टीम के साथ मंच पर आरएसएस के कुछ वरिष्ठ नेता भी मौजूद थे. लेकिन जब मीडिया ने इस मुद्दे को उछाला तो सब गायब हो गए.

मेरा हमेशा से मानना है कि अन्ना के अभियान को आरएसएस ने नहीं चलाया था और न ही उनके नेता फैसला लेने की प्रक्रिया में शामिल थे. लेकिन इस बात का खंडन नहीं किया जा सकता कि आरएसएस ने इस अभियान में हिस्सा नहीं लिया, और अपने फायदे के लिए उसका इस्तेमाल नहीं किया.

मैं यह भी कबूल करता हूं कि AAP के साथ मेरा जितना भी ताल्लुक रहा, मैंने केजरीवाल को आरएसएस का हमदर्द कभी नहीं पाया, और न ही कभी यह देखा कि उनका झुकाव हिंदुत्व की तरफ है.

इसीलिए मैं अपने सेक्युलर-लेफ्ट विचारधारा वाले दोस्तों से इस बात पर इत्तेफाक नहीं रखता कि केजरीवाल को आरएसएस ने ही उभारा था ताकि मनमोहन सिंह सरकार का तख्ता पलट किया जा सके.

इसी से यह काफी उलझन में डालने वाली बात है कि वह अपनी राजनीति के लिए धर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं और ‘दक्षिण’ की तरफ मुड़ रहे हैं. यह और भी हैरान करने वाली बात इसलिए है क्योंकि वह न तो बहुत धार्मिक हैं, और ही धार्मिक कर्मकांड वाले व्यक्ति हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

केजरीवाल और उनका राजनीतिक सफर

वैसे राजनीति केजरीवाल का पेशा नहीं रहा है. एनजीओ बनाने से पहले वह इनकम टैक्स विभाग में सीनियर अधिकारी थे. वह इत्तेफाकन राजनीति में आए थे. अगर अन्ना आंदोलन नहीं होता और होता, तो इतना सफल नहीं होता तो शायद अब भी केजरीवाल दिल्ली के किसी कोने में गरीब लोगों के बीच काम कर रहे होते. राजनीति के लिए उन्होंने कोई तैयारी नहीं की थी. वह तो बस, यहां पहुंच गए. राजनीति और भारत के राजनीतिक इतिहास की स्मृतियां भी उनकी सीमित हैं. उनकी पार्टी के पास भी लंबी अवधि की राजनीति के कोई संस्थागत संस्मरण नहीं हैं.

इसके अलावा उनके पास कोई ठोस विचारधारा भी नहीं है. न ही उन्हें इस बात में दिलचस्पी है कि राजनीति और समाज का विश्लेषण करें और कोई विचारधारा ग्रहण कर लें ताकि भविष्य के लिए एक दृष्टिकोण पनप सके. उन्हें बस कुछ छुटपुट आइडिया हैं.

रोजमर्रा की राजनीति की क्या जरूरतें हैं, उनकी राजनीति सिर्फ इसी आधार पर तय होती है और उसका लाभ उठाने की कोशिश करती है.

2012 में जब आम आदमी पार्टी बनी थी, राजनीति एक अलग ही सतह पर काम कर रही थी. हिंदू वोट बैंक ने निश्चित रूप धारण नहीं किया था और मुसलिम वोटर्स पर भी पूरा फोकस होता था.

उस समय केजरीवाल नमाजी टोपी में भी नजर आए थे, मुफ्तियों और मौलवियों के साथ भी दिखाई दिए थे. रमजान के समय इफ्तार में भी पहुंचे थे. लेकिन 2014 के बाद से राजनीति काफी बदल गई है. ऐसा ऐसा इकोसिस्टम तैयार हुआ है कि अगर कोई नेता अल्पसंख्यकों के साथ नजर आता है तो लगता है कि जैसे उसने कोई राजनीतिक पाप कर दिया है. ऐसा लगता है कि अगर वह खुद को हिंदुओं का हमदर्द दिखाएगा तो उसे राजनैतिक फायदा होगा.

