मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019दलित मंत्री का इस्तीफा-केजरीवाल का अंबेडकर प्रेम,AAP को दलित वोट की चिंता नहीं?

दलित मंत्री का इस्तीफा-केजरीवाल का अंबेडकर प्रेम,AAP को दलित वोट की चिंता नहीं?

CBI जांच में घिरे मनीष सिसोदिया, जेल में बंद सत्येंद्र जैन से इस्तीफा नहीं लिया गया- लेकिन राजेंद्र गौतम अकेले पड़ गए

वैभव कुमार
नजरिया
Published:
i
null
null

advertisement

बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) और भगत सिंह की बात करने वाले अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) आजकल गुजरात चुनाव में जय श्री राम और हिंदू देवी-देवताओं की बात कर रहे हैं. उधर दिल्ली में बाबा साहेब की 22 प्रतिज्ञाओं से जुड़े विवाद पर केजरीवाल सरकार के दलित मंत्री राजेंद्र पाल गौतम (Rajendra Pal Gautam) को इस्तीफा सौंपना पड़ा है. सवाल है कि बीजेपी को अपनी ही पिच पर चुनौती दे रहे आम आदमी पार्टी के मुखिया को दलित वोट की चिंता क्यों नहीं सता रही?

क्यों हुआ 22 प्रतिज्ञाओं पर विवाद?

5 अक्टूबर 2022 को दिल्ली के रानी झांसी रोड स्थित ऐतिहासिक अंबेडकर भवन पर धम्मदीक्षा कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम का आयोजन संयुक्त रूप से मिशन जय भीम और राजरत्न आंबेडकर के संगठन द बुद्धिस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया ने किया था. राजरत्न अंबेडकर बाबा साहब  के प्रपौत्र हैं जबकि दिल्ली के पूर्व समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम मिशन जय भीम के संरक्षक हैं.

कार्यक्रम में बड़ा जनसमूह उमड़ा और आयोजकों ने धम्मदीक्षा दिला कर लगभग 10,000 लोगों को हिंदू धर्म छोड़ तथागत बुद्ध के धम्म में शामिल किया.  सेटेलाइट टीवी मीडिया ने इस कार्यक्रम को बिल्कुल भी कवर नहीं किया, केवल डिजिटल प्लेटफॉर्म पर काम करने वाली अल्टरनेट और बहुजन विषयों पर काम करने वाली मीडिया ने इसको बड़े पैमाने पर कवर किया.

धम्मदीक्षा की बहुत सारी वीडियो यूट्यूब फेसबुक पर उपलब्ध रहीं लेकिन बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की 22 प्रतिज्ञाओं की एक वीडियो बहुत ज्यादा वायरल हो गई. वह वीडियो बीजेपी के नेताओं के पास पहुंची और मनोज तिवारी, नवीन जिंदल से लेकर तेजेंद्र पाल बग्गा ने उस वीडियो की शुरूआती 3 प्रतिज्ञाएं को ट्वीट कर आपत्ति जताई कि अरविंद केजरीवाल के मंत्री द्वारा हिंदू धर्म का अपमान किया गया है. शुरुआती तीन प्रतिज्ञा में हिंदू देवी देवताओं में विश्वास ना जताने और उनको ना मानने का आह्वान किया गया है.

बैकफुट पर आ गई आम आदमी पार्टी?

वीडियो के वायरल होने और टीवी मीडिया द्वारा उसे लपकने के बाद आम आदमी पार्टी को कटघरे में खड़ा कर दिया गया. यह कार्यक्रम पूरी तरह गैर राजनीतिक था और इसका आम आदमी पार्टी से कोई संबंध नहीं था लेकिन दिल्ली सरकार के समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम की उपस्थिति के आधार पर टीवी मीडिया ने आम आदमी पार्टी पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगा दिया. बीजेपी के विभिन्न नेताओं और प्रवक्ताओं ने सोशल मीडिया और टीवी डिबेट में आम आदमी पार्टी को बुरी तरह घेर लिया. आम आदमी पार्टी के लिए पूरा मामला इसलिए बेहद नाजुक हो गया क्योंकि गुजरात विधानसभा चुनाव सर पर है.

सुबह से लेकर शाम तक टीवी पर इस मुद्दे पर डिबेट चलती रही और आम आदमी पार्टी प्रवक्ताओं को डिफेंड करना भारी पड़ गया. पार्टी के अंदर भी यह चर्चा होनी शुरू हो गई कि सारी फसाद की जड़ राजेंद्र पाल गौतम द्वारा आयोजित धम्मदीक्षा समारोह था जिसमें यह 22 प्रतिज्ञा दिलाई गई. हालांकि आम आदमी पार्टी 22 प्रतिज्ञाओं या धम्मदीक्षा या फिर राजेंद्र पाल गौतम की उपस्थिति पर पूरी तरह से मौन रही लेकिन इस पूरे घटनाक्रम की गाज राजेंद्र पाल गौतम पर गिरने वाली थी, यह दिखना शुरु हो चुका था.

बीजेपी और उनके सहयोगियों ने एक कदम आगे बढ़कर इन 22 प्रतिज्ञाएं को हिंदू विरोधी घोषित कर इनकी शुरुआती तीन-चार प्रतिज्ञाओं के बड़े-बड़े होर्डिंग गुजराती भाषा में गुजरात में लगा दिए और उसमें केजरीवाल की जालीदार टोपी पहनी तस्वीर भी साथ लगा दी. अब यह पूरी तरह विशुद्ध राजनीतिक मामला बन चुका था जिसके केंद्र में समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम आ चुके थे.

आम आदमी पार्टी किसी भी हालत में गुजरात में अपने आप को हिंदू विरोधी नहीं दर्शना चाहती थी. गुजरात में दलितों की आबादी 10% से कम ही है और वहां बहुजन चेतना और अंबेडकरवाद उतना गहरा नहीं है कि इस मुद्दे पर अंबेडकरवाद बनाम हिंदुत्व में अगर आम आदमी पार्टी हिंदुत्व का साथ देती है तो दलित वोटों को खासा नुकसान होगा. जबकि आम आदमी पार्टी की पूरी कवायद बीजेपी से उसकी पिच पर ही खेल के उसका कोर वोट हथियाने की है.

क्या बाबा साहब द्वारा दिलाई गई 22 प्रतिज्ञाएं हिंदू विरोधी है?

14 अक्टूबर 1956 को लगभग 6 लाख अनुयायियों के साथ बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने  हिंदू धर्म त्याग कर तथागत बुद्ध का धर्म अंगीकार कर लिया था. मौजूद लोगों ने पंचशील और त्रिशरण के साथ बाबा साहब द्वारा दिलाई गई यह बाईस प्रतिज्ञाएं भी लीं थी. उस दिन के बाद से लेकर आजतक, जब भी भारत में, विशेषकर इन खास दिनों पर धम्मदीक्षा का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है तो जातीय उत्पीड़न, अत्याचार से जूझ रहा हिंदू दलित समाज जब बुद्ध धम्म की दीक्षा लेता है तो बाबा साहब की 22 प्रतिज्ञाओं को भी दिलाया जाता है.

इन 22 प्रतिज्ञाओं में हिंदू धर्म या हिंदू देवी-देवताओं के प्रति कोई भी अपमानजनक बात या अनादर का शब्द नहीं है. बस इतना स्पष्ट रूप से जरूर कहा गया है कि मैं हिंदू देवी देवताओं को नहीं मानूंगा और हिंदू धर्म के विचार को नहीं मानकर उनके रीति रिवाजों के हिसाब से नहीं चलूंगा, पिंड दान श्राद्ध आदि नहीं करूंगा.

हालांकि टीवी मीडिया ने इन 22 प्रतिज्ञाएं को हिंदू विरोधी करार दे दिया है. जबकि यह 22 प्रतिज्ञाएं बीजेपी के पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ नेताओं द्वारा संकलित करके भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों व संस्थाओं द्वारा प्रकाशित की गई हैं. आज भी बाबा साहब की 22 प्रतिज्ञाएं विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर राइटिंग्स एंड स्पीचिज ऑफ डॉक्टर अंबेडकर के संकलन में अंग्रेजी और हिंदी में उपलब्ध है. इसके अलावा भारत सरकार का संस्थान डॉ आंबेडकर फाउंडेशन भी इसको अंग्रेजी और हिंदी में प्रकाशित करके पूरे संकलन को बहुत ही कम दामों में उपलब्ध कराते हैं.

इससे पहले भी यह बाईस प्रतिज्ञाएं कई बड़े आयोजनों में धम्मदीक्षा कार्यक्रमों में दिलाई गई हैं. ऐसे कई कार्यक्रमों में बीजेपी के बड़े मंत्री भी मौजूद रहे हैं जहां यह 22 प्रतिज्ञा दिलाई गई. इन 22 प्रतिज्ञाएं को लेकर बड़े पैमाने पर कोई कानूनी चुनौती भी आज तक नहीं दी गई है.

लेकिन अचरज की बात यह रही कि बाबा साहब के पंचतीर्थ विकसित करने वाली बीजेपी की सरकार और बाबा साहब के प्रति अपना आदर सम्मान व्यक्त करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बहुत सारे नेता बाबा साहब की 22 प्रतिज्ञा की वजह से बाबा साहब का अपमान करने में पीछे नहीं हटे और बाबा साहब की तस्वीर को हर दफ्तर में लगाने वाले अरविंद केजरीवाल भी इन 22 प्रतिज्ञाएं को लेकर कोई टिप्पणी या बचाव करते नजर नहीं आए.

कुछ बहुजन वकीलों का मानना है कि अगर इस मामले में प्राप्त शिकायत के बाद अगर राजेंद्र पाल गौतम के ऊपर FIR दर्ज होती है तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जाना चाहिए जहां इस मुद्दे पर गहन विवेचना के बाद स्थिति को कानूनी रूप से बिल्कुल स्पष्ट किया जा सके.

दलित मंत्री का इस्तीफा और अरविंद केजरीवाल का अंबेडकर प्रेम

समूची आम आदमी पार्टी इस पूरे विवाद से परेशान हो चुकी थी और गुजरात चुनाव में स्थिति बिगड़ती हुई नजर आ रही थी. फेस सेविंग और भरपाई करने के लिए अरविंद केजरीवाल ने अपने वडोदरा रोड शो के दौरान कहा कि मैं जन्माष्टमी के दिन पैदा हुआ था और इस तरह की बातें करने वाले लोग कंस की औलाद हैं. उन्होंने हिंदू देवी-देवताओं के अपमान करने वाले लोगों को असुर तक करार दे दिया.

असल में अरविंद केजरीवाल डैमेज कंट्रोल करना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने एड़ी चोटी का जोर लगाया. इन सारे राजनीतिक हमलों में अरविंद केजरीवाल का निशाना गुजरात में बाबा साहब की 22 प्रतिज्ञाओं की होर्डिंग लगाने वाली बीजेपी थी लेकिन इस पूरी कवायद में अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के अंबेडकर प्रेम पर सवाल उठने लगे.

रात दिन बाबा साहब का नाम जपने वाली आम आदमी पार्टी के किसी भी नेताओं ने बाबा साहब की 22 प्रतिज्ञाओं को लेकर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया. विश्लेषकों को तो हालांकि यह नजर आ गया था कि आम आदमी पार्टी के मुखिया राजेंद्र पाल गौतम से नाराज हैं, लेकिन वह उनका इस्तीफा ले लेंगे इस बात से अंबेडकरवादी दलित समाज अनभिज्ञ था.  फिर अचानक समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने अपना इस्तीफा ट्वीट कर दिया और लिखा कि मैं बंधनों से मुक्त हो गया हूं. इस पूरे घटनाक्रम के बाद अंबेडकरवादी दलित समाज में खासा रोष उत्पन्न हो गया.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

केजरीवाल से नाराजगी और गुस्से के कई कारण थे. पहले तो यह कि इस मुद्दे पर राजेंद्र पाल गौतम को अकेला छोड़ दिया गया और वह अकेले ही स्पष्टीकरण देते नजर आए. पूर्व मंत्री राजेंद्र पाल गौतम के सरकारी निवास के बाहर भगवा झंडे लहराए गए और धमकी भरे वीडियो जारी किए गए.

पूर्व समाज कल्याण मंत्री ने अपने इंटरव्यू में यह भी कहा कि उन्हें लगातार धमकियां मिलती रहीं. मनीष सिसोदिया को कट्टर देशभक्त और कट्टर इमानदार कहने वाले यहां तक कि भारत रत्न की पैरवी करने वाले अरविंद केजरीवाल अपने दलित मंत्री के साथ खड़े नहीं दिखे. मनीष सिसोदिया पर गंभीर आरोपों में सीबीआई की इंक्वायरी चल रही है वहीं सत्येंद्र जैन जेल में बंद हैं बावजूद इसके उनका इस्तीफा नहीं लिया गया. सौरभ भारद्वाज, राघव चड्ढा और अतिशी मरलेना जैसे एक्टिव प्रवक्ता भी इस मुद्दे पर चुप्पी साध कर बैठ गए.

इशारा साफ था कि पार्टी आलाकमान को राजेंद्र पाल गौतम का यह पूरा आयोजन और उसके बाद हुई कंट्रोवर्सी कतई रास नहीं आई है और पार्टी ने राजेंद्र पाल गौतम से दूरी बना ली है. सोशल मीडिया पर अंबेडकरवादियों की टिप्पणी केजरीवाल के प्रति तल्ख होती चली गई. दलितों और मुसलमानों का एक बड़ा तबका आम आदमी पार्टी के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर इसलिए रखता है क्यूंकि वह बीजेपी को हराकर एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी होने की बात करते हैं.

लेकिन दलितों और मुसलमानों के मामलों में कई बार आम आदमी पार्टी अग्निपरीक्षा में फेल हो चुकी है. दलितों, मुसलमानों और पिछड़ों के वोट से राज्य दर राज्य में सत्ता हासिल कर रही आम आदमी पार्टी इन वर्गों को नुमाइंदगी देने में विफल रही है फिर चाहे बात दिल्ली से राज्यसभा में भेजने की हो या फिर पंजाब के नए राज्यसभा सदस्यों की. आम आदमी पार्टी की शीर्ष बॉडी पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी में भी दलितों मुस्लिमों की दखल ना के बराबर है. प्रतीक के रूप में आम आदमी पार्टी को बाबा साहब अंबेडकर खासे पसंद हैं लेकिन बात जब हक अधिकार, नुमाइंदगी या स्टैंड लेने की आ जाए तो आम आदमी पार्टी पर सवाल उठते हैं.

क्या आम आदमी पार्टी को नहीं है दलित वोटों की चिंता?

झाड़ू चुनाव चिन्ह होने की वजह से दिल्ली का वाल्मीकि समाज और दलित समाज की अन्य जातियों समेत दिल्ली के मुस्लिम और पिछड़े वर्ग ने भी आम आदमी पार्टी को भर-भर के वोट दिया है. अंबेडकरवादियों का एक वर्ग कह रहा है कि राजेंद्र पाल गौतम के साथ इस तरह का सलूक करने की वजह से आम आदमी पार्टी को आगामी चुनावों में भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.

पर इतना सब होने के बावजूद भी अरविंद केजरीवाल चिंतित नहीं नजर आ रहे, वह तो बीजेपी से हिंदुत्व की प्रतिस्पर्धा में लगे हुए हैं. दिल्ली में नगर निगम के चुनाव भी होने हैं और 2025 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव होंगे. हालांकि गुजरात में दलितों की आबादी कम है और उत्तर प्रदेश या दिल्ली की तुलना में गुजरात में अंबेडकर वास और बहुजन आंदोलन उतना गहरा नहीं है. इसलिए गुजरात को लेकर दलित वोटों की चिंता अरविंद केजरीवाल को ना के बराबर है. पर क्या दिल्ली के नगर निगम चुनाव पर इसका असर पड़ेगा या फिर आगामी 2025 विधानसभा चुनावों में इसका खामियाजा आम आदमी पार्टी को भुगतना पड़ेगा, यह विवेचना का प्रश्न है.

असल में आम आदमी पार्टी एक केंद्रीकृत व्यवस्था के तहत चुनाव लड़ती है जहां प्रत्याशियों और अन्य नेताओं का महत्व बहुत कम है और वोट केवल अरविंद केजरीवाल के नाम पर या फिर आम आदमी पार्टी के मीडिया मैनेजमेंट और योजनाओं के आधार पर मिलता है. सरल शब्दों में कहें तो आम आदमी पार्टी जातीय जोड़-तोड़ और समीकरण की राजनीति नहीं करती. यही कारण है कि यूपी में BSP को भी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है क्योंकि उधर भारतीय जनता पार्टी एक बड़े समूह को सीधे अपनी और आकर्षित करती है जिसका आधार धार्मिक ध्रुवीकरण और अंध राष्ट्रवाद है.

ऐसे में जातीय समीकरण साध कर सत्ता पर काबिज होने वाली पार्टियों के लिए मुश्किल की घड़ी है. आम आदमी पार्टी ने भी इसी की काट निकाली है ताकि वह बीजेपी से भी लोहा ले सके जो कि भावनात्मक धार्मिक मुद्दों का सहारा लेती है. AAP अपने घोषणापत्र में लोकलुभावन वादे करती है जो जनता को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. ऐसे में हर धर्म, जाति का अमीर गरीब इन फायदों को लेने के लिए पार्टी को सत्ता पर लाने की कोशिश करता है. AAP का मीडिया मैनेजमेंट बीजेपी से भी ज्यादा अच्छा है.

आम आदमी पार्टी के पास सोशल मीडिया का अपना बहुत ही ज्यादा विस्तृत और विकसित नेटवर्क है. वैसे भी एक राज्य में सत्ता आने के बाद आम आदमी पार्टी ने अपने आपको अंदरुनी रूप में बहुत सुदृढ़ और मजबूत कर लिया है. पार्टी के पास संसाधनों की कोई कमी नहीं और जब चुनाव आता है तो दिल्ली के मंत्री, नेता, सांसद समेत कई विधायकों को उस राज्य में जमीन पर उतार दिया जाता है. सोशल मीडिया पर कैसे कंटेंट जनरेट किया जाता है और कैसे डिजिटल प्लेटफार्म पर कंटेंट को पुश करके पूरे विमर्श को अपने पक्ष में कैसे किया जाता है इसमें आम आदमी पार्टी अब महारत हासिल कर चुकी है.

दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने अभी तक अनुसूचित जाति आयोग का गठन नहीं किया है, अनुसूचित जाति कल्याण बोर्ड का कार्यकाल समाप्त होने के बाद उसका पुनर्गठन नहीं किया है, दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग में लंबे समय तक बौद्ध सदस्य नहीं था, जब राज्यसभा में नुमाइंदगी की बारी आई तो दलित, मुस्लिम याद नहीं आए. एक मंत्री बनाने के अलावा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित अन्य 11 विधानसभाओं के विधायकों की कोई अहमियत नहीं दिखती है.

दिल्ली सरकार में ट्रैफिक मार्शल, डीटीसी मार्शल, नर्सिंग ऑर्डरली से लेकर डीटीसी के कंडक्टर ड्राइवर के अलावा लाखों पदों पर कॉन्ट्रैक्ट की भर्तियां हो रही है जहां आरक्षण के प्रावधानों को दरकिनार किया जा रहा है.

दिल्ली में सवा लाख प्रति माह से लेकर 15-20 हज़ार प्रतिमा तक की भर्तियां संविदा पर हो रही हैं जिसमें आरक्षण के कोई प्रावधान नहीं है. शेड्यूल्ड कास्ट्स सब प्लान के तहत अनुसूचित जाति के लिए खर्च किए जाने वाले पैसे के मामले में भी आम आदमी पार्टी सरकार का रिकॉर्ड बिल्कुल शून्य है. इतना सब हो जाने के बावजूद भी दिल्ली का अंबेडकरी दलित समाज आम आदमी पार्टी को क्लीन चिट दे देता है और इन मुद्दों पर कभी नहीं घेर पाता. यही कारण है कि अरविंद केजरीवाल निश्चिंत हैं और उन्हें पता है कि दलित वोट उनको इसी तरह बदस्तूर मिलता रहेगा.  

क्या पार्टी से बगावत करेंगे पूर्व मंत्री राजेंद्र पाल?

राजेंद्र पाल गौतम के साथ अब बहुत बड़ा अंबेडकरी समाज और बुद्ध के अनुयायी खड़े हुए हैं. हालांकि वह इस बात से जरूर परेशान हैं कि पूर्व मंत्री राजेंद्र पाल गौतम अभी भी पार्टी के प्रति अपने आप को समर्पित दिखा रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष आदेश गुप्ता की शिकायत के आधार पर दिल्ली पुलिस ने राजेंद्र पाल गौतम को एक नोटिस देकर तलब किया और पूछताछ के लिए पहाड़गंज थाने में बुलाया.

राजेंद्र पाल गौतम ने अपना लिखित बयान थाने में दे दिया लेकिन बावजूद इसके उनको 3 से 4 घंटा बिठाए रखा और शाम अंधेरा होने के बाद ही छोड़ा. राजेंद्र पाल गौतम की विधानसभा के लोग और कुछ समर्थकों के अलावा यहां पार्टी का कोई भी नेता या कार्यकर्ता उनके साथ खड़ा नहीं दिखाई दिया. जबकि राजेंद्र पाल गौतम ने खुद इस्तीफा दिया है और वह अभी भी पार्टी के सदस्य हैं और ना ही पार्टी ने उन्हें निष्कासित किया है. इशारा साफ है कि पार्टी आलाकमान राजेंद्र पाल गौतम से नाराज है.

जब पत्रकारों द्वारा सवाल किया गया कि आम आदमी पार्टी का एससी एसटी विंग या लीगल सेल का कोई भी व्यक्ति उनके साथ नहीं खड़ा नजर आया तो उन्होंने कहा कि समाज सब कुछ देख रहा है इसका जवाब दिया जाएगा. 14 अक्टूबर को राजेंद्र पाल गौतम ने जाति उन्मूलन संकल्प यात्रा नाम की पदयात्रा निकाली.  राजेंद्र पाल गौतम ने यात्रा की शुरुआत अपने सरकारी आवास से की. डॉ. अंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक, 26 अलीपुर रोड पर बाबा अंबेडकर के पूर्व निवास पर समापन किया. 26 अलीपुर के ठीक पीछे फ्लैग स्टाफ रोड पर अरविंद केजरीवाल का सरकारी बंगला भी है.  

राजेंद्र पाल गौतम एक पक्के अंबेडकरवादी और सामाजिक संघर्ष से राजनीति में आए हुए नेता है. वह बाबा साहब के बनाए संगठन समता सैनिक दल में भी विभिन्न पदों पर रहे हैं और पेशे से एक सक्रिय वकील रहे हैं. राजेंद्र पाल गौतम ने बाबा साहब की विचारधारा का प्रचार प्रसार करने के लिए एक सामाजिक संगठन मिशन जय भीम का गठन किया जिसके वह महासचिव या अध्यक्ष तो नहीं बल्कि संरक्षक हैं.  इस संगठन के बैनर तले देश के कई राज्यों में बहुत से कार्यक्रम हुए हैं.

लेकिन 5 अक्टूबर के घटनाक्रम के तूल पकड़ने के चलते सारी गाज राजेंद्र पाल गौतम के ऊपर आ गिरी. ऐसे में साहब कांशीराम की बातें जरूर याद आती है जो कहते थे कि दलित समाज को अपने वोट बैंक की ताकत को समझ के एकमुश्त वोट करना होगा तभी सत्ता तक पहुंचा जा सकता है या फिर अन्य दलों में दलित नेताओं की साख बरकरार रह सकती है.

(लेखक वैभव कुमार डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म DNN हिंदी के फाउंडिंग एडिटर हैं. यह एक ओपिनियन पीस है. यहां लिखे विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT