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Chanda Kochhar की (ना)कामयाब कहानी से बैंकर ले सकते हैं 5 सबक

ICICI ने वीडियोकॉन ग्रुप को ₹3250 करोड़ का लोन दिया, उसी के बाद चंदा के सितारे गर्दिश में आए

माधवन नारायणन
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Chanda Kochhar की (ना)कामयाब कहानी से बैंकर ले सकते हैं 5 सबक</p></div>
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Chanda Kochhar की (ना)कामयाब कहानी से बैंकर ले सकते हैं 5 सबक

(फोटो- Vibhushita Singh/The Quint)

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1991 में भारत में उदारीकरण के साथ, बैंकिंग की दुनिया की चमकती शख्सियत चंदा कोचर की गिरफ्तारी सिर्फ एक उगते सूरज के अवसान की कहानी नहीं. आईसीआईसीआई (ICICI Bank) की पूर्व सीईओ के साथ जुड़ा यह घोटाला, उससे कहीं ज्यादा, गहरे राज खोलता है.

बेशक, विस्तृत जांच से ही पता चलेगा कि क्या चंदा अपने चमक-दमक भरे करियर, जिसके चलते उन्हें देश का तीसरा सर्वोच्च सम्मान पद्म विभूषण मिला, के साथ लालच के हाथों मजबूर हुईं या हालत के चलते- या भोलेपन की बलि चढ़ गईं. लेकिन वह लोकप्रिय शख्सीयत हैं, और मामले पर सबका ध्यान भी है, इससे कोई बैंकर उनसे सबक ले सकता है.

कैसे हुआ पतन

इस स्कैंडल के केंद्र में है, संकट से जूझ रहे वीडियोकॉन ग्रुप के साथ चंदा की संदिग्ध मिलीभगत, जिसने मुश्किल सवाल उठाए हैं: क्या प्राइवेट बैंकर के परिवार के सदस्यों को अपनी पहचान बनाने का, करियर या कारोबार करने का सपना नहीं देखना चाहिए? अगर कोई एक प्राइवेट कंपनी, दूसरी प्राइवेट कंपनी के साथ मिलकर कोई कारोबारी फैसला लेती है तो क्या इसमें कोई कानूनी भ्रष्टाचार शामिल होता है. इसमें कथित दुराचार की वैधता के अलावा पेशेवर नैतिकता और अच्छे कारोबारी चलन का मामला कहां से आ गया?

क्या 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी के हाथों कांग्रेस की हार के बाद वीडियोकॉन समूह के संस्थापक वेणुगोपाल धूत से कोई सियासी बदला लिया जा रहा है, चूंकि उनके रिश्ते विपक्ष से रहे हैं? सवाल आसान हैं, जवाब नहीं. हालांकि धूत परिवार के ताज का दमकता हीरा- वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज दिवालिया हो चुका है, और इस लिहाज से सियासी इंतकाम का तर्क कमजोर पड़ता है.

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) का कहना है कि चंदा के कार्यकाल में आईसीआईसीआई ने वीडियोकॉन ग्रुप को 3250 करोड़ रुपए का लोन दिया, और उसके कुछ ही दिन बाद उनके पति दीपक की प्राइवेट कंपनी को धूत परिवार के नियंत्रण वाली एक कंपनी से 64 करोड़ रुपए का लोन मिला. वेणुगोपाल धूत को सिर्फ उस मामले में गिरफ्तार किया गया है, जिसमें बैंकिंग कानूनों, रेगुलेटरी दिशानिर्देशों, और आईसीआईसीआई की अपनी लोन पॉलिसी का कथित उल्लंघन शामिल है. चंदा इस बात से इनकार करती हैं कि उन्होंने बेईमानी की है, लेकिन उनका करियर हिचकोले खा रहा है, वह भी इस ऊंचाई पर पहुंचकर.

पहली नजर में, जैसा कि वे कहते हैं, यह बहुत बड़ी अनियमितता ही लगती है. एक बड़े बैंक की सीआईओ, अपने पति के करियर से जुड़े एक विवादास्पद फैसले को प्रभावित कर रही हैं. वह भी, जब वीडियोकॉन ग्रुप के सिर पर बैंक उधारियों का पहाड़ टूटा हो, इस मामले का तूल पकड़ना लाजमी है.
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बैंकिंग और बैंकरप्सी के लिए सबक

जांच का क्या नतीजा होगा, और क्या चंदा दोषी साबित होंगी, इससे इतर यह मामला बैंकरों को पांच चेतावनियां देता है. यह चेतावनी है, वित्त की जटिल दुनिया में बैकरों को कैसी सावधानी बरतनी चाहिए.

1. प्राइवेट बैंक का चरित्र पब्लिक होता है. यह बेफिजूल नहीं कि लिस्टेड कंपनियों के नाम में ‘पब्लिक’ शामिल होता है. उसके सीईओ की यह जिम्मेदारी होती है कि वह शेयरधारकों के प्रति जवाबदेह हो, चूंकि वह एक पब्लिक फिगर होता है- किसी राजनेता या लोकसेवक की तरह. मुमकिन है कि जब प्राइवेट सेक्टर की एक कंपनी, प्राइवेट सेक्टर की किसी दूसरी कंपनी के साथ कारोबार कर रही हो तो यह बात भुला दी जाए और सिर्फ कारोबारी जोखिम पर ध्यान दिया जाए.

आईसीआईसीआई बैंक के मामले में, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह आधिकारिक तौर पर भारत में "व्यवस्थित रूप से महत्वपूर्ण" बैंक है, और इसलिए, सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के प्रति उसकी अतिरिक्त जवाबदेही है.

2. निष्पक्ष दिखना भी उतना ही जरूरी है. बैंक जमाकर्ताओं से पैसा लेता है और उधारकर्ताओं को पैसा उधार देता है. लेकिन लाभ और जोखिम को ध्यान में रखते हुए कारोबारी फैसलों में ईमानदारी बहुत महत्वपूर्ण होती है. जब बैंक किसी कंपनी को लोन देता है तो उसके पास इसका जवाब जरूर होना चाहिए कि उसने किसी दूसरी कंपनी को लोन देने से इनकार क्यों किया है. जमाकर्ताओं, उधारकर्ताओं, शेयरधारकों, रेगुलेटर्स और कर्मचारियों, सभी को यकीन होना चाहिए कि बैंक की कोई रूलबुक है और वह उसका पालन कर रहा है.

3. चीन की दीवार बेडरूम तक फैली हुई है. यह थोड़ा पेचीदा मामला है. पब्लिक फिगर्स, खास तौर से राजनेताओं के फैसलों के दायरे में उनके परिवार के सदस्यों को खींचा जाता है, लेकिन प्राइवेट सेक्टर के अधिकारियों के मामलों में यह थोड़ा धुंधला है. हालांकि चंदा के मामले के बाद सीनियर बैंकर यह बताने में होशियारी दिखाएंगे कि क्या उनके रिश्ते, उनके करियर पर धब्बा लगा सकते हैं, या फिर अगर उनके चलते, उनके परिवार के किसी सदस्य को अपनी दिशा बदलनी पड़ती है तो वे अपने बोर्ड से कुछ मेहरबानी की मांग कर सकते हैं.

4. व्हिसिल ब्लोअर से सावधान हो जाइए: लैटिन में पुरानी कहावत है- सीज़र्स व्हाइफ मस्ट बी अबव सस्पिशन. यानी जिन लोगों के हाथों में सत्ता है, उन्हें गलती करने की आशंका से भी दूर रहना चाहिए. यानी पब्लिक फिगर्स की कड़ी जांच की जाती है. इस मामले के बाद कहा जाना चाहिए- क्लियोपेट्राज़ हस्बैंड मस्ट बी अबव सस्पपिशन.

चंदा के मामले में एक्टिविस्ट-शेयरहोल्डर अरविंद गुप्ता व्हिसिलब्लोअर बन गए थे जिसके बाद चंदा के दामन पर दाग लगे.

बड़ी कंपनियों में जब शिक्षित कर्मचारियों का असंतोष बढ़ता जा रहा हो, और सोशल मीडिया जब तथ्यों, अनुमानों, अफवाहों और आरोपों को फैलाने का मंच बन चुका हो तो बैंकरों को ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. यह कह देना कि मामला विचारधीन है, या यह दावा करना कि प्राइवेट कंपनियां आम लोगों के प्रति जवाबदेह नहीं- अब यह मानने को कोई तैयार नहीं होता.

5. राजनीति की जगह मर्यादा की बात कीजिए: मिस कोचर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान की एक्टिव सोशल मीडिया सपोर्टर हैं. लेकिन जब 2018 में उनकी नौकरी गई तो इस हिमायत ने उनकी छवि उजली नहीं की. सत्ता बदलती है, केंद्रीय बैंक के अध्यक्ष बदलते हैं, और बोर्डरूम की संरचना भी. बैंकर संबंधों को कार्य प्रक्रिया से ऊपर नहीं रख सकता. जब फैसलों के बारे में जवाब देने की बात आती है तो दसियों सालों के संबंधों में दरार आ जाती है. बैंकर की पेशेवर जिंदगी बहुत अकेली होती है.

(लेखक सीनियर जर्नलिस्ट और कमेंटेटर हैं जो रॉयटर्स, इकोनॉमिक टाइम्स, बिजनेस स्टैंडर्ड और हिंदुस्तान टाइम्स के साथ काम कर चुके हैं. उनका ट्विटर हैंडिल @madversity है.)

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