विधानसभा चुनावों में हनुमान चालीसा पढ़ना केजरीवाल के पलटने की शुरुआत

केजरीवाल शाहीन बाग या उत्तर पूर्वी हिंसा वाले इलाकों में क्यों नहीं गए

यही वजह थी कि केजरीवाल सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों से मिलने शाहीन बाग नहीं गए, लेकिन खेती कानूनों के विरोध में धरने पर बैठे किसानों से मिलने सिंघु बॉर्डर पहुंचे. उनके हिसाब से शाहीन बाग आंदोलन की अगुवाई मुसलमानों ने की थी. इसी तरह वह उत्तर पूर्वी दिल्ली के उन इलाकों में नहीं गए जहां दंगों में 53 लोग मारे गए. जब दंगों में उनकी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन का नाम आया तो उन्होंने जांच तक का इंतजार नहीं किया और उन्हें पार्टी से निकाल दिया.

यह आरोप भी लगाए गए कि उनकी सरकार ने दंगा प्रभावित क्षेत्रों में पूरी मुस्तैदी से पुनर्वास कार्यक्रम नहीं चलाए.

केजरीवाल इस सोच के हवाले हो गए कि अगर वह ऐसा सब करेंगे तो भाजपा उन्हें ‘मुसलमानों का हमदर्द’, और इस तरह ‘हिंदू विरोधी’ नेता बता देगी.

राष्ट्रवाद और देशभक्ति भाजपा के हिंदुत्व का अहम हिस्सा हैं. केजरीवाल पर हमेशा से आरोप लगाए जाते रहे हैं कि वह देश के खिलाफ काम कर रहे हैं. जब उन्होंने उरी सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगे थे तब कहा गया था कि वह ‘पाकिस्तान की भाषा’ बोल रहे हैं. भले ही 1998 के बाद से भाजपा ने दोबारा दिल्ली नहीं जीती, लेकिन फिर भी उसके और आएसएस के लिए दिल्ली एक मजबूत गढ़ रहा है.

2014 और 2019 में दिल्ली की सातों लोकसभा सीटें भाजपा के नाम रहीं. लगातार तीन म्यूनिसिपल चुनावों में भी उसकी पल्ला भारी रहा. केजरीवाल जानते हैं कि एक छोटी सी गलती भी उनके लिए भारी पड़ सकती है. इसलिए भाजपा से मुकाबला करने के लिए वह खुद को हिंदू नेता साबित करने पर तुले हैं.

केजरीवाल वही राजनीति कर रहे हैं, कभी जिससे नफरत करते थे

दिल्ली के म्यूनिसिपल चुनाव आने वाले हैं. यही वजह है कि केजरीवाल अपनी धार्मिक पहचान को प्रकट कर रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि वह भाजपा से बड़े रामभक्त और राष्ट्रवादी हैं. उनका आखिरी दांव यह है कि उनकी सरकार सीनियर सिटिजंस को मुफ्त में अयोध्या की तीर्थ यात्रा कराएगी. और इसका उनके धर्म या हिंदूपने से कोई ताल्लुक नहीं है.

मेरे लिए दुखद यह है कि केजरीवाल को ऐसे शख्स के रूप में देखा जाता था जो भारतीय राजनीति का पूरा परिदृश्य बदल देगा. राजनीति को विवेकशील बनाएगा. लेकिन वह खुद ऐसी राजनीति कर रहे हैं जिससे कभी नफरत किया करते थे.

अब वह उसी का एक हिस्सा बन गए हैं. आप बिना किसी पछतावे के उन्हें ऐसे नेता के तौर पर याद कर सकते हैं जिसने ‘नेहरू को भुला दिया है’ क्योंकि नेहरू आज की राजनीति में प्रासंगिक नहीं रह गए हैं.

(आशुतोष लेखक और वर्तमान में satyahindi.com के संपादक हैं. वह @ashutosh83B पर ट्विट करते हैं. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT